रेमडेसिविर पर विरोधाभास

By: Apr 20th, 2021 12:06 am

रेमडेसिविर इंजेक्शन का खूब शोर मचा है। इंजेक्शन को लेकर मारामारी मची है, लिहाजा दवा के सौदागरों ने महामारी की आपदा के दौरान भी जमाखोरी और कालाबाज़ारी जारी रखी है। सरकार का दावा है कि रेमडेसिविर की कमी नहीं है। जमाखोरी और कालाबाज़ारी करने वालों के खिलाफ  रासुका की धारा के तहत कार्रवाई की जाएगी। फिर भी रेमडेसिविर इंजेक्शन हासिल करने को कतारें लगी हैं। लोग तय कीमत से 12-14 गुना भी देने को तैयार हैं, लेकिन रेमडेसिविर की कोई गारंटी नहीं। रेमडेसिविर की शीशी में पैरासीटामोल बेची जा रही है। अस्पतालों में कोरोना के मरीज बेड पर लेटे हैं, फेफड़ों में संक्रमण काफी फैल गया है, डॉक्टर मरीजों को रेमडेसिविर का बंदोबस्त करने को बाध्य कर रहे हैं। क्या संक्रमित मरीज बिस्तर से उठकर किसी दवा का इंतजाम कर सकता है? ऐसे मरीज तो संक्रमण को और भी बढ़ा सकते हैं। ऐसे अस्पतालों और डॉक्टरों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई क्यों न की जाए? बहरहाल ऐसा लग रहा है मानो रेमडेसिविर कोविड के लिए ‘अमृत’ हो! ऐसी ‘संजीवनी’ हो, जिसके सेवन से संक्रमण रफूचक्कर हो जाएगा! सरकारें समझाने को तैयार नहीं हैं, बल्कि रेमडेसिविर का उत्पादन 38 लाख से 80 लाख तक बढ़ाने का फैसला लिया गया है। फिलहाल 7 कंपनियां भारत में इस इंजेक्शन का उत्पादन कर रही हैं।

 कंपनियों की संख्या भी बढ़ाई जाएगी। आखिर सरकार रेमडेसिविर पर इतना ‘मोहित’ क्यों है? विशेषज्ञ चिकित्सकों, वैज्ञानिकों और अस्पतालों में कार्यरत डॉक्टरों के बीच गहरे विरोधाभास हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड के लिए रेमडेसिविर को मान्यता नहीं दी है। रेमडेसिविर इबोला वायरस के दौरान विकसित किया गया एंटी वायरल इंजेक्शन है। कोविड के लिए तो नहीं है और न ही जीवन-रक्षक दवाओं की जमात में इसे रखा गया है। रेमडेसिविर मौत की संभावना को भी कम नहीं करता। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बीते नवंबर में डाटा छापा था, जिसके मुताबिक रेमडेसिविर की कोरोना वायरस के उपचार में कोई भूमिका नहीं है और न ही इसका इस्तेमाल जरूरी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का शोध है कि कोविड की गंभीर परिस्थितियों में यह इंजेक्शन असरकारक नहीं है। फिर भी 50 से ज्यादा देशों में रेमडेसिविर का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके गंभीर ‘साइड इफेक्ट्स’ भी माने गए हैं और अभी तक के निष्कर्ष हैं कि इसके मानक भी तय नहीं हैं। इतना जरूर है कि कोविड के बाद रिकवरी टाइम को यह इंजेक्शन कुछ दिन तक घटा सकता है। संगठन के ‘सॉलिडेटरी ट्रायल’ के तहत कोविड-19 के इलाज में उपयोग की जा रहीं चार सर्वाधिक प्रचलित दवाओं-रेमडेसिविर, हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वाइन, लोपिनवीर-रटनवीर और इंटरफेरॉन वीटा-1 ए-का अध्ययन 30 देशों में किया गया। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक महामारी विशेषज्ञ ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्ययन पर टिप्प्णी की है कि यह वैज्ञानिकों और चिकित्सकों के लिए बहुत बड़ा खतरा साबित हो सकता है।

 यानी यह विशेषज्ञ संगठन के अध्ययन से सहमत नहीं है। अध्ययन यह भी स्थापित कर रहे हैं कि रेमडेसिविर मृत्यु-दर को भी कम नहीं करता। अलबत्ता सही समय पर इसका उपयोग किया जाए, तो इसके कुछ फायदे भी मिल सकते हैं, लेकिन बुनियादी तौर पर रेमडेसिविर कोरोना के मरीजों के लिए ‘संजीवनी’ नहीं है। हमने यह विषय इसलिए उठाया है, क्योंकि आम आदमी ने इस इंजेक्शन को ही ‘अमृत’ मान लिया है। हम कोविड के शिकार हुए थे, तो अस्पताल में लगातार 5 दिन तक रेमडेसिविर इंजेक्शन दिया गया था। 100 एमजी की कीमत 4800 रुपए थी। हमने इंजेक्शन पर सवाल भी किया था, लेकिन डॉक्टर के विवेक के आगे कौन मरीज लड़ सकता है? बीते कुछ दिनों में हमने 20-25 प्रख्यात चिकित्सकों की दलीलें भी बहस के दौरान सुनीं। दिल्ली एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया का कथन भी रेमडेसिविर के पक्ष में नहीं है। स्पष्ट कर दें कि हम डॉक्टर नहीं हैं, लिहाजा किसी भी दवा के पक्ष या विपक्ष में पेशेवर निष्कर्ष नहीं दे सकते। विश्व स्वास्थ्य संगठन दुनिया का सर्वोच्च संगठन है, जो स्वास्थ्य पर खुद शोध करता है और शोधात्मक अध्ययन को मंच देता है, लेकिन वह भी अंतिम शोध का दावा नहीं कर सकता। देश में कोरोना की बेकाबू लहर जारी है। करीब 2.75 लाख संक्रमित मरीज एक ही दिन में दर्ज किए गए हैं और मौतें भी 1600 से ज्यादा हो चुकी हैं। सिलसिला अभी जारी है, लिहाजा किसी भी दवा के पीछे अंधी दौड़ मत लगाएं। आपका डॉक्टर जो भी सुझाव दे, उसे बिना किसी दहशत के स्वीकार करें। रेमडेसिविर ही ‘संजीवनी’ नहीं है।


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