आइए सीखते हैं जीवामृत बनाना बीजामृत

By: Feb 14th, 2021 12:10 am

अपनी माटी के पास सैकड़ों किसानों ने जीवामृत बनाने की विधि पूछी थी। इस पर हमारी टीम ने नौणी यूनिवर्सिटी का दौरा किया, जहां एक्सपर्ट ने कई अहम टिप्स दिए। पेश है यह खास खबर…

नौणी यूनिवर्सिटी के एक्सपर्ट ने दिए टिप्स

देशभर में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के प्रति लोगों की रुचि बढ़ रही है। लोग लगातार जीवामृत और बीजामृत को अपना रहे हैं।  ऐसे हजारों किसान हैं, जो जीवामृत तैयार करने की विधि नहीं जानते हैं। इन्हीं किसानों की सुविधा के लिए अपनी माटी टीम ने नौणी यूनिवर्सिटी में प्रिंसीपल साइंटिस्ट सुभाष वर्मा से बात की।

सुभाष वर्मा ने बताया कि जीवामृत बनाने के लिए हमें गोबर, गोमूत्र और पानी का घोल बनाना पड़ता है। इसमें गुड़ और बेसन भी मिलाया जाता है। करीब 48 घंटे के बाद जीवामृत बन जाता है। इसे 15 दिन के अंतराल में फसलों पर छिड़काव किया जा सकता है। जहां तक बीजामृत का सवाल है, तो इसे भी गोबर, गोमूत्र और चूने से तैयार किया जाता है। पौधे को लगाने से पहले आधे घंटे तक इसमें ट्रीट किया जा सकता है। अगर किसान भाई इन नेचुरल चीजों को अपनाते हैं, तो आने वाले समय में खेती में बेहतर रिजल्ट मिल सकते हैं।

रिपोर्टः निजी संवाददाता, नौणी

पहले मिट्टी की जांच करवाएं फिर करें बिजाई

काश,  सभी किसान और बागबान भाइयों को यह पता चल जाए कि उनकी जमीन में कौन सी फसल हो सकती है। ऐसा हो सकता है। यह बेहद आसान है। किसानों को मिट्टी की जांच के लिए मुहिम चल पड़ी है। पढि़ए यह खबर…

हिमाचल में मृदा परीक्षण के लिए छिड़ी बड़ी मुहिम

पहाड़ी प्रदेश हिमाचल खुद में कई विशेषताओं को समेटे हुए है। कहीं पहाड़ हैं, तो कहीं मैदान। कहीं बंजर जमीन है, तो कहीं पलम। ऐसे में इस प्रदेश में मृदा परीक्षण का महत्त्व बढ़ जाता है। यानी जैसा इलाका, उसमें वैसी ही फसल बीजी जाए। कृषि विभाग मृदा परीक्षण पर किसानों को जागरूक कर रहा है। अपनी माटी टीम ने कृषि विभाग की सूचना  अधिकारी पुष्पा वर्मा से बात की। उन्होंने बताया कि प्रदेश में मृदा जांच के लिए नौ मोबाइल, 11 अचल व 47 मिनी मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं की सुविधा दी गई है। इनमें किसान अपने खेतों की मिट्टी की जांच करवा सकते हैं। सभी किसानों को निशुल्क मृदा स्वास्थ्य कार्ड भी वितरित किए जा रहे हैं। अगर किसान इस सुविधा का फायदा उठाते हैं,तो उनकी फसलें खराब नहीं होंगी।

