सॉरी भैया जी! : अशोक गौतम, ashokgautam001@Ugmail.com
हर श्रेणी के जनसेवक के हर प्रकार के चुनावी प्रचार के लिए पहली शर्त होते हैं धांसू पोस्टर! उसके बाद दारु, फिर नोट। फाइनली वोट। चुनावी पोस्टर कमिंग सून जनसवेक की जनता से शौचालयों तक की दीवारों पर चिपक इंट्रो करवाता है। गालियां देती जनता के आगे दोनों हाथ जोड़े मुस्कुराता है। हर जनसेवक जानता है कि उसका पोस्टर जितना धारदार होगा, वोटर के दिमाग पर उसका उतना अधिक वार होगा।
सो, कल तक पुलिसवाले जिनका पोस्टर छापा करते थे, आज जनसेवक होने के लिए पहली बार उन्होंने अपने पैसों से या….पता नहीं किससे चरित्र फूंक-फूंक कर मैटर लिखवाया अपना चुनावी पोस्टर विनम्र भाव से आंखें दिखाते मुझे थमाया . अमुक क्षेत्र के हरमुखी विकास के लिए दिल दिल तक पहुंच रखने वाले, अव्वल दर्जे के समाजसेवी, योग्य से दो कम आगे सुयोग्य, मिलनसार, संघर्षशील, हेड पद के लिए शिक्षित, नैतिकता के परम पुजारी, दूर दृष्टि, नई सोच, मूल्यों के लिए जान की बाजी लगाने वाले, कर्मठ, ईमानदार, जुझारू, निहायत निःस्वार्थी, मसीहों के मसीहा, हर मां बहन दिल अजीज को जिनका चुनाव चिन्ह चाकू है, पर अपना ठप्पा लगा अपने क्षेत्र के विकास के भागीदार बनें। उसके बाद उनकी हाथ जोड़े खादी में तस्वीर। जो हाथ दिनरात मारधाड़ के लिए चलते रहे हों, वे तस्वीर में जुडे़ बुरे ही नहीं, बहुत बुरे लगते हैं। पोस्टर के सबसे नीचे उन्होंने एक दोहा मारा था ः ‘न थके कभी हाथ, पड़े कानून पर सदा भारी हैं। जज्बा है जनसेवा का, अब गुडों की बारी है।’ निवेदक, भैयाजी! हद है यार! भैयाजी में इतने गुण? इतने गुण तो स्वर्ग के देवताओं में भी भरी दोपहरी टार्च लेकर ढूंढे न मिले। अबे गधे! अबे उल्लू के पट्ठे! भैयाजी के बारे में तू आज तक क्या क्या गलत नहीं सोचता रहा? क्यों ये सब गलत सोचता रहा? कितनी कमीनी सोच थी तेरी? भैयाजी को लेकर! तू अपने सिवाय किसी में छिपे गुण देख ही नहीं सकता। तू तो आज तक यही सोचता रहा भैयाजी कतई पढ़े लिखे नहीं। बस, कहीं से डिग्री खरीद कर लाए हैं। कोई कहता रहा कि अपनी जगह दूसरे से अपने नाम पर पेपर दिलवा कर शिक्षित हुए हैं। और मैं आज तक यही सच मानता रहा कि भैयाजी में ईमानदारी नाम की कोई चीज नहीं।
जहां भी मौका मिलता है, पल भर में हाथ साफ कर हाथ घो डालते हैं अगली हाथ सफाई के लिए। स्वार्थी इतने कि पूछो ही मत! कि भैयाजी की केवल जेब तक ही पहुंच है। पर गधे, ये तो जन जन तक पहुंच वाले निकले! लग नहीं रहा था कि ये भैयाजी वही भैयाजी हैं कि जब वे किसी भी गली से गुजरते तो हर मुंह से उनके लिए गालियां ही निकलतीं। अहा! जनसेवक दिखने का बाना पहनते ही जीव कितना चमाचम हो जाता है? छिः! कितने गंदे हैं हम लोग! आज तक भैयाजी के बारे में कितने मिसगाइड होते रहे? भैयाजी के बारे में एक दूसरे को कितना मिसगाइड करते रहे? भैयाजी के दुश्मन कहीं के। सच कहूं, जो भैयाजी अबके भी चुनाव में जनता की सेवा का फैसला न लेते तो मुझ जैसे कितनों को उनकी हिडेन चरित्रगत विशेषताओं का पता अबके भी न लगता और भविष्य में भी उनके चरित्र को लेकर उनके बारे में थर्ड क्लास ही सोचते रहते। तुम धन्य हो ये चुनाव! तुम आते हो तो बहुतों के चरित्र की विशेषताएं हमें तुम्हारे आने पर ही पोस्टर जाहिर होती हैं। तुम न आते तो मेरे जैसे बहुतों के बारे में दिमाग में गलत सोच रखे ही मरते रहते।
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