‘रोक’ से थमेगा आंदोलन!

By: Jan 13th, 2021 12:06 am

अंततः सर्वोच्च न्यायालय को दखल देना ही पड़ा। केंद्र सरकार और किसानों के बीच सर्द गतिरोध है और दोनों पक्ष विपरीत धु्रवों पर मौजूद लगते हैं, लिहाजा शीर्ष अदालत ने सरकार पर भी तल्ख टिप्पणियां कीं और किसानों से भी कुछ आश्वासनों की अपेक्षा की। देश के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एस.के.बोबड़े ने यहां तक अतिवादी सवाल किया कि सरकार कृषि कानूनों के अमल पर फिलहाल रोक लगाएगी या हम यह रोक लगाएं? सर्वोच्च अदालत ने मंगलवार को इस रोक की घोषणा की और स्पष्ट किया कि रोक अनिश्चितकाल के लिए नहीं होगी। यह भी आदेश दिया गया है कि किसानों को समिति के सामने अपनी बात रखनी होगी। बेशक वे वकीलों के जरिए बात कह सकते हैं। लेकिन शीर्ष अदालत ने कानूनों की संवैधानिकता पर सवाल नहीं किए हैं। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने किसान आंदोलन के नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों के दरमियान बातचीत के चरणों पर बेहद निराशा जताई है। यहां तक टिप्पणी की गई कि सरकार ने पर्याप्त परामर्श के बिना ही कानून बनाए और अब वह समाधान देने में असफल रही है, लिहाजा सर्वोच्च अदालत कृषि से जुड़े विशेषज्ञों और सरकार के प्रतिनिधियों की एक समिति बनाना चाहती है। फिलहाल समिति के चार सदस्य घोषित किए गए हैं। समिति सभी पक्षों को सुनकर अपनी रपट सर्वोच्च अदालत की न्यायिक पीठ को देगी।

 अंतिम आदेश उसी के आधार पर दिया जाएगा। समिति का सुझाव मंत्रियों ने भी दिया था। किसान अब भी किसी समिति में शामिल होने को तैयार नहीं हैं। उनका अंदेशा है कि उनका आंदोलन फीका पड़ सकता है, नतीजतन मांगें भी लटक कर रह सकती हैं। प्रधान न्यायाधीश जस्टिस बोबड़े ने किसानों से भी यह जानना चाहा कि कानूनों के अमल पर रोक लग जाएगी, तो आंदोलन का कोई औचित्य नहीं होगा। क्या किसान धरना-स्थलों से हट जाएंगे? हालांकि न्यायिक पीठ ने प्रदर्शन और आंदोलन के मौलिक अधिकार को अटूट माना है। प्रधान न्यायाधीश ने यह भी संदेश दिया कि आंदोलन में बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों का क्या काम है? बर्फीली ठंड के मद्देनजर उन्हें घर वापस भेजा जाए। एक और महत्त्वपूर्ण टिप्पणी आशंका के तौर पर सामने आई कि यदि किसान आंदोलन की आड़ में हिंसा भड़कती है या कल कुछ भी हो सकता है, तो हम सब जिम्मेदार होंगे, लेकिन हम नहीं चाहते कि खून-खराबे का कलंक हम पर लगे। शायद अदालत ने करनाल के एक गांव में आंदोलन का हिंसक चेहरा देखा है, जहां मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को महापंचायत के मंच तक आने ही नहीं दिया गया और सार्वजनिक संपत्ति को खूब नुकसान पहुंचाया गया।

 बहरहाल संविधान का अनुच्छेद 142 शीर्ष अदालत को शक्तियां  प्रदान करता है कि वह सरकार और संसद द्वारा पारित कानून के अमल पर रोक लगाने का आदेश दे सकती है। कानून को खारिज भी किया जा सकता है, यदि मौलिक अधिकार और संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन हो रहा है, लेकिन ऐसे फैसले के संदर्भ में आशंकाएं भी उचित हैं कि एक नया चलन देश में उभर सकता है। संसद में बना कोई भी कानून विपक्ष या किसी अन्य वर्ग को अनुकूल नहीं लगा, तो वह विरोध करते हुए आंदोलन की राह पर जा सकता है। वह एक संवैधानिक अराजकता की स्थिति होगी। लोकतंत्र के सभी प्रमुख स्तंभों के अधिकारों, दायित्वों और मर्यादाओं को संविधान में अच्छी तरह परिभाषित किया हुआ है। शीर्ष अदालत में एटॉर्नी जनरल और सॉलिसीटर जनरल ने सवाल उठाए कि यदि कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगा दी जाएगी, तो उन 2000 के करीब किसानों का क्या होगा, जो खेती के लिए कॉन्टै्रक्ट कर चुके हैं? जो किसान कानूनों का समर्थन कर रहे हैं? यकीनन वे किसान आंदोलनकारी जमात से अलग हैं। लिहाजा अहम सवाल है कि अब सर्वोच्च अदालत ने कानूनों के अमल पर रोक का अंतरिम आदेश दे दिया है, तो क्या उससे मौजूदा गतिरोध और समस्या का समाधान निकलेगा? क्या किसान आंदोलन थम जाएगा? किसानों ने आंदोलन जारी रखने की बात कही है, ऐसे में समाधान कैसे निकलेगा?


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