किसानों को मुनाफा

हिमाचल में फसल बीमा योजना को लेकर किसानों के मन में खूब सवाल उठते हैं। इन्हीं सवालों में से एक अहम जवाब विधानसभा सत्र के दौरान मिला है। पढि़ए यह खबर

मौसम आधारित फसल बीमा का सवा चार लाख को मिला लाभ

हिमाचल में मौसम आधारित फसल बीमा का लाभ अब तक सवा चार लाख किसानों को मिल चुका है। यह खुलासा हाल ही में विधानसभा सत्र के दौरान हुआ है। सदन में नरेंद्र बरागटा ने सवाल उठाया था कि इस योजना का लाभ कितने किसानों को मिल चुका है। इस पर बागबानी मंत्री महेंद्र सिंह ने जवाब दिया। उन्होंने बताया कि यह योजना पहली अप्रैल, 2016 से शुरू हुई थी। इसमें 2019-20 तक चार लाख चौबीस हजार तीन सौ ग्यारह बागबान लाभान्वित हुए हैं। जो बीमा कंपनियों द्वारा प्रीमियम दिया जाता है, उस राशि का पांच प्रतिशत किसान को देना होता है।

पचास-पचास प्रतिशत केंद्र व राज्य सरकारें देती हैं। कृषि विभाग ने 31 जनवरी, 2021 तक कुल पंद्रह दश्मलव 41 करोड़ प्रीमियम दिया जाता है। इसमें रबी की फसलों का ही बीमा किया जाता है। 31 जनवरी, 2021 तक बीमा कंपनियों में किसानों द्वारा एक सौ एक दशमलव जीरो आठ करोड़, प्रदेश सरकार द्वारा चौहतर प्वाइंट जीरो दो करोड़ व केंद्र सरकार तिहतर दशमलव सतहतर करोड़ की राशि जमा की गई है। साल 2016-17 में पचानवें हजार दो सौ तिरयासी पंजीकृत बागबानों को चौंतीस दशमलव बासठ करोड़ रुपए , 2017-18 में एक लाख  इकासठ हजार पांच सौ चौबीस बागबानों को उनचास दशमलव तिरयानवे करोड़ रुपए व इससे अगले साल बयासी हजार आठ सौ इकयासी बागबानों को चवालीस दशमलव जीरो आठ करोड़ मुआवजा दिया है। इसके अलावा 2019-20 में चौरासी हजार छह सौ तेइस बागबानों को आठ दशमलव चौबीस करोड़ रुपए की पहली किस्त दी है।                                                                                                              रिपोर्टः शकील कुरैशी, एचडीएम

देर से हुई बारिश बनी टॉनिक

हिमाचल में लंबे ड्राई स्पैल के बाद बारिश हुई है। इसे मौसम विज्ञानी फसलों के लिए फायदेमंद बता रहे हैं। इन दिनों गेहूं की फसल तैयार होने को है। इस पर बारिश का क्या असर है, पढि़ए यह खबर…

नकदी फसलों के लिए एक्सपर्ट डा. प्रदीप ने दी किसानों को सलाह

हिमाचल में तीन दिन हुई बारिश ने किसानों और बागबानों में उम्मीदें तो जगाई हैं। इससे चंगर और प्लम इलाकों में गेहूं समेत अन्य नकदी फसलों पर अच्छा असर हुआ है। इसी की पड़ताल के लिए हमारे सीनियर जर्नलिस्ट जयदीप रिहान ने  डा प्रदीप कुमार से बात की। डा. प्रदीप कुमार जीव विज्ञान स्कूल, केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला में डीन हैं। उन्होंने अपनी माटी को बताया कि गेहूं में मुख्यतर् तीन- चार चरणों में सिंचाई की जरूरत होती है। पहली स्टेज वह है, जब गेहूं 20 से 25 दिन की होती है, वहीं दूसरी स्टेज वह है जब फसल 40 से पचास दिन की होती है। तीसरी स्टेज 70 से 75 दिन की होती है। इसी तरह एक अन्य स्टेज वह है,जब फसल तैयार होने को होती है। ऐसे में ताजा बारिश काफी हद तक फायदेमंद रही है।

