ईश्वर पर विश्वास

By: Apr 17th, 2021 12:20 am

सद्गुरु  जग्गी वासुदेव

जो शक्ति सृजन (रचना) करती है, वह अपनी रचना से गायब नहीं हो सकती, लेकिन वह बड़ी कुशलता से खुद को तब तक छिपाने में कामयाब रहती है, जब तक कि आप उसका नकाब हटाने की कोशिश नहीं करते। तो जिसे आप ‘आध्यात्मिक प्रक्रिया’ कहते हैं, वह महज उस ईश्वर पर पड़े पर्दे को हटाना है…

कुछ संस्कृतियां और मत ईश्वर में सहज विश्वास कर लेना सिखाते हैं। दुनिया में कुछ ऐसी ताकतें भी हैं, जो देखती हैं कि सृष्टि अपने स्रोत से अलग हो ही नहीं सकती। अगर इस सृष्टि के सृजन में सृष्टा का हाथ है तो आपको बस इतना स्मार्ट बनना है कि आप उस सृजक  का हाथ पकड़ कर उसे नीचे खींच लें। आप उसका हाथ पकड़ कर ऊपर स्वर्ग की ओर मत चले जाइए, बल्कि उसका हाथ पकड़ कर उसे नीचे की ओर खींच लीजिए ताकि वह हम सब लोगों के बीच में रह सके। उसे कोई विकल्प नहीं देना है, उसकी वजह है कि उसने हमें कोई विकल्प नहीं दिया। उसने हमसे नहीं पूछा था कि हम बनना (रचे जाना) चाहते हैं या नहीं? तो फिर हमें उससे पूछने की क्या जरूरत है कि वह नीचे आना चाहता है या नहीं? हम जिस संस्कृति से आते हैं, उसमें हम उसे कोई विकल्प देने में विश्वास नहीं करते।

हमें उसके चेहरे से नकाब हटाना है ताकि वह सृष्टि की आड़ में छिपकर हमारे साथ अजीबोगरीब हरकतें न कर सके। जो शक्ति सृजन (रचना) करती है, वह अपनी रचना से गायब नहीं हो सकती, लेकिन वह बड़ी कुशलता से खुद को तब तक छिपाने में कामयाब रहती है, जब तक कि आप उसका नकाब हटाने की कोशिश नहीं करते। तो जिसे आप ‘आध्यात्मिक प्रक्रिया’ कहते हैं, वह महज उस ईश्वर पर पड़े पर्दे को हटाना है। बहुत से लोग जीवन के अनेक पलों में या फिर कई लोग अपने पूरे जीवन भर ऐसे जीते हैं, मानो वे खुद में ही सब कुछ हैं। बहुत सारे लोगों के लिए उनका संघर्ष उनकी समस्याएं, उनकी पीड़ा, उनकी कोशिशें, उनकी चाहत, उनका अकेलापन, जीवन जीने की कड़ी जद्दोजहद, सब कुछ ऐसे हो रहे हैं मानो वे जो हैं, अपने ही बलबूते पर हैं। ऐसे में लोगों को एक विकल्प दिया गया कि वे किसी चीज पर विश्वास कर लें ताकि मनोवैज्ञानिक तौर पर उन्हें राहत मिल सके।

यह विकल्प लोगों को खास तरह की मजबूती का भाव, तसल्ली, सुनिश्चितता व खास तरह का आत्मविश्वास देता है, लेकिन अफसोस की बात है कि इस विकल्प से थोड़ी मूर्खता भी आ जाती है। किसी की कही हुई बात पर सहजता से आपका विश्वास कर लेना, तब तक तो ठीक है, जब तक आप दुनिया में किसी जिम्मेदार व शक्तिशाली पद पर नहीं पहुंच जाते। अगर आप महज एक आम इनसान हैं, तो किसी मान्यता पर विश्वास करने में कोई हर्ज नहीं है, लेकिन अगर आप नेतृत्व की भूमिका में हैं और आपको हजारों लोगों को रास्ता दिखाना है तो आपके विश्वास की कीमत मानव जाति को, बल्कि इस धरती के हर जीवन को चुकानी पड़ती है। लोगों के पास ये विश्वास तंत्र न होता, तो लोग कभी भी अपनी सुविधा के लिए इस दुनिया के टुकड़े-टुकड़े करने का दुस्साहस नहीं कर पाते। चूंकि उन्हें विश्वास है कि वे भी ईश्वर का ही प्रतिरूप हैं, इसलिए उन्हें अपने फायदे के लिए जीवन के हर रूप का शोषण करने का पूरा अधिकार है, और इसीलिए उन्होंने कई भयानक काम किए हैं।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App