वार्ता या आरोपों की सूली

By: Jan 19th, 2021 12:06 am

किसान आंदोलन में खालिस्तान समर्थक भी मौजूद हैं! यह कथन अब हैरान नहीं करता और न ही हम प्रत्यक्ष तौर पर आरोपित कर सकते हैं, लेकिन राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की प्राथमिकी में प्रथमद्रष्ट्या ऐसे ही आरोप हैं। किसान नेता एवं ‘लोक भलाई इंसाफ  वेलफेयर सोसायटी’ के अध्यक्ष बलदेव सिंह सिरसा और उनके बेटे मेहताब समेत करीब 50 ऐसे लोगों को एनआईए ने समन भेजकर तलब किया है, जो किसान आंदोलन से जुड़े रहे हैं। किसान देश के ‘अन्नदाता’ हैं। जो बुनियादी और सौ फीसदी तौर पर किसानी से जुड़े हैं, वे न तो खालिस्तानी हैं और न ही नक्सली अथवा पाकिस्तानी हैं। यह भी भद्दी राजनीति का ही उदाहरण है। इसे सरकार की रणनीति, दमन-चक्र और आंदोलन को तोड़ने की साजि़श करार देकर टाला नहीं जा सकता। खालिस्तानी संगठनों की कुछ देश-विरोधी हरकतें सार्वजनिक हुई हैं। आंदोलन-स्थल पर खालिस्तान के इश्तिहार भी मिले हैं। वे कहां से आए और किसने उन्हें बांटा? उनमें ललचाने वाला और देश के खिलाफ  विद्रोह वाला आह्वान साफ  है कि जो लालकिला या इंडिया गेट पर खालिस्तान का झंडा फहराएगा, उसे 2.5 लाख अमरीकी डॉलर का इनाम दिया जाएगा। यह राशि कौन देगा? इनाम की यह घोषणा अपने आप में देशद्रोह है। भारत के खिलाफ  विद्रोह की कल्पना का सूत्रधार ‘सिख्स फॉर जस्टिस’ नामक संगठन है, जो भारत में प्रतिबंधित है। एसएफजे ने कुछ एनजीओ को फंडिंग भेजी है, जो किसान आंदोलन के लिए विदेशी आर्थिक मदद का ही एक रूप है। एनआईए उसी की जांच कर साजि़श की तह तक पहुंचना चाहती है। एनआईए ने एसएफजे से जुड़े खालिस्तान समर्थक आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू के खिलाफ  मामला दर्ज कर रखा है। पन्नू पर भय और अराजकता का माहौल बनाकर लोगों में असंतोष पैदा करने और भारत सरकार के खिलाफ  विद्रोह के लिए उकसाने जैसे आरोप  हैं। यदि किसान नेता बलदेव सिंह सिरसा समेत किसी पत्रकार, केबल ऑपरेटर, बस ऑपरेटर, नट बोल्ट निर्माता आदि को भी तलब किया गया है, तो यह किसान आंदोलन को तारपीडो कर बिखेरने की कवायद कैसे हो गई? एनआईए एक लंबे अंतराल से जांच कर सबूत जुटा रही है और बीती 15 दिसंबर को प्राथमिकी भी दर्ज कर चुकी है। यदि भारत सरकार की यही मंशा होती, तो कमोबेश यह आंदोलन 55 दिनों तक जारी नहीं रह सकता था। सरकार किसानों के संग 10 चरणों का संवाद भी नहीं करती, लेकिन जांच एजेंसी को कुछ सुराग और साक्ष्य मिले होंगे, तो कुछ  लोगों को तलब किया गया है। वे अपराधी, मुज़रिम या आतंकी नहीं हैं। बेशक एक सवाल एनआईए पूछे अथवा न पूछे, लेकिन जिन आंखों ने जरनैल सिंह भिंडरावाले, जगतार सिंह आदि के पोस्टर आंदोलन-स्थल पर देखे हैं और खालिस्तान समर्थक हुंकारें भी सुनी हैं, वे सवाल क्यों नहीं करेंगे? भिंडरावाले पंजाब में खालिस्तानी उग्रवाद का स्वयंभू चेहरा था।

खाड़कुओं ने पंजाब के उस दौर के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या की थी। पवित्र ‘स्वर्ण मंदिर’ में सुरक्षा बलों और सेना को ‘ब्लू स्टार’ ऑपरेशन करना पड़ा था, तो उस हिंसक दौर का खलनायक कौन था? जिस शख्स ने पंजाब के एक तबके में नफरत और अलगाववाद के बीज बोए थे, नतीजतन 31 अक्तूबर, 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की भी हत्या की गई। ऐसा चेहरा महज एक पोस्टर नहीं हो सकता। यदि कोई आंदोलन इतना लंबा खिंचता है और हजारों की भीड़ राजधानी दिल्ली की सीमा पर लगातार गोलबंद रहती है, तो सरकार की खुफिया और सुरक्षा जांच एजेंसियां विश्लेषण करती हैं कि आंदोलन के पीछे किन ताकतों के हाथ हैं! ‘सिख्स फॉर जस्टिस’ तो पहले से ही प्रतिबंधित संगठन है। उसके नेता और समर्थक लंदन, न्यूयॉर्क, कनाडा में भारत सरकार के खिलाफ  प्रदर्शन करते रहे हैं। यदि एनआईए को प्रथमद्रष्ट्या लगता है कि आंदोलन को वाकई कोई विदेशी फंडिंग की जा रही है, तो बेशक उसे कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। उस पर विपक्ष, किसान संगठन कुछ भी टिप्पणियां करें, लेकिन यह देश की आंतरिक सुरक्षा और संप्रभुता का सवाल है। पंजाब में उग्रवाद के दौर में सैकड़ों ने अपनी जान गंवाई, एक सनातन कलंक पंजाब पर लग गया, लिहाजा खालिस्तान की वापसी को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।


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