न मुर्गी पहले, न अंडा : निर्मल असो, स्वतंत्र लेखक

By: Jan 18th, 2021 12:04 am

मुर्गी ने चैन की नींद सोते हुए सारे सपने बटोरे और पूरी रात खुद की किस्मत पर भरोसा करती रही। दरअसल हम सभी की जिंदगी में सपना कभी अंडा बन कर आता है या कभी मुर्गी बनकर। हम हर सपने को पहले मुर्गी या पहला अंडा मानकर देखते-देखते यह भूल जाते हैं कि हर जगह अंडे का भेद पैदा हो रहा है। हमारे आसपास की स्थितियां इसलिए विकृत सी प्रतीत होती हैं, क्योंकि हम पैदाइश से अंडे और मुर्गी के बीच यह तय नहीं कर पा रहे कि इनमें से हमारे करीब पहले कौन आएगा। इसीलिए आजादी के वर्षों बाद भी लोकतंत्र अंडा बनकर रह गया है, लेकिन मुर्गियां बढ़ती जा रही हैं। पहले-पहले कांग्रेस भी मुर्गी की तरह थी, इसलिए हम अपनी आजादी को अंडा मान रहे थे, लेकिन पहले मैं-पहले मैं करते-करते अब पार्टी समझ गई है कि उससे पहले कौन है। भाजपा को छोड़कर तमाम विपक्षी दल अब यह नहीं समझ पा रहे कि देश में मुर्गी या अंडे के बीच रहें या सीधे मुर्गा बन जाएं। उधर हर मुर्गा परेशान है कि वह वंशवाद का खात्मा कैसे करे। इधर कुंवारे खुद को मुर्गा मानकर परेशान हैं, तो उधर अंडों में यह बहस छिड़ गई है कि वे कुंवारे न रह जाएं। दरअसल मुर्गी ने एक रात सपने में यह देख लिया कि इनसानी फितरत अंडे की तरह है। जब तक फूट कर बाहर न निकलें, पता नहीं चलता कि किसके भीतर से क्या निकलेगा। सपने में उसे लगा कि वह एक दिन अंडे से निकल कर देश बन गई। पूरी तरह आजाद भारत की तरह वह जहां चाहे ठुंग मार सकती है। उसने पूजा स्थलों पर देखा कि हर भक्त अब उसकी तरह जी रहा है। भक्त कहीं मुर्गी बनकर घूम रहे थे, तो कहीं वह प्रार्थना से हर अंडे को सोने का अंडा बनाने की अरदास कर रहे थे। सपने में मुर्गी को लग रहा था कि वह अब मुर्गी से ऊपर जिंदगी बसर कर रही है, इसलिए सियासी दल की महफिल तक पहुंच गई।

वहां भी भक्त थे, कुछ मुर्गी बने तो कुछ मुर्गा बना दिए गए। राजनीति और राजनेता के बीच लिंगभेद की वजह से कहीं भक्त मुर्गी बन कर खुश थे, तो कहीं मुर्गा बनकर। राजनीति अपने समर्थकों को मुर्गी बनाकर इस आशा में खुश थी कि इनसे पैदा हुए अंडे कल पार्टी का विस्तार करेंगे, जबकि हर राजनेता चाहता था कि समर्थक उसके सामने मुर्गा बने रहें। सपने में मुर्गी को देश का एहसास हो रहा था कि पूरा समाज किस तरह उसके वंश बढ़ा रहा है। देश को खुद में महसूस करती मुर्गी अब स्वयं को प्रधानमंत्री मानने लगी। गहरी नींद में वह देश को फिर से आजाद कराने का प्रयास कर रही थी। वह आगे चलकर संसद का मुख्य द्वार खोलती है और वहां मौन कुर्सियों पर बैठ-बैठ कर पूछती है कि वह पहले आई या अंडा। पूरा संसद भवन इसी अनुगूंज में डूब जाता है। वहां हर कुर्सी खुद से पूछ रही थी। चीखों के बीच संसद और संसद के भीतर देश की चीख सुनकर मुर्गी का सपना टूट जाता है। वह दबे पांव हकीकत में आ जाती है, तो सामने एक अन्य मुर्गी मिल जाती है। वह देश के बजाय अब मुर्गी से पूछती है, तो वह अपने अनुभव से बताती है, ‘मुर्गी को अंडे से डर है, अंडे को मुर्गी बनने से, क्योंकि देश को मुर्गा चाहिए और मुर्गा बनने का एहसास हमें देश बना रहा है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App