हमारे ऋषि-मुनि, भागः 47 : भगवान महावीर  

By: Jan 23rd, 2021 12:15 am

साढ़े बारह वर्षों में कुल 84 दिन महावीर ने भोजन किया। वह भी एक बार दिन में। इनके द्वारा सहन किए गए कष्टों के कारण इंद्र ने ही इनका नाम वर्द्धमान महावीर रखा। इन्होंने अपने जप, तप तथा प्रभुकृपा से अनेक सिद्धियां प्राप्त कर लीं। उन्होंने 4400 विद्धानों को वेदों का यथार्थ अर्थ समझाया। चारों वर्णों के गृहस्थ तथा साधु इनके शिष्य थे…

लगभग 2500 वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन बालक महावीर का जन्म हुआ, जो बाद में जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थकर बने तथा उन्हें भगवान महावीर के नाम से प्रसिद्धि मिली। यह वह समय था जब पशुबलि, हिंसा, आपसी वैर-विरोध काफी बढ़ गया था। भोग-विलास सबको प्रिय लगा करता था। दुःख-दर्द से पीडि़त मनुष्य हाहाकार मचा रहा था, मगर उन्हें रास्ता दिखाने वाला, शांति प्रदान करने वाला कोई नहीं था। अलौकिक बालक थे वर्द्धमान

बिहार प्रांत के क्षत्रियकुंड नगर में भगवान महावीर का जन्म पिता राजा सिद्धार्थ तथा माता त्रिशला देवी के घर में हुआ था। वह इक्ष्वाकुवंश के अंतगर्त ज्ञातवंश के क्षत्रिय राजा थे। जैसे ही इनकी माता ने गर्भ धारण किया, पिता के राज्य में धन-धान्य की उत्तरोत्तर वृद्धि होती गई। यह आने वाली संतान का अच्छा द्योतक ही था। महावीर का बचपन का नाम वर्द्धमान था। वैशाली के सुविख्यात सम्राट चेटक की बेटी त्रिशला देवी ने अपने पुत्र की शिक्षा-दीक्षा पर विशेष ध्यान दिया था। अलौकिक शक्ति तथा ज्ञान की इस बालक में कोई कमी न थी। इन्होंने युवावस्था तक पहुंचते-पहुंचते क्षत्रियोचित कलाएं व विद्याएं सीख लीं थीं।

वैराग्य और करुणा

सामाजिक विषमताओं ने उन्हें असहज कर रखा था। दुःखी प्राणियों का उद्धार करने को चिंतित रहते। वैराग्य और करुणा इनके हृदय में स्थायी स्थान प्राप्त कर चुके थे। जीवन भर अविवाहित रहकर अखंड ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहते थे, मगर माता ने इन्हें जैसे-तैसे विवाह के लिए राजी कर लिया। राजा समरवीर की बेटी यशोदा देवी से इनका विवाह कर दिया। जिससे एक बेटी हुई प्रियदर्शना। बाद में इसका विवाह जमाली नामक राजकुमार से संपन्न हुआ था।

दामाद ने चलाया मत

कुछ समय बाद राजकुमार जमाली ने भगवान महावीर से दीक्षा ली। बाद में इन्होंने नया मत चला दिया, जो महावीर के मत से भिन्न था तथा उनका विरोध करता था। श्रीमहावीर के माता-पिता का देहांत इनकी युवावस्था में केवल 28 वर्ष की आयु में हो गया तथा इन्हें उनकी कमी खूब खला करती थी। वर्द्धमान संन्यास लेकर जाना चाहते थे, मगर महावीर के बड़े भाई नंदिवर्द्धन ने इन्हें दो वर्ष गृहस्थ रहने के लिए राजी कर लिया। इन्होंने खूब दान-पुण्य करना आरंभ कर दिया। उन्होंने कोई भी याचक खाली हाथ नहीं लौटाया। धन बहुत था। हृदय उससे भी विशाल। इस प्रकार उन्होंने हजारों गरीबों की गरीबी दूर की। अंततः तीस वर्ष की आयु में विरक्त हो गए, घर त्यागकर चले गए।

अहिंसा और सत्य को अधिमान

पूरे साढ़े बारह वर्षों तक घोर तप किया। छह-छह महीने बिना अन्न के रहा करते थे। महीनों तक उपवास और उसमें भी खड़े होकर तप। निद्रा और आलस्य को करीब नहीं आने दिया। साढ़े बारह वर्षों में कुल 84 दिन महावीर ने भोजन किया। वह भी एक बार दिन में। इनके द्वारा सहन किए गए कष्टों के कारण इंद्र ने ही इनका नाम वर्द्धमान महावीर रखा। इन्होंने अपने जप, तप तथा प्रभुकृपा से अनेक सिद्धियां प्राप्त कर लीं। उन्होंने 4400 विद्वानों को वेदों का यथार्थ अर्थ समझाया। चारों वर्णों के गृहस्थ तथा साधु इनके शिष्य थे। मैतार्य और हरिकेशी शूद्र होकर भी इनके शिष्य थे। इनके जीवन की विशेषता स्याद्वाद थी। इन्होंने तीस वर्ष तक उपदेश कार्य किए। कार्तिक कृष्ण अमावस्या को पावापुरी में बहत्तर वर्ष की आयु में निर्वाण प्राप्त किया।                                                                                                   – सुदर्शन भाटिया 


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