हिमाचल स्टेट को-आपरेटिव मार्केटिंग एंड कंज्यूमर फेडरेशन यानी हिमफेड की स्थापना 1952 में हुई थी। सरकार के इस उपक्रम से 900 से ज्यादा सहकारी सभाएं जुड़ी हुई हैं। हिमफेड किसानों-बागबानों के लिए कई तरह के काम कर रहा है। आइए जानते हैं हिमफेड के एमडी केके शर्मा से। पेश है यह खास खबर…
इस बार कमाया साढ़े आठ करोड़ का मुनाफा, एमडी केके शर्मा ने किए रोचक खुलासे
प्रदेश के किसानों की लगातार मांग पर अपनी माटी टीम इस बार हिमफेड के मुख्यालय शिमला पहुंची। हमारे विशेष संवाददाता शकील कुरैशी ने हिमफेड के एमडी केके शर्मा से बात की और फेडरेशन की योजनाएं जानीं। केके शर्मा ने बताया कि पिछले साल हिमफेड को साढ़े आठ करोड़ का लाभ हुआ है। एक दौर वह भी था, जब हिमफेड घाटे में चल रहा था। खैर, अब आगामी समय में यह और बढ़ सकता है। शर्मा ने बताया कि हिमफेड से 900 से ज्यादा सहकारी सभाएं जुड़ी हुई हैं, जिनके जरिए खरीद फरोख्त का काम आगे बढ़ता है। आने वाले दिनों में किसानों की सुविधा के लिए कई नए स्टोर बनाए जा रहे हैं। इससे किसानों और बागबानों को मार्केटिंग में और आसानी होगी। एक सवाल पर शर्मा ने बताया कि बीते अप्रैल से लेकर दिसंबर तक किसानों को आठ हजार मीट्रिक टन खाद मुहैया करवाई गई है। इसके अलावा पिछली बार सेब के भी बागबानों को बेहतर दाम मिले हैं। उन्होंने बताया कि किसानों और बागबानों के लिए प्रूनिंग से लेकर कटिंग तक हर तरह के उपकरण मुहैया करवाए जा रहे हैं। डिमांड बढ़ेगी, तो आने वाले समय में इन उपकरणों की संख्या और बढ़ाई जाएगी।
रिपोर्ट: विशेष संवाददाता, शिमला
हिमपात ने लौटाई बहार
हिमाचल के ऊंचाई वाले इलाकों में ताजा हिमपात फ्रूट के लिए बड़ी राहत लाया है। अपर शिमला, कुल्लू,सिरमौर, सोलन, चंबा जिलों के अलावा धौलाधार पर फिर से बड़ी सफेद परत बन गई है। बागबानों का कहना है कि अब यह हिमपात सेब के लिए संजीवनी जैसी है। वहीं बागबानी और कृषि एक्सपर्ट भी राहत भरा बता रहे हैं।
दराटी को आराम आ गई घास काटने वाली मशीन चैप कटर
खेती में आए दिन नई-नई तकनीकें आ रही हैं, जिसका किसान भाइयों को खूब फायदा मिल रहा है। इस दिशा में हिमाचल ने एक और कदम बढ़ाया है। पढि़ए, यह खबर…
हमीरपुर पहुंची घास काटने की मशीनों की खेप, 50 फीसदी सबसिडी पर भी मिलेगी
डा. जीत सिंह ठाकुर, उपनिदेशक, कृषि विभाग हमीरपुर
रिपोर्टः कार्यालय संवाददाता, हमीरपुर
गर्म शाहपुर में सेब की नर्सरी तैयार
पिछले एक दशक से हिमाचल के गर्म इलाकों में सेब तैयार किया जा रहा है। इस दिशा में अब कांगड़ा जिला के एक और बागबान ने बड़ा कदम बढ़ाया है। पेश है यह खास खबर
रिपोर्टः दिव्य हिमाचल ब्यूरो, धर्मशाला
10 माह बाद ट्रेनिंग कैंप शुरू
खेती में कुछ नया करने की चाह रखने वाले किसानों का इंतजार खत्म हो गया है। लंबे समय बाद यूनिवर्सिटी के ट्रेनिंग कैंप शुरू हो गए हैं। देखिए यह खबर
प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय ने लगभग दस महीने के बाद प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रारंभ कर दिए हैं। गत वर्ष, मार्च माह के अंतिम सप्ताह में लॉकडाउन की घोषणा के बाद ट्रेनिंग कार्यक्रम रोकने पडे़ थे, लेकिन अब सभी एसओपी के तहत कैंप शुरू कर हो गए हैं। इसी कड़ी में मुख्यमंत्री नूतन पोलीहाउस परियोजना’’ के तहत 1500 किसानों को सब्जी पर ट्रेनिंग दी जाएगी।