रिपोर्टः सिटी रिपोर्टर, शिमला

बल्ह क्षेत्र में गेहूं की फसल पर पीला रतुआ का हमला

प्रदेश के कई इलाकों में  गेहूं की फसल पर पीला रतुआ रोग ने हमला कर किसानों को चिंता में डाल दिया है।  विभाग की ओर से कृषि विषयवाद विशेषज्ञ खंड बल्ह रामचंद्र चौधरी ने बताया कि  वह किसानों की फसलों का जायजा लेने के लिए वह क्षेत्र का  लगातार  दौरा कर रहे है। जहां प्रारंभिक अवस्था में गेहूं की फसल को आंशिक नुकसान पहुंचा है तथा अभी दवा का छिड़काव कर इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि पीला रतुआ बीमारी में गेहूं की पत्तों पर पीले रंग का पाउडर बनता है। जिसे हाथ से छूने पर हाथ पीला हो जाता है। रतुआ रोग फंफूदजनित बीमारी है कम तापमान और अधिक आर्द्रता होने से यह बीमारी फैलती है। किसानों को सलाह दी गई है कि  रोग का लक्षण मिलने पर प्रोपिकॉनाजोल दवा एक मिली लीटर प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए तथा एक बीघे के लिए 60 मिली लीटर  दवाई 60 लीटर पानी मे घोल कर छिड़काव करें। इसे जरूरत के अनुसार 10-15 दिन में दोहराया जाए।

रिपोर्टः निजी संवाददाता-रिवालसर

मधुमक्खियों का काल बन रहा किसानों बागबानों का गलत स्प्रे शैड्यूल

खड़ीहार इलाके में गलत स्प्रे से एक मधुमक्खी पालक की लाखों मधुमक्खियां देखते ही देखते बनी काल का ग्रास

जिला कुल्लू में फसलों पर किसानों-बागबानों द्वारा गलत तरीके से की जा रही कीटनाशकों की स्प्रे मधुमक्खियों के लिए काल बन रही है। जिला में फरवरी माह के आगाज के साथ बागबान अपने बागानों में छिड़काव करने में जुटे हैं तो किसानों ने भी लहसुन, मटर, सरसों और अन्य फसलों पर स्प्रे का कार्य आरंभ कर दिया है, लेकिन कुछ किसानों-बागबानों द्वारा गलत तरीके और गलत समय में किए जा रहे छिड़काव मधुमक्खियों के लिए भारी पड़ रहे हैं।

जानकारी के अनुसार जिला कुल्लू के खड़ीहार इलाके में गलत स्प्रे के कारण यहां के एक मधुमक्खी पालक की मधुमक्खियां काल का ग्रास बनी है। मामला सोमवार का है जब घाटी के एक प्रमुख मौनपालक देवेंद्र ठाकुर की मधुमक्खियां इसका शिकार हुई है। उन्होंने  बताया कि किसी व्यक्ति द्वारा कीटनाशक का छिड़काव गलत समय पर किया गया है और इसके कारण करीब 80 फ्रेमों की दुर्लभ सेरेना प्रजाति की मधुमक्खियां मर गई है और बड़ा नुकसान हुआ है। एक बॉक्स में आठ से दस फ्रेंमें होती है जिसमें पांच से छह हजार मधुमक्खियां होती है और इसके अनुसार दस से 12 बॉक्सों की मधुमक्खियां देखते ही देखते समाप्त हो गई है। उन्होने घाटी के किसानों व बागबानों से आग्रह किया है कि गलत समय पर स्प्रे न करें, ताकि मधुमक्खियों को बचाया जा सके।

