टिक्कर में वर्षों से मिठास घोल रहे शक्ति चंद
गन्ने की खेती कर हर साल बनाते हैं कई क्विंटलों शक्कर-गुड़, मेहनत के दम पर खाली खीसा भर रहा गलोड़ का किसान
निजी संवाददाता—गलोड़
हजारों औषधीय गुणों से भरपूर गुड़ व शक्कर प्राचीन काल से ही हर रसोई की शान रहा है। हालांकि बदलते वक्त के साथ किचन में चीनी ने भी दस्तक दी, लेकिन गुड़ व शक्कर की महत्ता कम नहीं हो पाई। बुजुर्ग लोग आज भी गुड़-शक्कर को खाने में तवज्जो देते हैं। यही नहीं चीनी के मुकाबले आसानी से बनाए जाने वाले इस गुड़ व शक्कर को लोगों ने अजीविका के रूप में भी अपनाया है। ब्राहलड़ी पंचायत के टिक्कर गांव में बुजुर्ग शक्ति चंद वर्षों से गुड़ व शक्कर बनाने का कारोबार कर अपने परिवार का पालन-पोषण करते आ रहे हैं। हालांकि एक जमाने में गुड़ व शक्कर बनाने के लिए बेलन घुमाने का कार्य बैलों से करवाया जाता था, लेकिन समय के साथ साथ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों ने उनका काम आसान और तेज कर दिया है। जहां वह पहले बमुश्किल दिन में पांच से दस किलो गुड़ व शक्कर ही बना पाते थे वहीं आज आधा क्विंटल गुड़ भी दिन में बना लेते हैं। उनके गुड़ की डिमांड इतनी है कि हमीरपुर शहर के कई दुकानदार भी ऑन डिमांड उनसे गुड़ व शक्कर खरीद कर ले जाते हैंं। कारण यह है कि जब डिमांड आती है वह उसी दौरान ताजा गुड़ व शक्कर बनाकर देते हैं, फिर चाहे किसी की डिमांड एक किलोग्राम की हो या फिर दस से 50 किलोग्राम की। बुजुर्ग शक्ति चंद की मेहनत का हर कोई कायल है।
सीजन में निकालते हैं 70 क्विंटल शक्कर-गुड़
बुजुर्ग शक्ति चंद 30 कनाल भूमि में उगाए गए गन्ने से सीजन में 60 से 70 क्विंटल तक गुड़ व शक्कर निकालते हैं। शक्ति चंद का कहना है कि वर्षों से कमांदी का काम करते आ रहे हैं। बिजाई के दौरान मजदूरों का सहारा लेते हैं। बाद में गुडाई व कटाई के लिए भी मजदूर लगाते हैं। उन्होंने बताया कि इस कोरोबार ने उनके परिवार को पालन पोषण हो रहा है। शक्ति चंद का कहना है कि शक्कर व गुड़ की काफी डिमांड रहती है। बेशक इसे तैयार करने में काफी मेहनत होती है, लेकिन मेहनत का फल मीठा ही होता है। उन्होंने उन युवाओं से ही आह्वान किया है, जो बेरोजगार होने की बात करते हैं। उनका कहना है कि स्वरोजगार अपनाकर बेरोजगारी दूर की जा सकती है।
30 कनाल भूमि में करते हैं गन्ने की खेती
टिक्कर गांव के शक्ति चंद 30 कनाल जमीन में गन्ने की खेती करते हैं। जैसे ही गन्ने की फसल तैयार हो जाती है, वैसे ही गुड़ व शक्कर बनाने का काम शुरू कर देते हैं। इसमें वह छह से सात लोगों का सहारा लेते हैं। सीजन के दौरान जहां छह से सात लोगों को रोजगार मिलता है, वहीं लोगों को टिक्कर गांव में ही देशी शक्कर व गुड़ उपलब्ध हो जाता है। दूर-दराज क्षेत्रों से ही लोग यहां पहुंचकर गुड़ व शक्कर लेकर जाते हैं। कई लोग तो अपने परिवार के लिए ही 15 से 20 किलोग्राम शक्कर लेकर जाते हैं। दुकानदार भी एडवांस में देसी गुड़ व शक्कर के लिए डिमांड देते हैं।
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