राष्ट्रपति बाइडेन का युग

By: Jan 22nd, 2021 12:06 am

अमरीका में राष्ट्रपति जोसेफ  आर. बाइडेन और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने अपने कार्यभार संभाल लिए हैं, लिहाजा अब नए युग की शुरुआत हो गई है। यह युग कई अर्द्ध-तानाशाही प्रवृत्तियों, मंसूबों, लोकतंत्र और संविधान पर प्रहारों और गोरे-काले, अमीर-गरीब की विभाजनकारी खाइयों को पार करके दिखा है। यकीनन यह उम्मीदों, एकता और उजालों की कहानी का युग साबित हो सकता है। बाइडेन की छवि लचीले और लोकतांत्रिक राजनेता की रही है। राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद प्रथम राष्ट्रीय संबोधन में बाइडेन ने स्पष्ट किया है कि श्वेत प्रभुत्व, नस्लवाद और घरेलू आतंकवाद को पराजित करना है। वह लोकतंत्र और संविधान की रक्षा करेंगे। वह तमाम अमरीकियों के राष्ट्रपति हैं, लिहाजा सभी की तरक्की और रक्षा को प्राथमिकता देंगे। इतिहास ने अमरीकियों को एकजुट रहना सिखाया है, लिहाजा विभाजन के हालात खत्म कर एकजुटता बहाल करने की कोशिश करेंगे। मानवाधिकारों की रक्षा भी की जाएगी। इस तरह राष्ट्रपति बाइडेन ने कई संकल्प, आश्वासन और विश्वास संपूर्ण अमरीका के साथ साझा किए हैं। जिस तरह की हथियारबंद किलेबंदी, कर्फ्यू और सिर्फ  1200 के करीब अमरीकी चेहरों की मौजूदगी में शपथ-ग्रहण समारोह हुआ है, बेशक वह अमरीकी लोकतंत्र और खुले, मुक्त समाज पर सवालिया निशान है। शपथ समारोह एक राष्ट्रीय पर्व की तरह मनाया जाता रहा है।

 बेशक वॉशिंगटन में सुरक्षा के बेहद कड़े बंदोबस्त किए जाते हैं, लेकिन सड़कों और बाज़ारों में सन्नाटे के बजाय लाखों नागरिकों की चहल-पहल होती रही है। मौजूदा स्थिति का ‘काला कलंक’ पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड टं्रप पर ही लगेगा, क्योंकि उनके  राजनीतिक मंसूबों और नस्लभेदी विभाजन की रणनीति ने एक देश-विरोधी अध्याय लिखकर इतिहास में दर्ज करा दिया है। बेशक टं्रप युग का अवसान हो चुका है, लेकिन अमरीका में अभी ‘टं्रपवाद’ जिंदा रहेगा। आने वाला वक्त उसे परिभाषित करेगा, लिहाजा राष्ट्रपति बाइडेन के सामने अमरीका की आंतरिक शक्ति और स्थिरता की बेहद गंभीर चुनौतियां होंगी। लोकतांत्रिक अमरीका को वापस पटरी पर लाने के अलावा, सबसे अहम लक्ष्य होगा-नए प्रशासन के 100 दिनों में कोरोना वायरस के टीके की 10 करोड़ खुराक की उपलब्धता और उन्हें आम नागरिक को लगाने का बड़ा प्रयास करना। इसमें अमरीका की अर्थव्यवस्था भी शामिल है। टं्रप कार्यकाल के पहले तीन सालों के दौरान आर्थिक विकास दर 3 फीसदी से कम रही है और फिर कोरोना महामारी की भयावहता ने अमरीका जैसी सुपर पॉवर और सर्वोच्च आर्थिक शक्ति की भी कमर तोड़ कर रख दी। राष्ट्रपति बाइडेन ने हरेक जेब में 1400 डॉलर डालने का भी वायदा किया है। बहरहाल अब बाइडेन युग का सूत्रपात हुआ है, तो अमरीकी राष्ट्रपति कई कसौटियों पर कसे जाएंगे।

हमें भारत के अंतरराष्ट्रीय हितों की ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए। विश्व पटल पर और खासकर एशिया में चीन के समानांतर शक्ति-संतुलन के मद्देनजर अमरीका के लिए भारत एकमात्र ताकतवर विकल्प है, लिहाजा दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी जारी रहेगी। नए विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने भारत को ‘द्विपक्षीय सफलता की कहानी’ करार दिया है। इसके अलावा करीब 3 लाख एच-1बी कर्मचारियों, करीब 7.4 लाख ग्रीन कार्ड के प्रतीक्षारत भारतीय और करीब 2 लाख विद्यार्थी खुश हो सकते हैं, क्योंकि बाइडेन इन कानूनों पर थोपी गई सख्ती को हटाएंगे। राष्ट्रपति बाइडेन अमरीकी कांग्रेस (संसद) को एक विधेयक भेज रहे हैं, जो उनकी प्राथमिकता है। बिल अभी सार्वजनिक होना है। करीब 1.10 करोड़ आप्रवासियों की संख्या बताई जा रही है, जिन्हें बाइडेन प्रशासन अमरीकी नागरिकता देने के पक्ष में है। राष्ट्रपति ने कई अहम फैसले भी किए हैं। मसलन- विश्व स्वास्थ्य संगठन और कई मुस्लिम देशों की यात्रा पर लगाए गए प्रतिबंधों को हटा दिया गया है। राष्ट्रपति के तौर पर टं्रप ने पर्यावरण से जुड़े करीब 125 नियमों को कमज़ोर किया था अथवा खुरच दिया था। उन्होंने पेरिस जलवायु समझौते का भी विरोध किया और अमरीका को उस संधि से अलग कर लिया था। राष्ट्रपति बाइडेन ऐसी संधियों और संस्थानों को तमाम जकड़नों से मुक्त करेंगे।


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