तुलसी-अश्वगंधा से लिखेंगे कामयाबी की कहानी

By: Mar 14th, 2021 12:09 am

क्लस्टर बनाकर खेती करने वाले किसानों को मार्केट भी मिलेगी

औषधीय पौधे उगाने वाले किसानों के लिए राहत भरा समाचार है। इन किसानों को अब अपनी पैदावार बेचने के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। इन्हें मार्केट भी मुहैया करवाई जाएगी। पढि़ए बिलासपुर से यह खबर…

बिलासपुर जिला में ऐसे सैकड़ों किसान हैं, जो आयुर्वेद विभाग के तहत चल रही योजना के दायरे में औषधीय पौधे उगा रहे हैं। ये किसान तुलसी, अश्वगंधा, ऐलोवेरा और शतावरी जैसे प्लांट उगा रहे हैं। विभाग के तहत स्टेट मेडिसिनिल प्लांट बोर्ड के प्रयासों से ये किसान 24 बीघे का एक क्लस्टर बनाकर इन पौधों को उगा रहे हैं। अकसर देखने में आया है कि ये किसान पौधों मार्केट न मिलने की शिकायत करते हैं। इसी के मद्देनजर अब बिलासपुर में जड़ी बूटी सम्मेलन हो रहा है। इसमें जिला भर से टॉप के 150 फार्मर्ज पहुंचे हैं। स्टेट मेडिसिनिल प्लांट बोर्ड के नोडल अधिकारी डा अभिषेक ठाकुर ने बताया कि  बोर्ड का यह प्रयास है कि किसानों का इन पौधों को खरीदने वाली कंपनियों से करार करवा लिया जाए, ताकि वे बेफिक्र होकर इन पौधों की खेती करें। मौजूदा समय में अकेले बिलासपुर में भी किसानों ने पांच क्विंटल के करीब तुलसी उगाई है। अगर यह प्रयास  सफल रहा,तो आने वाले दिनों में यह किसानों की इनकम का बड़ा जरिया बन जाएगा। गौर रहे कि तुलसी का एक पंचाग यानी जड़ से लेकर पूरा पौधा 80 रुपए किलो बिकता है, वहीं  अश्वगंधा की जड़ें 80 से 100 रुपए किलो बिकती हैं।

एक टन ट्राउट पैदा करने वाला इंजीनियर

एक टन ट्राउट पैदा करता है शाहपुर का इंजीनियर,  हार बोह पंचायत के पप्पू राम ने लिखी कामयाबी की इबारत

यूं तो हिमाचल की बरोट वैली ट्राउट के लिए मशहूर है, लेकिन इस बार हम अपनी माटी में आपको एक एरिया में ले जाएंगे,जो ट्राउट का नया हब बन गया है। हम यहां बात कर रहे हैं शाहपुर हलके के तहत आने वाली पंचायत हार बोह की। धारकंडी के तहत आने वाली हार बोह पंचायत में होनहार फार्मर पप्पू राम ने पांच फिश पौंड तैयार कर लिए हैं। इसके अलावा उनकी हैचरी भी काम कर रही है। हार बोह दुर्गम और ठंडा इलाका है। ऐसे में यहां ट्राउट मछली खूब हो रही है। पप्पू राम ने अपनी माटी टीम को बताया कि वह 2016 से इस कारोबार से जुड़े हुए हैं। वह साल में एक टन तक ट्राउट मछली की पैदावार कर रहे हैं। तीन माह में यह मछली तैयार हो जाती है। पिछले एक सीजन में उन्होंने 12 क्विंटल मछली तैयार की थी, जिसे उन्होंने सात लाख बीस हजार में बेचा था। उन्हें उस समय फिश पौंड पर 80 फीसदी सबसिडी मिली थी। आज पप्पू राम सफलतापूर्वक इस कारोबार को कर रहे हैं। समूचे हिमाचल को पप्पू जैसे होनहार युवाओं पर गर्व है।

इतने तापमान में पलती है ट्राउट

ट्राउट कम तापमान में खूब फलती फूलती है। पानी का तापमान 14 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नहीं होना चाहिए। पप्पू कहते हैं कि जब तापमान माइनस में हो, तब फीड कम करनी पड़ती है। जब पारा ज्यादा होता है,तब फीडिंग बढ़ा सकते हैं।

हैचरी भी की तैयार

पप्पू को बरोट से मछली बीज मंगवाना पड़ता था। इन चक्करों से बचने के लिए अब उन्होंने अपनी हैचरी तैयार कर ली है। यह 25 लाख का प्रोजेक्ट है। इस हैचरी मेें चार लाख बीज तैयार होते हैं। इसमें फीमेल और मेल सीड का अनुपात 60ः 40 रखना होता है।

केवल पठानिया का है आइडिया

धारकंडी में पप्पू और उन जैसे कई फार्मर्ज को यह आइडिया केवल पठानिया ने दिया था। उस समय केवल पठानिया वन निगम के उपाध्यक्ष रहे। मौजूदा समय में प्रदेश कांग्रेस महासचिव पद पर तैनात केवल पठानिया कहते हैं कि उनका प्रयास है कि जिस स्थान की जैसी जलवायु है, वहां के फार्मर्ज के लिए वैसी ही योजना तैयार की जाए।