इसके अलावा कृषि, पशुपालन, मशरूम पोल्ट्री पर पचास कैंप लगाए जाएंगे। अपनी माटी टीम के सीनियर जर्नलिस्ट जयदीप रिहान ने रही महिलाकिसानों व कृषि विवि के जनसंपर्क विभाग के संयुक्त निदेशक डा हृदयपाल सिंह से बात की। उन्होंने कहा कि ऐसे कार्यक्रम खेती के लिए मील का पत्थर साबित होंगे। वहीं महिला किसानों ने इस मुहिम का स्वागत किया है।
रिपोर्टः कार्यालय संवाददाता, पालमपुर
आधे रेट पर लें बढि़या बीज
केसर की सुगंध से महका कश्मीर
श्याम सुंदर भाटिया
लेखक सीनियर जर्नलिस्ट और रिसर्च स्कॉलर हैं (भाग-4)
भारत में केसर को कई नामों से जाना जाता है, कहीं कुंकुम तो कहीं जाफरान तो कहीं सैफरॉन कहा जाता है। दुनिया में केसर की कीमत इसकी क्वालिटी पर आंकी जाती है। दुनिया के बाजारों में कश्मीरी केसर की कीमत तीन लाख से लेकर पांच लाख रुपए प्रति किलोग्राम तक है। कश्मीरी केसर को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। ईरान की नागिन केसर ने भी बाजार में कदम रख दिए हैं। स्वाद और रंग में कश्मीरी केसर को चुनौती दे रही नागिन केसर महज 80 हजार रुपए किलो है। स्पेनिशन केसर भी नया विकल्प बनकर तैयार है। यह 1.35 लाख रुपए की एक किलो है। केसर के पौधों में अक्तूबर के पहले सप्ताह में फूल आने शुरू हो जाते हैं।
नवंबर में यह फसल तैयार हो जाती है। भारत में केसर की सालाना मांग करीब 100 टन है, लेकिन हमारे देश में इसका औसत उत्पादन करीब छह-सात टन ही होता है। ऐसे में हर साल बड़ी मात्रा में केसर का आयात करना पड़ता है। जम्मू-कश्मीर में करीब 2.825 हेक्टेयर में केसर की खेती हो रही है। केसर का कटोरा भले ही अभी तक कश्मीर तक सीमित था, लेकिन अब इसका जल्द ही भारत के पूर्वोत्तर तक विस्तार हो रहा है। केसर के पौधे सिक्किम में रोप दिए गए हैं। ये पौधे पूर्वोत्तर राज्य के दक्षिण भाग स्थित यांगयांग में फल फूल रहे हैं। सीएसआईआर. आईएचबीटी ने केसर उत्पादन की तकनीक विकसित की है। इसका उपयोग उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के गौर परंपरागत केसर उत्पादक क्षेत्रों में किया जा रहा है। सीएसआईआर आईएचबीटी के निदेशक डा. संजय कुमार आशांवित हैं, केसर की पैदावार बढऩे से इम्पोर्ट पर निर्भरता कम होगी। उल्लेखनीय है कि कश्मीर में सियासी अस्थिरता के चलते केसर का रकबा भी घट गया है।
पहले केसर की खेती 3,715 हेक्टेयर में होती थी। 2010 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने नेशनल सैफरॉन मिशन लंच किया था, ताकि केसर के प्रोडक्शन और रकबे में इजाफा हो सके, लेकिन निराशा ही मिली। दुनिया में केसर के उत्पादन में 90 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले ईरान में 60 हजार हेक्टेयर जमीन में इसकी खेती होती है। केसर खाने में कड़वा होता है, लेकिन व्यंजनों के स्वाद को लाजवाब कर देता है। बताते हैं कि डेढ़ लाख फूलों से करीब एक किलो सूखा केसर प्राप्त होता है, इसीलिए दुनिया में इसे सोने के मानिंद बेशकीमती माना जाता है। (संपन्न)
विशेष कवरेज के लिए संपर्क करें
आपके सुझाव बहुमूल्य हैं। आप अपने सुझाव या विशेष कवरेज के लिए हमसे संपर्क कर सकते हैं। आप हमें व्हाट्सऐप, फोन या ई-मेल कर सकते हैं। आपके सुझावों से अपनी माटी पूरे प्रदेश के किसान-बागबानों की हर बात को सरकार तक पहुंचा रहा है। इससे सरकार को आपकी सफलताओं और समस्याओं को जानने का मौका मिलेगा। हम आपकी बात स्पेशल कवरेज के जरिए सरकार तक ले जाएंगे।
edit.dshala@divyahimachal.com
(01892) 264713, 307700 94183-30142, 94183-63995
पृष्ठ संयोजन जीवन ऋषि – 98163-24264