माघ स्नान : सर्वश्रेष्ठ प्रायश्चित

By: Jan 23rd, 2021 12:30 am

माघ मेला और स्नान हिंदुओं की धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत का अद्भुत सामंजस्य है। इलाहाबाद (प्राचीन समय का प्रयाग) में गंगा-यमुना के संगम स्थल पर लगने वाला माघ मेला संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध है। हिंदू पंचांग के अनुसार 14 जनवरी या 15 जनवरी को मकर संक्रांति के पावन अवसर के दिन माघ मेला आयोजित होता है, जबकि माघ स्नान पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक चलता है। इस अवसर पर संगम स्थल पर स्नान करने का बहुत महत्त्व होता है। इलाहाबाद के माघ मेले की ख्याति पूरे विश्व में फैली हुई है तथा इसी के चलते इस मेले के दौरान संगम की रेतीली भूमि पर तंबुओं का एक शहर बस जाता है। माघ मेला भारत के सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों में मनाया जाता है। नदी या फिर सागर में स्नान करना इसका मुख्य उद्देश्य होता है। धार्मिक गतिविधियों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा पारंपरिक हस्तशिल्प, भोजन और दैनिक उपयोग की पारंपरिक वस्तुओं की बिक्री भी इस मेले के माध्यम से की जाती है…

प्रयाग का माघ मेला

प्रत्येक वर्ष माघ माह में जब सूर्य मकर राशि में होता है, तब सभी विचारों, मत-मतांतरों के साधु-संतों सहित सभी आमजन आदि लोग त्रिवेणी में स्नान करके पुण्य के भागीदार बनते हैं। इस दौरान छह प्रमुख स्नान पर्व होते हैं। इसके तहत पौष पूर्णिमा, मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी, माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि के स्नान पर्व प्रमुख हैं। पौराणिक मान्यताओं के आधार पर कहा जाता है कि इलाहाबाद के माघ मेले में आने वालों का स्वागत स्वयं भगवान करते हैं।

स्नान के नियम

माघ में स्नान के कई नियम भी बताए गए हैं। माघ में मलमास पड़ जाए तो मासोपवास चंद्रायण आदिव्रत मलमास में ही समाप्त करना चाहिए और स्नान-दानादि द्विमास पर्यंत चलता रहेगा। ऐसे ही नियम कुंभ, अर्धकुंभ के समय भी हैं। पौष शुक्ल एकादशी से अथवा पूर्णमासी से अथवा अमावस्या से माघ स्नान प्रारंभ करना चाहिए। स्नान का सबसे उत्तम समय वह है जब तारागण निकले रहें, मध्यम-तारा लुप्त हो जाए। प्रयाग में माघ मास तक रहकर जो व्यक्ति कल्पवास तथा यज्ञ, शय्या, गोदान, ब्राह्मण भोजन, गंगा पूजा, वेणीमाधव पूजा, व्रतादि और दानादि करता है, उसका विशेष महत्त्व तथा पुण्य होता है।

कथा

माघ मेले की प्रसिद्धि के पीछे कई कथाएं हैं। प्रथम कथानुसार समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कुंभ के लिए देवताओं और असुरों में महासंग्राम हुआ था। देवताओं ने अमृत कलश को दैत्यों से छिपाने के लिए देवराज इंद्र को उसकी रक्षा का भार सौंप दिया। इतना ही नहीं, इस दायित्व को पूरा करने के लिए सूर्य, चंद्र, बृहस्पति और शनि भी शामिल थे। दैत्यों ने इसका विरोध करते हुए उसे प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की। तब उन्होंने तीनों लोकों में इंद्र के पुत्र जयंत का पीछा किया। उधर कलश की रक्षा के प्रयास में जयंत ने पृथ्वी पर विश्राम के क्रम में अमृत कलश को मायापुरी (हरिद्वार), प्रयाग (इलाहाबाद), गोदावरी के तट पर नासिक और क्षिप्रा नदी के तट पर अवंतिका (उज्जैन) में रखा था। परिक्रमा के क्रम में इन चारों ही स्थानों पर अमृत की कुछ बूंदें छलक गई थीं, जिसके कारण इन तीर्थों का विशेष महत्त्व है।

पद्मपुराण की एक अन्य रोचक कथा के अनुसार भृगु देश की कल्याणी नामक ब्राह्मणी को बचपन में ही वैधव्य प्राप्त हो गया था। इसीलिए वह विंध्याचल क्षेत्र में रेवा कपिल के संगम पर जाकर तप करने लगी थी। इसी क्रम में उसने साठ माघों का स्नान किया था। दुर्बलता के कारण उसने वहीं पर प्राण त्याग दिए थे, किंतु मृत्यु के बाद माघ स्नान के पुण्य के कारण ही उसने परम सुंदरी अप्सरा तिलोत्तमा के रूप में अवतार लिया। इसी क्रम में कई किंवदंतियां और कथाएं और भी हैं। माना जाता है कि माघ के धार्मिक अनुष्ठान के फलस्वरूप प्रतिष्ठानपुर के नरेश पुरुरवा को अपनी कुरूपता से मुक्ति मिली थी। वहीं भृगु ऋषि के सुझाव पर व्याघ्रमुख वाले विद्याधर और गौतम ऋषि द्वारा अभिशप्त इंद्र को भी माघ स्नान के महात्म्य से ही श्राप से मुक्ति मिली थी। पद्मपुराण के महात्म्य के अनुसार माघ स्नान से मनुष्य के शरीर में स्थित उपाताप जलकर भस्म हो जाते हैं। ऐसे में माघ माह में स्नान सर्वश्रेष्ठ प्रायश्चित भी है।


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