लाहुल-स्पीति में स्नो फेस्टिवल की धूम
गतांक से आगे…
लाहुल-स्पीति से कुछ पीढ़ी तो आज भी अनजान ही है। इन्हीं त्योहारों के साथ कई तरह के खेल भी, जिन्हें जनजातीय लोग खेल कर अपनी शारीरिक क्षमता को परखते रहे हैं। कहते हैं युग बदलते देर नहीं लगता, ऐसा ही हुआ लाहुल-स्पीति के साथ। वर्षों रोहतांग के उस ओर बंद रहने के पश्चात अंततः रोहतांग सुरंग तैयार हुआ और यहीं से लाहुल-स्पीति एक नए युग में प्रवेश कर गया। लाहुल लोगों के लिए आज तक एक अनछुआ अनदेखा स्थान था, उसे अचानक खुद के इतने करीब पा कर लाखों लोगों रुक नहीं सके व अटल टनल की ओर रुख कर लाहुल के नैसर्गिक सौंदर्य को निहारने घाटी पहुंच गए। उनके मन में लाहुल-स्पीति के प्रति जो भ्रम था, वो टूट गया और इसकी सुंदरता व शांत भू भाग को देख कर आगंतुक वशीभूत हुए बिना नहीं रह सके। लोगों के लाहुल आने के रिकॉर्ड बनने लग गए, ऐसे में कुछ घटनाओं को छोड़ माहौल देखने लायक था।
अटल टनल के पश्चात सर्वप्रथम चुनौती सामने जो दिख रही है वो है अनुमान से ज्यादा घाटी में प्रवेश कर रहे पर्यटक रूपी आगंतुक और प्रशासन व स्थानीय लोगों के लिए इनके लिए मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाना। इस विषय अभी सोचा जाना है, किंतु मौसम के करवट बदलते ही घाटी उत्सव के उस दौर में पहुंच गया, जिसका सदियों से स्थानीय बेसब्री से इंतजार करते हैं। लाहुल-स्पीति को समझने के लिए कुशल प्रशासक व सरकारी सहयोग का अनोखा संगम, माननीय केबिनट मंत्री डाक्टर रामलाल मार्कंडेय व उपायुक्त श्री पंकज राय के रूप में देखने को मिला। इनके अथक प्रयास व मार्गदर्शन से स्थानीय पंचायत, महिला मंडल, पर्यटन इकाई के लोग, विभिन्न संस्थाएं, युवा वर्ग, कृषक, सभी ने मिल कर संपूर्ण घाटी को एक अनोखे उत्सव के माहौल में बदल दिया। स्नो फेस्टिवल का आगाज विधिवत रूप में घाटी के समस्त त्योहारों को उनके पंचांग अनुसार एक ही माला त्योहारों के त्योहार बना कर धरातल पर उतार दिया।
शुरुआत से ही इस उत्सव के विभिन्न स्वरूप, लाहुल-स्पीति की समृद्ध संस्कृति घाटी से बाहर दुनिया के लिए एक कौतूहल बन गया। ये उत्सव देश का दूसरा सबसे लंबा उत्सव बन गया, जो लगातार दो महीने तक चलेगा। तोद से लेकर तिंदी व चंद्रा वैली से केलांग व काजा तक लोगों में उत्साह देखने लायक है। दुनिया पहली बार समझ पाया है कि इस कबायली क्षेत्र में गोच्ची उत्सव में कन्या के जन्म पर कैसे उत्सव का माहौल होता है। हिंदू धर्म हो या बोध धर्म, इनका उत्सव में संगम देख श्रद्धा से सिर झुक जाता है। आज देश के समस्त मीडिया लाहुल- स्पीति के स्नो फेस्टिवल पर केंद्रित दिख रहा है। रोजाना लाहुल-स्पीति के प्रत्येक कौने से कुछ नया देखने को मिल रहा है। वर्फ की अप्रतीम आकृतियां देख इन कलाकारों की कला देश में धूम मचा रही है। जगह-जगह यहां के प्रचलित खेल तीर-कमान, रस्सा-कस्सी, छोलो, गीत- संगीत प्रतियोगिताओं के माध्यम से यहां की प्रतिभा सामने आ रही है। स्की व जमे हुए झरनों में चढ़ने जैसे साहसिक खेल सामने आ रहे हैं। जिस प्रकार आए दिन कुछ नए त्योहारों के विषय देश जान रहा है, उतनी ही उत्सुकता लोगों की यहां आने की बढ़ती जा रही है। किंतु सीमित साधन, मौसम की बेरुखी व लाहुल-स्पीति का विशाल क्षेत्र इन उत्सवों से रू-ब-रू होने से देश के लोगों का राह रोक रहा है। ऐसे में शून्य से 15-20 डिग्री तापमान भी बाहरी लोगों के लिए एक चुनौती है। ग्लेशियर का खतरा बना रहता है।
-प्रेम ठाकुर, लाहुल-स्पीति
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