गणतंत्र की दो परेड!

By: Jan 26th, 2021 12:05 am

आज 26 जनवरी है…भारत का 72वां गणतंत्र दिवस! स्वतंत्र भारत के संवैधानिक और जनवादी प्रारूप का दिवस! ‘पूर्ण स्वराज्य’ के संकल्प को सार्थक करने का दिवस! और भारत की अखंड संप्रभुता, शौर्य, सम्मान और सम्पन्नता के वैश्विक प्रदर्शन का  दिवस! कितना महान और प्रेरणादायी है यह राष्ट्रीय पर्व? जो दिवस विविध और संपूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बांधता है, क्या उसके दो और समानांतर राष्ट्रीय समारोह मनाए जा सकते हैं? निरंकुश ताकतें और देश को अस्थिर करने का मानस रखने वाले कुछ उच्छृंखल चेहरे इस सवाल की मनमाफिक व्याख्या कर सकते हैं। स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों की दुहाई दी जा सकती है, लेकिन ऐतिहासिक तारीख के राष्ट्रीय उत्सव पर गणतंत्र के दो समानांतर सच भी हो सकते हैं, कमोबेश हमारा मन-मस्तिष्क इस सवाल पर सहमति नहीं देता।

 देश का गणतंत्र एक है, लेकिन पहली बार परेड दो दिखाई देंगी। दोनों की व्याख्या ‘राष्ट्रीय’ के तौर पर की जा रही है। एक परंपरागत परेड का आयोजन देश की चुनी हुई सरकार के प्रतिनिधि करते हैं, जिसमें देश के सैनिक, अस्त्र-शस्त्र, सांस्कृतिक विविधता की झांकियां, देश की अभूतपूर्व उपलब्धियां और उपस्थित जन-समूह साक्षी बनते हैं। सरहदों के जांबाज रक्षकों और योद्धाओं को सार्वजनिक मंच से देश के निर्वाचित राष्ट्रपति सम्मानित करते हैं। राष्ट्रीय ध्वज को सलामी दी जाती है और परेड गणतंत्र के प्रथम प्रतिनिधि राष्ट्रपति को सलामी देती है। यानी गणतंत्र भारत का अभिनंदन किया जाता है। यह आयोजन सुरक्षित रहे, दुश्मन कामयाब न हो, साजि़शें ज़मींदोज की जा सकें, लिहाजा राजधानी दिल्ली को ‘सर्वोच्च अलर्ट’ घोषित किया जाता है। ऐसे में किसानों के बैनर तले एक और समानांतर, टै्रक्टर-परेड के आयोजन की जिद की जाए और अंततः दिल्ली पुलिस को सीमित परेड की मंजूरी देनी पड़े, तो कमोबेश  उसे ‘राष्ट्रीय’ नहीं माना जा सकता। वाहनों पर तिरंगा महज नुमाइश का हिस्सा हो सकता है। गणतंत्र आंदोलनकारी जमात का भी है। उसे संवैधानिक अधिकार हैं, लिहाजा धरने-प्रदर्शन और मोदी सरकार को गालियां देने के सिलसिले जारी हैं। बेशक यह अधिकारों का अवैध अतिक्रमण है और एक सशक्त, परिपक्व गणतंत्र को ‘केला रूप’ देने की मंशा है। अधिकारों के साथ-साथ दायित्वों का भी एहसास होना चाहिए। ‘टै्रक्टर परेड’ का किसान आंदोलन से कोई सरोकार नहीं। महज शक्ति-प्रदर्शन और सरकार को झुकाने की रणनीति है। हम भी किसानों को ‘अन्नदाता’ के अलावा देशभक्त भी मानते हैं। उनके बेटे-भाई सरहदों पर ‘मां भारती’ की रक्षा में तैनात हैं, तो उसी गणतंत्र दिवस पर सुरक्षा और संप्रभुता की सीमाओं को क्यों लांघा जा रहा है?

 किसान अपने गांव, कस्बे, जिले में भी गणतंत्र दिवस का पर्व मना सकते थे। देश के अधिकतर किसान और नागरिक अपने-अपने घरों, खेतों, संस्थानों और इलाकों तक सीमित  रहेंगे और राष्ट्रीय पर्व मनाएंगे, लेकिन जो जमात दिल्ली के भीतर सीमित इलाकों में भी ‘टै्रक्टर परेड’ करने पर आमादा है, सवाल उसी से पूछा जाए कि देश के गणतंत्र के 71 सालों में उसने राजधानी में ‘टै्रक्टर परेड’ कब निकाली है? तो इसी बार अराजकता फैलाने, सुरक्षा को तार-तार करने अथवा दुश्मन की साजि़शों को साकार करने का दुस्साहस क्यों किया जा रहा है? दिल्ली पुलिस के विशेष आयुक्त (खुफिया) दीपेंद्र पाठक ने खुद खुलासा किया है कि परेड के दौरान भ्रम फैलाने, वैमनस्य पैदा करने और अफवाहें फैलाकर अनहोनी और आतंकी हमला करने के मंसूबों के मद्देनजर पाकिस्तान में 308 ट्विटर हैंडल सक्रिय किए गए हैं। हालांकि ताज़ा सूचना के मुताबिक, खुफिया और पुलिस एजेंसियों ने उन्हें ‘ब्लॉक’ कर दिया है, लेकिन हजारों टै्रक्टरों की परेड और उन पर सवार असंख्य भीड़ के मद्देनजर अनिष्ट की आशंकाएं तो हैं। राकेश टिकैत, कक्काजी, दर्शनपाल, चढ़ूनी और योगेंद्र यादव सरीखे मुट्ठी भर किसान नेताओं की अपील और दिशा-निर्देश ‘पत्थर पर लकीर’ साबित होंगे, इसका दावा कैसे माना जा सकता है? बहरहाल हमारी बड़ी चिंता गणतंत्र दिवस और भारत की वैश्विक छवि को लेकर है। यदि किसान यह परेड कर लेंगे, तो क्या भारत सरकार के साथ उनकी मांगों का गतिरोध समाप्त हो जाएगा? हम इस सवाल को बेमानी मानते हैं। अलबत्ता किसानों की मांगों और आर्थिक सुधारों के गुण-दोषों के लगातार विश्लेषण के पक्षधर हम भी हैं।


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