विवाद से परे है ईश्वर का अस्तित्व

By: Apr 17th, 2021 12:20 am

617 वर्ष पूर्व की घटना है, रोम में एक महिला अपने बच्चे से खेल रही थी। वह कभी उसे कपड़े पहनाती, कभी दूध पिलाती, इधर-उधर के काम करके फिर बच्चे के पास आकर उसे चूमती, चाटती और अपने काम में चली जाती। प्रेम भावनाओं से जीवन की थकान मिटती है। लगता है अपने काम की थकावट दूर करने के लिए उसे बार-बार बच्चे से प्यार जताना आवश्यक हो जाता था…

-गतांक से आगे…

यह उदाहरण इस बात का प्रमाण है कि हमारा प्रेमभाव विस्तृत हो सके, तो हम अपने को विराट विश्व परिवार के सदस्य होने का गौरव प्राप्त कर एक ऐसी आनंद निर्झरिणी में प्रवाहित होने का आनंद लूट सकते हैं, जिनके आगे संसार के सारे सुख-वैभव फीके पड़ जाएं। 617 वर्ष पूर्व की घटना है, रोम में एक महिला अपने बच्चे से खेल रही थी। वह कभी उसे कपड़े पहनाती, कभी दूध पिलाती, इधर-उधर के काम करके फिर बच्चे के पास आकर उसे चूमती, चाटती और अपने काम में चली जाती। प्रेम भावनाओं से जीवन की थकान मिटती है। लगता है अपने काम की थकावट दूर करने के लिए उसे बार-बार बच्चे से प्यार जताना आवश्यक हो जाता था। घर के सामने एक ऊंचा टावर था, उसमें बैठा हुआ एक बंदर यह सब बड़ी देर से, बड़े ध्यान से देख रहा था। स्त्री जैसे ही कुछ क्षण के लिए अलग हुई कि बंदर लपका और उस बच्चे को उठा ले गया। लोगों ने भागदौड़ मचायी, तब तक बंदर सावधानी के साथ बच्चे को लेकर उसी टावर पर चढ़ गया। जैसे-जैसे उसने मां को बच्चे से प्यार करते देखा था, स्वयं भी बच्चे के साथ वैसे ही व्यवहार करने लगा। कभी उसे चूमता-चाटता, तो कभी उसके कपड़े उतारकर फिर से पहनाता। इधर वह अपनी प्रेम की प्यास बुझा रहा था, उधर उसकी मां और घर वाले तड़प रहे थे, बिलख-बिलख कर रो रहे थे।

बच्चे की मां तो एकटक उसी टावर की ओर देखती हुई बुरी तरह चीखकर रो रही थी। बंदर ने यह सब देखा। संभवतः उसने सारी स्थिति भी समझ ली, इसीलिए एक हाथ से बच्चे को छाती से चिपका लिया, शेष तीन हाथ-पांव की मदद से वह बड़ी सावधानी से नीचे उतरा और बिना किसी भय अथवा संकोच के उस स्त्री के पास तक गया और बच्चे को उसके हाथों में सौंप दिया। यह कौतुक लोग स्तब्ध खड़े देख रहे थे और देख रहे थे साथ-साथ एक कटु सत्य, किस तरह बंदर जैसा चंचल प्राणी प्रेम के प्रति इस तरह गंभीर और आस्थावान हो सकता है। मां के हाथ में बच्चा पहुंचा, सब लोग देखने लगे उसे कहीं कोई चोट तो नहीं आई। इस बीच में बंदर वहां से कहां गया, किधर चला गया, यह आज तक किसी ने नहीं जाना। पीछे जब लोगों का ध्यान उधर गया तो सबने यह माना कि बंदर या तो कोई दैवी शक्ति थी, जो प्रेम-वात्सल्य की महत्ता दर्शाने आई थी अथवा वह प्रेम से बिछड़ी हुई कोई आत्मा थी, जो अपनी प्यास को एक क्षणिक तृप्ति देने आई थी। उस बंदर की याद में एक अखंड-दीप जलाकर उसी टावर में रखा गया।

(यह अंश आचार्य श्रीराम शर्मा द्वारा रचित पुस्तक ‘विवाद से परे ईश्वर का अस्तित्व’ से लिए गए हैं।)


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