महुए दा पीर

By: Jan 16th, 2021 12:25 am

हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। यहां कई ऐसे देवी-देवताओं के स्थल स्थित हैं और उनकी महत्ता से संबंधित जो भी प्राचीन आख्यान उनसे जुड़े हुए हैं, लोक वाणी के माध्यम से जब भी सुनने को मिलते हैं, उनके प्रति आस्था और भी प्रगाढ़ हो जाती है। लोक देवी-देवताओं के प्रकट होने अथवा उनके द्वारा किए गए चमत्कारों संबंधी अनेकों धारणाएं आज भी सभी को आश्चर्यचकित करती हैं। इसी प्रकार की आस्था का एक केंद्र पौंग डैम की झील के किनारे पर धमेटा से आगे कुठेड़ नामक स्थान पर एक सुंदर सी वनस्थली के मध्य स्थित है, जिसे लखदाता महुए दा पीर के नाम से जाना जाता है।

सन् 1960-70 के दशक में ज्यों ही पौंग डैम के निर्माण का कार्य पूरा हुआ और धीरे-धीरे पानी का चढ़ना प्रारंभ हुआ था, डैम क्षेत्र के सभी निवासियों का इस डैम के क्षेत्र से विस्थापन प्रारंभ हो गया था। भले ही इस डैम के बनने से कई सुख-सुविधाएं विशेष रूप से बिजली के उत्पादन और नहरों के पानी के अतिरिक्त मत्स्य उत्पादन तथा जल क्रीड़ाओं का दौर प्रारंभ हुआ, परंतु जिन लोगों को विस्थापन का दुख सहना पड़ा, उसके गहरे घाव अभी तक भी भर नहीं पाए हैं। इस डैम के मध्य अभी भी कुछ स्थान ऐसे अद्भुत हैं, जहां तक भले ही पानी के चढ़ने पर वहां किसी मनुष्य का बिना किसी नाव के पहुंच पाना संभव नहीं हो पाता है, पर वह स्थान पानी में डूबते ही नहीं हैं। इन्हीं स्थानों में एक तो रैंसर की गढ़ी प्रमुख है और दूसरा स्थान है प्रसिद्ध आध्यात्मिक स्थल महुए दा पीर। सर्दियों के मौसम में जब पौंग डैम की इस झील का पानी उतरना शुरू होता है और जब बरसात से पहले-पहले काफी क्षेत्र पानी से खाली हो जाता है, तब धमेटा से पीर बाबा के दर तक पहुंचना काफी आसान हो जाता है। सदियों पुराने महुए के पेड़ के नीचे स्थित पीर बाबा के संबंध में माना जाता है कि किसी समय इसके पुजारी भराई जाति के मुस्लमान होते थे। बाद में उन्होंने पीर बाबा और उस स्थान को तरखान जाति के एक व्यक्ति के पास गिरवी रख दिया।

उस समय तक महुए का पेड़ सूख चुका था और उसकी एक जड़ के पास मिट्टी के ढारे के नीचे पीर बाबा और उसका निशान चिराग स्थित था। कहा जाता है कि एक मूढ़ व्यक्ति को पीर बाबा के दर्शन हुए और उसने पीर बाबा के अस्तित्व को ही नकारते हुए कहा कि आप में कोई भी ऐसी शक्ति नहीं रह गई है। यदि वास्तव में ही आप इतने शक्तिशाली और चमत्कारी हैं, तो जो आपका ठिकाना इस महुए के पेड़ में है तथा जो सूख चुका है, उस सूखे पेड़ को हरा-भरा करके यदि दिखा दोगे, तभी मैं मानूंगा कि आप में चमत्कारी शक्ति भी है और आप सच्चे पीर भी हैं। इस पर पीर बाबा ने कहा कि इस महुए के सूखे पेड़ पर चादर ओढ़ाकर इसे छोड़ दो। आश्चर्य की बात यह बताई जाती है कि कुछ समय के बाद उस सूखे पेड़ पर लाल-लाल कोंपलें फूटने लगीं और वह दिन-प्रतिदिन हरा-भरा होने लग पड़ा। इस चामत्कारिक घटना के बाद से ही पीर बाबा जी की महत्ता एवं मान्यता के चर्चे दूर-दूर तक होने लगे और लोगों में इसके प्रति आस्था एवं विश्वास बढ़ने लगा। आज भी वह महुए का पेड़ सदियों से ठंड के मौसम के उपरांत मार्च-अप्रैल के महीनों में लाल-लाल कोंपलों और पत्तों से भर जाता है और उस पर अति मीठे महुए के फल भी लगते हैं। पीर बाबा के प्रांगण में इस महुए के पेड़ के अतिरिक्त पीपल और वट के वृक्षों के साथ-साथ अन्य पेड़ भी हैं और यदि कोई इन पूजनीय पेड़ों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है, तो उसके साथ कोई न कोई अनिष्ट घटना अवश्य ही घटित हो जाती है। वर्तमान में जिस स्थान पर महुए की जड़ के ऊपर जिस आकार का मिट्टी का एक ढारा था, उसी आकार के अनुरूप एक सुंदर पक्का स्थल बना दिया गया है।

मुख्य थड़े के मंदिर में अब नीले घोड़े पर सवार पीर बाबा, उनका निशान चिराग और आगे कुछ मूहरे व मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं। साथ ही दूसरी ओर देवी माता के मंदिर का निर्माण भी किया गया है। पीर बाबा की मन्नत में लोग घी, नमक, आटा, जौ, गेहूं का ओरा और  तेल आदि चढ़ाते हैं। स्थानीय लोग समय-समय पर अपने पशुओं की सुख-समृद्धि की कामना के लिए बाबा जी से प्रार्थना करते हैं। बाबा जी की पूजा और श्रद्धालुओं की सुविधाओं तथा परिसर के विकास हेतु एक स्थानीय मंदिर कमेटी का भी गठन किया गया है।

पीर बाबा के दर पर यूं तो जब-जब भी परिस्थितियां अनुकूल बनती हैं, धमेटा से आगे का रास्ता, जो मंदिर तक जाता है, जब वहां से पानी उतर जाता है तो लोग अपनी श्रद्धा व्यक्त करने एवं मन्नतें मांगने व चढ़ाने के लिए यहां आना शुरू हो जाते हैं। विशेष रूप से गुरुवार को यहां काफी अधिक मात्रा में श्रद्धालुओं का आना-जाना होता है। यह भी एक इतिहास और सच्चाई के साथ आश्चर्य की बात थी कि पौंग डैम बनने से पहले यहां पर जून महीने में सात दिनों का एक भव्य मेला एवं छिंज का आयोजन होता था। वर्तमान में अब यह एक-दो दिनों तक ही सिमट कर रह गया है और अब यह छिंज मेला एक परंपरा के रूप में 21-22  जून को यहां पर आयोजित किया जाता है। पीर बाबा के साथ ही पांडवों के समय की ऐतिहासिक बाथू की लड़ी व स्वर्ग की सीढ़ी भी थोड़ी ही दूरी पर स्थित है, इसलिए इस क्षेत्र का यदि पर्यटन की दृष्टि से कुछ न कुछ विकास हो जाए, तो पर्यटक यहां पर आकर आनंद की अनुभूति कर सकते हैं। पौंग डैम का जल क्षेत्र घोषित होने के बावजूद भी इस पावन स्थली तक पानी का न पहुंच पाना आध्यात्मिकता का भी जीता जागता प्रमाण दिखाई देता है।

-रमेश चंद्र मस्ताना, नेरटी


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