फैसलों की कतार में छात्र

By: Jan 18th, 2021 12:06 am

यह पहली बार नहीं हो रहा, बल्कि हिमाचल में स्कूल-कालेज खोलने का फैसला उस आत्मविश्वास  से लबरेज है जो एक हाथ में वैक्सीन की डोज पकड़े है, तो दूसरे में कोरोना से सुधरते आंकड़ों का हिसाब। छुट्टियों के माहौल के बाहर फिर से स्कूल-कालेज में कदम धरने का सबब बनकर हिमाचल मंत्रिमंडल का फैसला आ रहा है। इस बार छात्र संख्या व कक्षाओं की शुमारी बढ़ रही है यानी स्कूल के दरवाजे पांचवीं, आठवीं से 12वीं कक्षा तक खुल कर उन तमाम वर्जनाओं को तोड़ रहे हैं जिनसे आजिज ऑनलाइन पढ़ाई कहीं दुबक गई है। जाहिर है ऐसे फैसलों की प्रतीक्षा में कुछ छात्रों के सवाल भी रहे हैं और कोरोना को अलविदा कहने का अंदाज भी। स्कूल-कालेजों का खुलना अपने आप में सामाजिक आत्मबल का परीक्षण है और शिक्षा की तमाम गतिविधियों का असर बाजार और व्यापार पर भी रहेगा। खास तौर पर राज्य की परिवहन व्यवस्था में ऐसे आदेश की सूचना इससे जुड़े अर्थ तंत्र को फिर से सांसें दे सकती है। जाहिर है बंधे हाथ खोलकर शिक्षा विभाग को अपने खोए हुए सत्र को पटरी पर लाने का कुछ अवसर मिल रहा है, लेकिन अभी स्थितियां न तो सामान्य बर्ताव करेंगी और न ही शिक्षण परिसर के भीतर छूट मिलेगी। तमाम चुनौतियों के भीतर शिक्षा केवल अपने मायनों का बचाव कर सकती है, जबकि लक्ष्यों की इबारत पूरी तरह लिखने के लिए अभी और इंतजार करना पड़ेगा। हिमाचल सरकार सभी प्रकार के समारोहों में भीड़ के दायरे को पचास से बढ़ा कर दो सौ कर रही है। कोविड काल के राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय अनुभव को देखते हुए ऐसी छूट के मायने सभी प्रकार के आंकड़ों की निगरानी है। स्थानीय निकाय चुनावों के दौर से गुजरते हुए पचास लोगों की भीड़ को दो सौ की सीमा तक बढ़ा कर सरकार ने राजनीतिक जश्न के पैमाने बदले हैं।

जैसा कि अतीत में देखा गया है और कोरोना काल के बनते-बिगड़ते का अवलोकन करें, तो सारे खतरे भीड़ के निरंकुश इरादों ने ही पैदा किए। भीड़ शादियों में रही हो या सियासी संगत में खड़े होने की चाह रही हो, कोरोना संक्रमण की कहानियों में यही मंजर खलनायक साबित हुआ है। ऐसे में छूट के तमाम तरानों के बीच अभी भी जिंदगी की बेबसी आजाद नहीं हुई है और इसलिए सरकार को सुरक्षा चक्र की अपरिहार्यता के बीच अपने इंतजाम पुख्ता रखने होंगे। चिकित्सा क्षेत्र में चार मेकशिफ्ट अस्पतालों की जिम्मेदारी में कोविड निगरानी के नए मजमून तैयार हैं, तो प्रदेश के दो जोनल अस्पताल फिर से सामान्य मरीजों की पर्ची पर काम करेंगे। यानी अब कोरोना संकट के साये से दूर हटकर चिकित्सा व शिक्षा अपने स्वाभाविक दायित्व की तरफ लौटने का सामर्थ्य जुटा रही है। मंत्रिमंडल ने कई रूटीन के फैसले भी लिए हैं, लेकिन प्रदेश की दृष्टि से पुनः दूर तक देखने की कोशिश हो रही है। यह अलग तरह की समीक्षा को निमंत्रण दे रहा है और समाज को एक नई परीक्षा में उतार रहा है। कितनी तीव्रता से स्थितियां सामान्य होती हैं, इस तथ्य पर निर्भर रहेगा कि कोरोना संक्रमण पर नियंत्रण किस शिद्दत से हो रहा है। सुरक्षा चक्र पहले भी तोड़े गए और उनका हर्जाना भरना पड़ा, अब भी माहौल की सरगर्मियां अगर छूट के दायरों पर निरंकुश हुईं, तो कोविड का व्यवहार खतरे ही बढ़ाएगा। ऐसे में भले ही बसों के जरिए दिल्ली दूर नहीं है या स्कूल से छात्र दूर नहीं है, लेकिन अभी कोरोना हमसे दूर नहीं गया है।

अभिभावक और प्रशासन की जिम्मेदारियों में स्कूलों को अब नए आदर्श स्थापित करने हैं। यह महज शिक्षा के उद्देश्यों की वापसी या वार्षिक परीक्षाओं की तैयारी नहीं, बल्कि राष्ट्र के आत्मविश्वास की ऐसी प्रयोगशाला सरीखा कर्त्तव्य है जो देश को फिर से चलना सिखाएगा। छात्र समुदाय के भीतर संकल्पों के विराम तोड़ना या जिंदगी के एहसास में लौटना, एक अद्भुत  पारी की तरह है। ऑनलाइन पढ़ाई या कालेज-विश्वविद्यालय परिसर से खारिज चिंतन-मनन की फिर से स्थापना, मात्र एक घटना भर नहीं, बल्कि नए लक्ष्यों की उड़ान है। यह फैसले राज्य की परिधि तक ही महफूज नहीं, बल्कि अंतरराज्यीय व राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे ऐसे फैसलों की कतार में हिमाचली छात्रों के वजूद पर असर पड़ेगा। कितनी ही प्रवेश परीक्षाओं के परिणाम इसलिए ठिठक गए कि कहीं शिक्षा परिसर के गेट बंद थे। अब राष्ट्रीय स्तर पर छात्र समुदाय को मिल रहा नया निमंत्रण पूरे देश की सोहबत बदलेगा। जिस कोरोना संकट ने छात्रों को घर बिठाया, उसके खिलाफ अब छात्र फिर से देश को सामान्य हालात का परिचय देंगे।


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