संकटमोचन हनुमान स्तोत्र
-गतांक से आगे…
सब त्रास छुटे हरि भक्ति दृढाई।। संतन के दुःख देखि सहैं नहिं।
जान परि बड़ी वार लगाई।। एक अचम्भी लखो हिय में।
कछु कौतुक देखि रहो नहिं जाई।। कहुं ताल मृदंग बजावत गावत।
जात महा दुःख बेगि नसाई।। मूरति एक अनूप सुहावन।
का वरणों वह सुन्दरताई।। कुंचित केश कपोल विराजत।
कौन कली विच भऔंर लुभाई।। गरजै घनघोर घमंड घटा।
बरसै जल अमृत देखि सुहाई।। केतिक क्रूर बसे नभ सूरज।
सूरसती रहे ध्यान लगाई।। भूपन भौन विचित्र सोहावन।
गैर बिना वर बेनु बजाई।। किंकिन शब्द सुनै जग मोहित।
हीरा जड़े बहु झालर लाई।। संतन के दुःख देखि सको नहिं।
जान परि बड़ी बार लगाई।। संत समाज सबै जपते सुर।
लोक चले प्रभु के गुण गाई।। केतिक क्रूर बसे जग में।
भगवन्त बिना नहिं कोऊ सहाई।। नहिं कछु वेद पढ़ो, नहीं ध्यान धरो।
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