  बता दें कि कुल्लू घाटी में मधुमक्खियों की भूमिका फरवरी से अप्रैल तक बहुत ज्यादा सेब और अन्य फसलों की पॉलीनेशन में होती है। पॉलीनेशन के लिए कई बागबान मधुमक्खीपालों से संपर्क साधते हैं और बक्सों को अपने बगीचों में रखते हैं, लेकिन कुछ किसान-बागबान गलत तरीके से छिड़काव कर मधुमक्खियों को ही मार देते हैं। इससे पॉलीनेशन प्रभावित होती है और फसल कम होती है। जिला कुल्लू के बजौरा में स्थित बागबानी अनुसंधान केंद्र के प्रभारी डा. भूपिंद्र ठाकुर के अनुसार किसानों-बागबानों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि दोपहर के समय छिड़काव न करे, क्योंकि इस दौरान एक तो हवा बहुत ज्यादा होती है और दूसरा गर्मी होने के कारण मधुमक्खियां भी छते से बाहर निकलकर पराग चूस रही होती है। दोपहर में मधुमक्खियों का मूवमेंट सबसे ज्यादा होता है। उनके अनुसार किसानों-बागबानों को सुबह-शाम कीटनाशकों का छिड़काव करना चाहिए, ताकि मित्र कीटों को कोई नुकसान न हो सके। उनके अनुसार सेरेना मधुमक्खी की प्रजाति बहुत कम हो रही है और इसका संरक्षण करना भी सभी का दायित्व है। बहरहाल, कुल्लू में किसानों बागबानों का गलत स्प्रे शैड्यूल मधुमक्खियों की जिंदगी पर भारी पड़ रहा है।

रिपोर्टः स्टाफ रिपोर्टर, भुंतर

कृषि विश्वविद्यालय में बना गोल्डन जुबली न्यूट्रिशन गार्डन

मौजूदा समय स्मार्ट खेती करने का है। बात चाहे मशीनों की हो या फिर खाद की, हर जगह तेजी से बदलाव आ रहा है। इसी कड़ी में पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय ने नया-नया प्रयास किया है

प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय  में गोल्डन जुबली न्यूट्रिशन गार्डन स्थापित किया गया है। यह गार्डन 19 करोड़ रुपए की सीए एएसटी-एनएएचईपी परियोजना की पर्यावरण स्थिरता योजना की अवधारणा पर आधारित है, जिससे जमीन के छोटे से हिस्से में व्यवस्थित तरीके से संरक्षित खेती और प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए लोगों को प्रेरित किया जाएगा।  इन बागीचों से लोगों को उनके घर द्वार पर पोषित आहार बन जाएगा। इन बागीचों से खाद्य सुरक्षा और लोगों की आय भी बढ़ेगी।  अपनी माटी टीम के सीनियर जर्नलिस्ट जयदीप रिहान ने इस गार्डन क्षेत्र का दौरा किया। यह गार्डन 3250 क्षेत्र में फैला है, जिसमें विभिन्न खाद्य प्रजातियों तथा औषधीय व सुगंधित पौधे शामिल होंगे। पहले चरण में इसमें सेब, आड़ू, प्लम, खुमानी, अनार और जापानी फल के 21 पौधे लगाए जाएंगे और बाद में अन्य बूटे रोपे जाएंगे। रिपोर्टः कार्यालय संवाददाता, पालमपुर

यूं रंग बदलेगा मौसम, सभी बागबान भाई ध्यान दें

अगले पांच दिनों में मौसम परिवर्तनशील रहेगा। अधिकतम और न्यूनतम तापमान 10 से 16 और माइन्स 1.0 से माइनस 5 तक होने की संभावना है। सापेक्ष आर्द्रता 22 से 64 प्रतिशत और पवन की गति एसई दिशा से 7 से 9 किमी प्रति घंटा के बीच रहेगी। यह जानकारी डा. वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय की ग्रामीण कृषि मौसम सेवा के वैज्ञानिकों ने दी। उन्होंने किसानों को सलाह देते हुए कहा कि  वे फलों के पौधों में एफवाईएम और उर्वरकों की मात्रा डालें। कारनेशन के पौधों को हरी तने की कर्तनों द्वारा प्रदेश के मध्यवर्ती क्षेत्रों में प्रवधित करें। गुलदाऊदी में जड़वो की अधिक बढ़वार के लिए सड़ी गली गोबर की खाद पौधों को दें। कारनेशन की जड़ युकित करतनों को पोलीहॉउस में 25 पौधें प्रति वर्गमीटर की दर से रोपें।

रिपोर्टः निजी संवाददाता, नौणी

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