तीन माह में तैयार

ट्राउट फिश तीन माह में तैयार हो जाती है। इसका स्टैंडर्ड साइज तीन सौ ग्राम है। इसकी दो मुख्य किस्में हैं। रेनबो और ब्राउन। एक फिश पाउंड 51 मीटर लंबा, चार फीट चौड़ा और पांच फीट गहरा होता है।

नौणी यूनिवर्सिटी में तैयार हो रहा बड़ा साइंटिफिक मैनपावर

डा. यशवंत सिंह परमार यूनिवर्सिटी ऑफ हार्टीकल्चर एंड फोरेस्ट्री ने स्थापना से लेकर अब तक हिमाचल की सेवा में शानदार काम किया है। नौणी यूनिवर्सिटी के कुलपति डा परविंदर कौशल का कहना है कि किसी भी संस्थान में अच्छी फैकल्टी जरूरी है। अभी 300 शिक्षाविद सेवाएं दे रहे हैं। बीते दो दिसंबर को उनके विशेष प्रयासों से यूनिवर्सिटी के फाउंडेशन डे पर 50 टीचर्ज की अतिरिक्त तैनाती हुइर््र  है। इसके अलावा 900 छात्र शोध कर रहे हैं। इससे  यूनिवर्सिटी में एक बड़ा साइंटिफिक मैनपावर तैयार हो रहा है।

दूसरी ओर हाल  ही में  आउटसोर्स पर भी कई कर्मियों की तैनाती हुई है। इन कर्मियों को उन स्थानों पर तैनात किया गया है, जहां संस्थान को बेहद जरूरत थी। ये तमाम बातें डा कौशल ने ‘दिव्य हिमाचल’ मुख्यालय में विशेष बातचीत में बताई हैं। उनका पूरा इंटरव्यू सभी पाठक पांच मार्च के अंक में अखबार के मुख्य प़ृष्ठ संख्या पांच पर पढ़ सकते हैं।  यह एक्सक्लूसिव इंटरव्यू हमारे दर्शकों के लिए दिव्य हिमाचल टीवी और दिव्य हिमाचल की वेबसाइट पर भी मौजूद है।  साभारः दिव्य हिमाचल ब्यूरो टीवी

सरकार की अनदेखी से दुखी किसान ने ट्रैक्टर से उखाड़ी फूलों की खेती

गगल —  तस्वीरों में नजर आ रहा है कि एक किसान पावर टिल्लर से फूलों से लहलहा रहे खेत को उखाड़ रहा है। उखड़ने वाले फूल गुलदाउदी के हैं। इन फू लों का बीज भी बेहद महंगा मिलता है। आखिर इस किसान ने क्यों अपना खेत बर्बाद किया है। इसी का पता करने अपनी माटी टीम कांगड़ा शहर से सटे पटौला गांव पहुंची। वहां पता चला कि  होनहार बलबीर सैणी ने अपने खेतों से लाखों रुपए के फूल उखाड़ दिए हैं। सैणी से जब इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि पहले कोरोना काल में उनकी फसल बर्बाद हुई थी। उन्होंने सरकार और बागबानी विभाग से राहत की गुहार भी लगाई थी, लेकिन उन्हें आज दिन तक कोई मदद नहीं मिली।

क्यों खास है सिरमौर का अदरक…यूं समझें

हिमगिरी सहित अन्य देशी प्रजातियों को बढ़ावा देने पर जोर

छह हजार परिवारों ने अपनाई अदरक की खेती

केंद्र सरकार द्वारा प्रत्येक जिले के विशिष्ट खाद्यान्न उत्पादकों को प्रोत्साहन प्रदान करने की नीति चलाई जा रही है। इसके अंतर्गत सिरमौर जिला में अदरक उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। सिरमौर में सर्वाधिक अदरक उत्पादन रिकार्ड किया जाता है।  इस योजना से सिरमौर में अदरक उत्पादकों द्वारा बीजी जा रही हिमगिरी तथा अन्य देसी प्रजातियों को विशेष रूप से बढ़ावा मिलेगा।  कूषि मंत्री वीरेंद्र कंवर ने बताया कि सिरमौर में अदरक की खेती लगभग 6,000 परिवारों द्वारा अपनाई गई है। जिला के छोटे एवं मंझोले किसानों के आर्थिक स्वाबलंबन में अदरक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। सिरमौर में अदरक की खेती नाहन, पांवटा साहिब, पच्छाद, राजगढ़, संगड़ाह व शिलाई जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है। पांवटा साहिब तथा संगड़ाह क्षेत्रों में कुल उत्पादन का 55 प्रतिशत उत्पादन रिकार्ड दर्ज किया जाता है। सिरमौर में इस समय 16,650 मीट्रिक टन अदरक उत्पादन दर्ज किया जाता है।  आगामी पांच साल में जिला में अदरक उत्पादन को दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया है। अदरक उत्पादन की कृषि लागत 3,60,620 प्रति हेक्टेयर दर्ज की जाती है, जबकि प्रति हेक्टेयर उत्पादन से किसानों को 7,06,880 रुपए प्रति हेक्टेयर की आमदनी मिलती है। कृषि विभाग नाहन द्वारा पिछले वर्ष के दौरान किसानों से 100 रुपए प्रति किलो की दर से लगभग 800 क्विंटल अदरक खरीदा गया। अभी विभाग द्वारा अदरक बीज पर 16 रुपए प्रति किलो की सबसिडी प्रदान की जा रही है।