बाक्स बंपर फसल की उम्मीदें धड़ाम

खेती और बागबानी के माहिरों का मानना है कि इस बारिश ने आने में देर कर दी है। बेशक शिमला से लेकर चंबा तक बारिश हुई है, पर चंगर में महज एक फुट तक झुलसी पड़ी गेहूं में अब प्राण नहीं आ पाएंगे। प्लम एरिया की बात की जाए,तो वहां भी खड्डें और नाले सूखे पड़े हैं। कांगड़ा, चंबा,ऊना, हमीरपुर व बिलासपुर जैसे जिलों में गेहूं के अलावा प्याज, लहसुन, गोभी, धनिया,आलू जैसी फसलों को खूब नुकसान हुआ है।

200 क्विंटल आलू उगाता है यह आईटी एक्सपर्ट

नगरोटा बगवां की लाखामंडल पंचायत का युवा खेती के साथ चला रहा मैट्रोमोनियल साइट, कइयों को रोजगार दे रहे सतीश मलांच

नगरोटा बगवां के पठियार, जदरांगल और लाखामंडल आदि गांवों का आलू अपने अनूठे स्वाद के लिए दुनिया भर में मशहूर है। इन इलाकों के किसान आलू के साथ गेहूं और धान भी खूब उगाते हैं। इन्हीं में से एक होनहार किसान और आईटी एक्सपर्ट हैं सतीश मलांच। सतीश लाखामंडल पंचायत के रहने वाले हैं। अपनी माटी टीम को मिली जानकारी के अनुसार किसान परिवार में जन्मे सतीश हर सीजन में 200 क्विंटल तक आलू पैदा कर रहे हैं। इसके अलावा गेहूं और धान की नई किस्मों में भी खूब हाथ आजमा रहे हैं। सतीश ने बताया कि सब ठीक रहा,तो दो सौ बोरी आलू की पैदावार तय है।

सतीश को हर तरह की देशी और अंग्रेजी खाद का पूरा ज्ञान है। वह किसानों को नई तकनीकों से खेती के लिए भी प्रेरित करते हैं। अपने दूसरे प्रोजेक्ट को लेकर उन्होंने बताया कि हिमाचल में ग्रेजुएशन के बाद दिल्ली में एमएससी आईटी और एमसीए की पढ़ाई की है। साल 2009 में एक छोटी सी ऑटोमोबाइल कंपनी में आईटी एग्जीक्यूटिव से शुरुआत करने के बाद 2020 आते-आते कई बड़ी और प्रतिष्ठित एमएनसी में आईटी मैनेजर के तौर पर देश-विदेश में कई प्रोजेक्ट्स कंप्लीट किए। इसी बीच उन्होंने साल 2015 में हिमाचल रिश्ता डॉट कॉम के नाम से अपनी मैट्रोमोनियल साइट शुरू की। समय के साथ अगस्त 2018 में उन्होंने इसी साइट की ऐप लॉंच की,जिसके अब 12 वर्जन अपडेट हो चुके हैं। इस साइट के 70 हजार एक्टिव यूजर हैं, वहीं 90 हजार ऐप डाउनलोड हैं। वेब पेज पर रोजाना 25 हजार व्यूज हैं। रोजाना 140 नए पंजीकरण होते हैं।

साल 2020 में सतीश ने अपने स्टार्टअप को फुल टाइम देने का फैसला लिया और डेढ़ लाख रुपए महीना की नौकरी छोड़ कर ऑनलाइन मैच मेकिंग, अस्सिटेड मैट्रीमोनी सर्विसेज के लिए नई टीम का गठन किया, साथ में हिमाचल, उत्तराखंड के अलावा वर्ल्डवाइड मैट्रीमोनीयल पोर्टल रिश्ता गुरु डॉट कॉम लांच किया। अभी उन्होंने नगरोटा बगवां स्थित आफिस में 16 युवाओं को रोजगार उपलब्ध करवा रखा है । अब वह खेती और अपने काम को इंज्वाय कर रहे हैं। सतीश मलांच से नए आइडिया जानने के लिए किसान भाई 9459143712 पर संपर्क कर सकते हैं।

