कुल्लू के किसान अब करेंगे हाइड्रोपोनिक खेती

By: Mar 6th, 2021 12:39 am

हीरा लाल ठाकुर — भुंतर
बेमौसमी सब्जियों के उत्पादन में अव्वल रहने वाले कुल्लू के किसान अब हाइड्रोपोनिक खेती करेंगे। इस तकनीक से वे किसान भी अब खेती कर मालामाल होंगे जो कम जमीन होने के कारण खेतीबाड़ी नहीं कर पा रहे थे। कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर ने बजौरा स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में इसका कार्य आरंभ करने के संकेत दिए हैं, तो किसानों को भी इससे जोडऩे का प्लान बनाया है। लिहाजा, जिला के किसान कम जमीन होने के बाबजूद आधुनिक तरीकों से खेती करेंगे। मिली जानकारी के अनुसार कृषि विवि ने सुंदरनगर के बाद कुल्लू में इस तकनीक को बढ़ावा देने के लिए कार्य जल्द आरंभ करने का ऐलान किया है। बढ़ते शहरीकरण और आबादी के कारण खेती का रकबा कुल्लू में भी सिकुड़ रहा है तो दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन से भी फसल उत्पादन में चुनौतियां उभर रही हैं। इनसे निपटने और फसलों की बेहतर पैदावार के लिए हाइड्रोपोनिक खेती किसानों के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकती है। बता दें कि हाइड्रोपोनिक खेती की एक आधुनिक तकनीक है, जिसमें नियंत्रित जलवायु में बिना मिट्टी के पौधे उगाए जाते हैं। इस प्रकार की खेती में मिट्टी के बजाय सिर्फ पानी या फिर बालू अथवा कंकड़ों के बीच पौधों की खेती की जाती है। वैज्ञानिकों के अनुसार नियंत्रित परिस्थितियों में 15 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान पर लगभग 80 से 85 फीसदी आद्र्रता में हाइड्रोपोनिक खेती की जाती है।

वैैज्ञानिकों की मानें तो हाइड्रोपोनिक पद्धति में पौधों को पोषण उपलब्ध कराने के लिए जरूरी पोषक तत्व एवं खनिज पदार्थों से युक्त एक विशेष घोल का उपयोग किया जाता है। इस घोल में फास्फोरस, नाइट्रोजन, मैग्नीशियम, कैल्शियम, पोटाश, जिंक, सल्फर और आयरन जैसे तत्वों को खास अनुपात में मिलाया जाता है। एक निश्चित अंतराल के बाद इस घोल की एक निर्धारित मात्र का उपयोग पौधों को पोषण देने के लिए किया जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस प्रणाली की एक खास बात यह है कि छोटे भूखंड या सीमित स्थान में भी खेती की जा सकती है और यह मौसम, जानवरों व किसी भी अन्य प्रकार के बाहरी जैविक या अजैविक कारकों से प्रभावित भी नहीं होती। जानकारी के अनुसार कुल्लू जिला में कुछ किसानों ने इसकी पहल भी की है लेकिन कृषि विश्वविद्यालय बड़े स्तर पर इसका कार्य आरंभ करने की तैयारी में है। हाल ही में केवीके की वैज्ञानिक सलाहकार समिति की बैठक में भी इस पर चर्चा हुई थी और इससे जिला के कई किसानों को लाभ मिलेगा। बहरहाल, कुल्लू के किसान जल्द ही इस तकनीक से खेती कर सकेंगे। उधर, डा. केसी शर्मा, प्रभारी वैज्ञानिक, केवीके, बजौरा ने कहा कि कृषि विश्वविद्यालय सुंदरनगर के बाद बजौरा में भी जल्द ही इस तकनीक से खेती के लिए कार्य आरंभ करने जा रहा है। इससे कम जमीन वालों को राहत मिलेगी।


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