            रिपोर्टः दिव्य हिमाचल ब्यूरो, नाहन

पीले रतुए को हल्के में न लें किसान

हिमाचल में इस बार बारिश और बर्फबारी अब तक कम ही हुई है। ऊंची चोटियां सूखी-सूखी नजर आ रही हैं। मौसम की इस बेरुखी का फसलों पर कितना असर हुआ है। आइए जानने की कोशिश करते हैं इस रिपोर्ट में

हिमाचल में इस बार लंबे-लंबे गैप के बाद बारिश हो रही है। यही हाल बर्फबारी का है। धौलाधार इस बार फरवरी में ही सूखा सा दिख रहा है। इस कारण नदी- नालों में भी पानी बेहद कम है। किसानों का कहना है कि सूखे का सबसे बुरा असर गेहूं की फसल पर हुआ है। इसके अलावा मटर, टमाटर व प्याज आदि भी कमजोर पड़ गए हैं। किसानों की इस गंभीर समस्या को लेकर अपनी माटी टीम के लिए हमारे सीनियर जर्नलिस्ट जयदीप रिहान ने कृषि विभाग के उपनिदेशक डा. पीसी सैनी से बात की।

सिंचाई रोक दें

सोलन। अगले पांच दिनों में मौसम परिवर्तनशील रहेगा। 6 से 8 मार्च से सभी स्थानों पर गरज, वर्षा/बर्फबारी होने की संभावना है। यह जानकारी ग्रामीण कृषि मौसम सेवा विभाग नौणी के वैज्ञानिकों ने दी। उन्होंने कहा कि 6 से 8 मार्च को वर्षा/बर्फबारी की संभावना है, इसलिए किसानों को सलाह दी जाती है कि वे अपनी फसलों और सब्जियों में किसी भी प्रकार की सिंचाई को रोक दें। उन्होंने कहा कि टमाटर, शिमला मिर्च, लाल मिर्च की नर्सरी बढ़ाने के लिए बेड तैयार करें। फसलों के बीज बोने से पहले तैयार बेड की मिट्टी का उपचार करें। कैंकर रोग से प्रभावित शीतोष्ण फलों के पौधों और उनके हिस्सों को काटकर जला दें।

केंचुआ खाद से गुड़-शक्कर तैयार कर रहे दलजीत

देहरा का होनहार किसान कई लोगों को दे रहा रोजगार

देशी शक्कर व गुड़ केवल खाने के लिए ही मीठा नहीं बल्कि कई अैषधीय गुणों से भी भरपूर है। गन्ने का देशी गुड़ और शक्कर अब हिमाचल के ही देहरा उपमंडल के बरवाड़ा गांव में बन रही है।  करीब दस साल पहले भारतीय सेना में अपनी सेवाएं देने के बाद दलजीत सिंह चौहान जब अपनी जन्म भूमि हिमाचल लौटे, तो उन्होंने अपनी खाली पड़ी जमीन पर देशी गन्ने की फसल उगाई। उन्होंने इसे महज गन्ने की खेती के लिए नहीं बल्कि लोगों को स्वस्थ रखने के उद्देश्य के लिए शुरू की है। इसके बेहतर परिणाम  सामने आ रहे हैं। फि़लहाल उनका पूरा परिवार उनकी मदद तो कर ही रहा है,साथ ही उन्होंने चार स्थानीय लोगों को रोजगार भी दिया हुआ है। उन्होंने पिछले साल 12 क्विंटल गुड़ व शक्कर बेचे थे। वह गन्ने की तीन किस्में उगा रहे हैं। इसमें सिर्फ केंचुआ खाद ही डालते हैं।  वह गुड़ और शक्कर को 120 रुपए होलसेल में बेच रहे हैं।  उधर रिटायर्ड आयुर्वेदिक सीनियर डा. सुमन शर्मा ने बताया कि देसी शक्कर, गुड़ दोनों मोटापा कम करने लिए सहायक है। वहीं शुगर कंट्रोल, वमन नाशक व पेट की कई बीमारियों को ठीक करने में सहायक है। इसका प्रयोग आवश्यकता अनुसार उचित मात्रा में चाय, दूध, जल, दही मक्खन आदि के साथ किया जा सकता है।

रिपोर्टः कार्यालय संवाददाता, देहरागोपीपुर

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