सिंचाई का इंतजाम करे सरकार

सतीश कहते हैं कि नगरोटा बगवां में आलू की खेती को लेकर अब तक सरकारों ने कोई बड़े प्रयास नहीं किए हैं। आलू वाली बैल्ट में गर्मियों में सिंचाई की दिक्कत होती है, वहीं इस क्षेत्र में आलू आधारित उद्योग का न लग पाना उन्हें दुखी करता है। प्रदेश सरकार अगर आलू आधारित उद्योग लगाती है,तो सैकड़ों युवाओं को घर बैठे रोजगार मिलेगा।

गांवों में खूब गूंज रहा ढोलरू गायन, पहाड़ के देहात में कायम है माटी की खुशबू

भटेहड़ वासा। हिमाचल को देवभूमि यूं ही नहीं कहा जाता। समृद्ध परंपराएं इस पहाड़ी प्रदेश को औरों से अलग बनाती हैं। हिमाचल के अनूठे रीति-रिवाजों में बेहद खास स्थान है ढोलरू गायन का। ढोलरू गायन चैत्र माह में गाया जाता है। ग्रामीण कलाकार घर-घर जाकर ढोलरू गायन करते हैं। इस दौरान शानदार तरीके से माता-पिता की सेवा करने के लिए प्रेरित किया जाता है। साथ ही गुरु और परमात्मा की महिमा का भी गुणगान किया जाता है। ढोलरू का फु ल वीडियो देखने के लिए अपनी माटी का यह अंक जरूर देखें।

न थकेंगे न रुकेंगे, संघर्ष जारी है

धरती माता कहती है कि तुम मुझे एक दाना दो, मैं तुम्हें सौ लौटाउंगी। यह किसान की हिम्मत है कि एक से सौ दाने का सफर वह अपने पसीने से तय करता है। यही किसान जब आंदोलन करे,तो उसमें भी अलग बात होगी। यह तस्वीर नालागढ़ की है,जिसमें किसान जोश से लबरेज नजर आ रहे हैं। मानों यह कह रहे हों कि वे अभी थके नहीं हैं। नए कृषि कानूनों की वापसी तक संघर्ष करेंगे। किसान आंदोलन का हिमाचल में भी खूब असर दिखा है। शिमला,मंडी,कांगड़ा, चंबा और सोलन व सिरमौर में खूब आक्रोश देखने को मिला है। यह तस्वीर भी यही बयां कर रही है कि यह आंदोलन अभी थमने वाला नहीं है। बहरहाल इस  रैली में ही करीब 150 ट्रैक्टरों पर किसानों ने बैठ कर रोष प्रदर्शन किया था।   रिपोर्टः कार्यालय संवाददाता नालागढ़

हिमाचल ने पस्त किया पंजाब-राजस्थान का मटर, देश की मंडियों में बढ़ी डिमांड

हिमाचली मटर की अकसर देश भर में डिमांड रहती है। पहाड़ के मटर की मिठास उसे मैदानों की फसलों से अलग बनाती है। पढि़ए यह खबर

देशभर में हिमाचली मटर की डिमांड बढ़ने लगी है। इस बार आलम यह है कि पंजाब व राजस्थान को पछाड़ कर हिमाचली मटर सब्जी मंडी में 38 रुपए किलो तक बिक रहा है। मैदानी राज्यों में मटर का सीजन एक सप्ताह के बाद समाप्त हो जाएगा, ऐेसे में पहाड़ी मटर को और अच्छे भाव मिलने की संभावना है। सोलन मंडी की बात की जाए, तो यहां सोलन के अलावा सिरमौर के भी किसान आते हैं।

किसानों ने बताया कि शुरू में मटर 30 रुपए किलो बिक रहा था,जो अब 38 रुपए पहुंच गया है। इस मंडी में एक सप्ताह में करीब छह हजार क्विंटल मटर पहुंचा है। कारोबारियों ने बताया कि सबसे ज्यादा सप्लाई दिल्ली की आजादपुर मंडी में की जा रही है।

खास बात यह है कि पंजाब और राजस्थान के मटर को किलो के  महज 15 रुपए मिल रहे हैं, जबकि हिमाचल के मटर को इससे डबल से ज्यादा भाव मिल रहे हैं। कुल मिलाकर हिमाचली मटर देश भर की मार्केट में पसंद बन गया है।

रिपोर्टः कार्यालय  संवाददाता, सोलन

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