नए तेवरों की दुर्लभ जीत

By: Jan 21st, 2021 12:06 am

यह कोई परी-कथा की पटकथा नहीं थी। यह आकस्मिक, संयोगवश अथवा तुक्का भी नहीं था। सभी कीर्तिमान विरोधी टीम के पक्ष में थे। कंगारू अपने देश में, खासकर गाबा के मैदान पर 1988 से अजेय रहे थे। गाबा में टीम इंडिया ने पराजयों की निरंतरता ही झेली थी। इस बार भी व्याख्याएं ऐसी ही की जा रही थीं कि ऑस्टे्रलिया को चुनौती देना असंभव-सा है। टीम इंडिया के 11 स्थापित खिलाड़ी चोटिल होकर बाहर बैठे थे या स्वदेश लौट चुके थे। नियमित कप्तान और विस्फोटक बल्लेबाज विराट कोहली भी पितृत्व अवकाश पर लौट आए थे। सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, लक्ष्मण, गांगुली और कुंबले सरीखे क्रिकेटर भी हमारी टीम में नहीं थे। अकेले रोहित शर्मा, चेतेश्वर पुजारा और अजिंक्य रहाणे कब तक मोर्चे पर लड़ाई लड़ सकते थे। यकीनन जीत का यह लम्हा अविश्वसनीय, अभूतपूर्व, अतुलनीय और ऐतिहासिक ही नहीं है, बल्कि उसे ‘दुर्लभ’ करार देना चाहिए। यह लम्हा 1971 के दशक की तूफानी वेस्टइंडीज टीम के खिलाफ  उसी के घर में, 1983 में उसी वेस्टइंडीज को परास्त कर विश्वकप विजेता बनने, कोलकाता के ईडन गार्डन में स्टीव वॉ की कंगारू टीम के खिलाफ  द्रविड़ और लक्ष्मण की बल्लेबाजी और फिर अप्रत्याशित जीत, 2011 में कप्तान धोनी के छक्के के साथ एक बार फिर विश्व कप विजेता बनने के ऐतिहासिक लम्हों सरीखा  लगता है, लेकिन उनसे भी महत्त्वपूर्ण और दुर्लभ है, क्योंकि नौसीखिए खिलाड़ी मैदान पर मुकाबला कर रहे थे। बेशक यह नए भारत के नए तेवरों की नौजवान जीत है।

यह कल्पना ही नहीं की जा सकती थी कि शुभमन गिल, ऋषभ पंत, वाशिंगटन सुंदर, शॉर्दुल ठाकुर और सिराज, सैनी सरीखे अस्थायी और बेनाम क्रिकेटर भी जीत के लिए खेल सकते हैं। अधिकतर ने इसी टेस्ट मैच सीरिज में डेब्यू किया था। ये होनहार खिलाड़ी रक्षात्मक नहीं, आक्रामक थे। वे टी-20 खेल के तेज-तर्रार और हुनरमंद खिलाड़ी हैं, लिहाजा वे टेस्ट मैच बचाने नहीं, जीतने को खेलना जानते थे। यह टी-20 मैचों की आईपीएल चैंपियनशिप की उपज तो है, लेकिन अब 16 और 19 साल की उम्र से कम किशोर खिलाडि़यों के लिए विश्व स्तर पर क्रिकेट खेलने और विश्व चैंपियन बनने के पर्याप्त अवसर भी हैं। नतीजतन वे ऑस्टे्रलिया, इंग्लैंड, न्यूज़ीलैंड आदि देशों की तेज और उछाल वाली गेंदबाजी को आसानी से खेलना सीख जाते हैं। इस संदर्भ में राहुल द्रविड़ के ऐतिहासिक प्रशिक्षण को नहीं भुलाया जा सकता। अब घरेलू क्रिकेट में भी रणजी ट्रॉफी और प्रथम श्रेणी मैचों के अलावा कई और मुकाबले भी खेले जाते हैं, लिहाजा किशोर और युवा खिलाडि़यों का हुनर तराशा जा सकता है। हमारे खिलाड़ी लगातार एक्शन में रहते हैं। यही कारण है कि सिराज सरीखे एकदम नौसीखिया गेंदबाज को मौका मिला, तो उन्होंने ऑस्टे्रलिया की पिचों पर तीन मैचों में 13 विकेट चटकाए। बल्कि एक मैच में 5 विकेट झटक कर प्रसन्ना, बेदी, मदनलाल और ज़हीर खान सरीखे ऐतिहासिक गेंदबाजों की जमात में आ खड़े हुए। सुंदर को नेट प्रैक्टिस गेंदबाज के तौर पर ऑस्टे्रलिया दौरे पर ले गए थे, लेकिन उन्होंने शॉर्दुल के साथ मिलकर 123 ऐतिहासिक रनों की अकल्पनीय पारी खेली और सिडनी मैच ड्रा कराया। दोनों ने गेंदबाजी में भी कहर ढा दिया। बहरहाल टीम इंडिया ने कंगारुओं की ज़मीन पर लगातार तीसरी सीरिज जीती है।

अब मौजूदा दुर्लभ जीत के बाद बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी टीम इंडिया के पास ही बरकरार रहेगी। विश्व टेस्ट चैंपियनशिप में 430 अंकों के साथ भारत शीर्ष पर है और टेस्ट रैंकिंग में भी हम न्यूज़ीलैंड के बाद दूसरे स्थान पर हैं। टीम इंडिया को अभी लगातार टेस्ट सीरिज खेलनी हैं, लिहाजा एक बार फिर ‘नंबर वन’ टीम होने का गौरव दूर नहीं है। बेशक इस जीत से देश उत्साहित और गदगद है। प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और गृह मंत्री ने टीम इंडिया की शानदार जीत पर बधाइयां और भविष्य के लिए शुभकामनाएं दी हैं। क्रिकेट बोर्ड ने 5 करोड़ रुपए का बोनस देने की घोषणा की है। नए भारत के नए तेवरों वाले, नए खिलाडि़यों की इस दुर्लभ जीत के बाद कुछ सवाल सहज रूप में उठ रहे हैं कि विजेता नौसीखिया खिलाडि़यों का भविष्य क्या होगा? टीम इंडिया के विश्व विजेता कप्तान रहे कपिल देव इन खिलाडि़यों को आगामी 10 साल तक टीम इंडिया का हिस्सा बने देखना चाहते हैं, क्योंकि ये ही हमारी क्रिकेट की नई पीढ़ी को परिभाषित कर सकते हैं। चूंकि चोटिल खिलाड़ी बेहद सफल और स्थापित खिलाड़ी हैं, लिहाजा स्वस्थ होते ही उनकी वापसी तय है, तो ऐसे में क्या विजेता खिलाड़ी बेंच पर बैठे प्रतीक्षारत रहेंगे? ऐसा लगता तो नहीं, क्योंकि इंग्लैंड की घरेलू सीरिज के पहले दो टेस्ट मैचों के लिए नए खिलाड़ी भी चुने गए हैं। बहरहाल बधाई और खूब शुभकामनाएं….।


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