गुरु के निकट

By: Jan 16th, 2021 12:20 am

श्रीश्री रवि शंकर

गीता की मूल यही शिक्षा है कि शांत मन से युद्ध करो। कृष्ण अर्जुन को हृदय शांत रखकर युद्ध की सलाह देते हैं। संसार में जैसे ही तुम एक विरोध समाप्त करते हो, दूसरा खड़ा हो जाता है। एक समस्या हल होती है, दूसरी खड़ी हो जाती है…

यदि तुम खुद को गुरु के निकट अनुभव नहीं कर रहे हो, तो इसका कारण तुम ही हो। तुम्हारा मन, तुम्हारा अहंकार तुम्हें दूर रख रहा है। जो कुछ भी तुम्हारे लिए महत्त्वपूर्ण है, अंतरंग है, उसे गुरु के साथ बांट लो, बता दो। संकोच मत करो, शरमाओ नहीं, इस पर स्वयं अपना निर्णय मत लो। यदि तुम अपनी आंतरिक व महत्त्वपूर्ण बातें गुरु को नहीं बताओगे, केवल साधारण शिष्टाचार वाली बातें करोगे, तब उनके साथ निकटता का अनुभव नहीं कर सकोगे। आप कैसे हो? कहां जा रहे हैं। सब कैसे चल रहा है? ऐसी नियमित और ऊपरी बातें गुरु के साथ मत करो। सिर्फ यह मत कहो कि शरबत की बोतल का दाम क्या है।

यदि तुम गुरु से निकटता अनुभव नहीं कर रहे हो, तो उन्हें गुरु मानने की आवश्यकता क्या है? वह तुम्हारे लिए एक और बोझ है। तुम्हारे लिए ऐसे ही बहुत से बोझ हैं। बस अलविदा कह दो। केवल ज्ञान की बात करो। किसी व्यक्ति के बारे में दूसरे व्यक्ति से सुनी बातें, या विचार मत दोहराओ। जैसे कोई कहे कि अमुक व्यक्ति तुम्हारे विषय में ऐसा कह रहा था, उसे वहीं रोक दो। उस पर विश्वास भी मत करो। जब कोई तुम पर सीधे आरोप लगाए, तो यह जान लो कि वह तुम्हारे बुरे कर्मों को ले रहा है। उस पर ध्यान मत दो। उस पर विश्वास मत करो और यदि तुम गुरु के निकटतम में से एक हो, तो संसार के सारे आरोपों को हंसते हुए ले लोगे। द्वंद संसार का स्वभाव है। शांति आत्मा का स्वभाव है। जब शांति से मन ऊबने लगे, सांसारिक क्रीडाओं से जुड़ जाओ। फिर जब  इनसे थक जाओ, आत्मा की शांति में आ जाओ। यदि तुम गुरु के करीब हो, तो दोनों साथ-साथ करोगे। द्वंद्व समाप्त करने की चेष्टा द्वंद्व को ओर बढ़ाती है। आत्मा की शरण में आकर विरोध के साथ रहो। ईश्वर व्यापक है और अनंत काल से ईश्वर सभी विरोधों को संभालते आए हैं। यदि ईश्वर सारे विरोधों को ले सकते हैं, तो तुम भी ऐसा कर सकते हो। जैसे ही तुम विरोध के साथ रहना स्वीकार कर लेते हो, विरोध समाप्त हो जाता है।

शांति चाहने वाले लोग लड़ना नहीं चाहते और लड़ने वालों के पास शांति है नहीं। शांति चाहने वाले लड़ाई से भाग जाना चाहते हैं। आवश्यक है मन से शांत होकर फिर लड़ना। आत्मा के सुकून में रहते द्वंद्व का सामना करो। गीता की मूल यही शिक्षा है कि शांत मन से युद्ध करो। कृष्ण अर्जुन को हृदय शांत रखकर युद्ध की सलाह देते हैं। संसार में जैसे ही तुम एक विरोध समाप्त करते हो, दूसरा खड़ा हो जाता है। एक समस्या हल होती है, दूसरी खड़ी हो जाती है। जैसे ही जुकाम से छुटकार मिला, पीठ का दर्द शुरू हो गया। जब शरीर स्वस्थ हो जाता है, मन की बीमारी शुरू हो जाती है। संसार ऐसे ही चलता है। न चाहने पर भी कभी-कभी गलतफहमी हो जाती है। इनको सुलझाना तुम्हारा काम नहीं।


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