सेना, राफेल और बड़े फैसले

By: Apr 17th, 2021 12:05 am

कर्नल (रि.) मनीष धीमान

स्वतंत्र लेखक

भारतीय सेना विश्व की दूसरी सबसे बड़ी सेना है, जो आजादी के बाद विदेशी मुल्कों के आक्रमण का समय-समय पर मुंहतोड़ जवाब देती रही है, पर सेना की ताकत मात्र उसकी संख्या ज्यादा होने तक ही निर्भर नहीं रहती बल्कि सेना के पास आधुनिक हथियारों का होना भी अति आवश्यक होता है। भारत की वित्तीय स्थिति को देखते हुए समय-समय पर भारत ने सेना को आधुनिक हथियार उपलब्ध करवाने के लिए बड़े फैसले लिए हैं। उसी कड़ी में एक बड़ा फैसला करीब एक दशक पहले तब की यूपीए सरकार ने हमारी वायु सेना को अत्याधुनिक तथा दुनिया के सबसे ताकतवर लड़ाकू विमानों में से एक राफाल लड़ाकू विमान खरीदने का लिया था। इन विमानों की कीमत इस श्रेणी के बाकी विमानों से थोड़ी ज्यादा थी। भारत सरकार ने यह विमान सेना की आधुनिकता तथा ताकत बढ़ाने के लिए खरीदने का फैसला लिया था।

 यूपीए सरकार के बाद जब एनडीए सरकार दिल्ली में आई तो उन्होंने इन विमानों को खरीदने के लिए यूपीए सरकार द्वारा किए गए एग्रीमेंट में कुछ बदलाव करने का फैसला लिया। कुछ वर्ष पहले इस विमान की खरीद में घोटाले का मामला विपक्ष ने बड़े जोर-शोर से उठाया और उसी से पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष ने ‘चौकीदार चोर है’ का नारा देने की कोशिश की, पर जब सुप्रीम कोर्ट ने इसमें हस्तक्षेप किया, उसके बाद मामला खत्म होते नजर आया। पिछले सप्ताह फिर से राफाल खरीद में हुए घोटाले का जिन्न बाहर निकला है और इस बार इस पर सही जांच होना तथा सरकार द्वारा इस पर सफाई देने की जरूरत है। यह भी ध्यान रखना जरूरी होना चाहिए कि जांच अधिकारी निकट भविष्य में राज्यसभा जाने के उम्मीद न पाले हो। इसमें कोई दो राय नहीं कि किसी भी संगठन को मजबूत बनाने के लिए बड़े फैसले लेना अति आवश्यक होता है, पर उन बड़े फैसलों के साथ और बहुत सारी मर्यादाएं और सीमाएं होती हैं, जिनको ध्यान में रखना भी उतना ही जरूरी होता है।

 इसमें कोई संदेह नहीं कि वर्तमान में बैठी दिल्ली की सरकार बड़े फैसले लेने के लिए हमेशा तैयार रहती है, चाहे वह फैसला नोटबंदी का हो, तालाबंदी का हो, धारा 370 का हो या तीन तलाक का, यह सब बड़े फैसले दिल्ली सरकार ने पूरे हौसले के साथ बिना किसी हिचक के लिए हैं। पर इन सब फैसलों के बाद जो नतीजे मिले हैं, अगर उनका आकलन किया जाए तो यह भी समझ आता है कि शायद तालाबंदी एवं नोटबंदी का फैसला सही था या नहीं। इससे देश को क्या फायदा हुआ। पिछले वर्ष कोरोना काल में अचानक जब तालाबंदी और कर्फ्यू का फैसला लिया गया था तो जनता को लगा था कि यह सही फैसला है और सबने इसमें सहयोग दिया। हम आज तक नहीं जानते कि नोटबंदी एवं तालाबंदी के फैसले लेने के दौरान कौन सी प्रक्रियाएं अपनाई गईं थीं, अधिकारियों और विशेषज्ञों ने क्या कहा था, कितने लोग पक्ष में थे, कड़े निर्णय लेने की एक सनक होती है, इससे छवि तो बन जाती है लेकिन लोगों का जीवन तबाह हो जाता है। वही हुआ, लोग सड़क पर आ गए, व्यापार चौपट हो गया। समय आ गया है कि बड़े फैसले मात्र भावनाओं से नहीं, बल्कि सोच-समझ कर लिए जाएं। इसी में देश की भलाई निहित है।


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