इस घास से किसान मालामाल

इन दिनों घास की दो किस्मों की बड़ी डिमांड है। ये किस्में हैं लेमन और पामारोसा ग्रास। इसके अलावा भी कई ऐसे घास हैं, जिन्हें किसान लगा सकते हैं। पढि़ए यह खबर…

पामारोसा घास लगाएं किसान भाई, एक हेक्टेयर से कमा सकते हैं डेढ़ लाख मुनाफा

अपनी माटी के पास प्रदेश भर से किसानों ने पामारोसा घास के बारे में पूछा था। इस पर हमारे सीनियर जर्नलिस्ट जयदीप रिहान ने कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर का दौरा किया। उन्होंने वहां एग्रोनॉमी के सीनियर साइंटिस्ट डा नवीन से बात की। डा. नवीन ने बताया कि एक पामारोसा और लेमन ग्रास औषधीय गुणों से भरपूर हैं। खासकर पामारोसा से सुगंधित तेल निकलता है। इसमें तृप्ता और कृष्णा आदि किस्में हैं। खास बात यह है कि जहां पानी की कमी हो, वहां इसकी पैदावार कम होती है। इसके तेल की मार्केट में खूब डिमांड रहती है। इसमें जब फूलों की अवस्था आती है, तो इसकी कटाई करके तेल निकाल सकते हैं। डा. नवीन ने कहा कि इस तेल की मार्केट में खूब डिमांड है। सब सही रहे, तो एक हेक्टेयर जमीन से डेढ़ लाख तक मुनाफा हो सकता है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा कुछ चारे वाले घास भी किसान उगा सकते हैं। इसमें आलू घास, घोड़ा घास, संकर, हाथी घास, स्टीविया आदि घास हैं,जिन्हें चारे के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।

यहां ध्यान दें आलू किसान

क्या आपके खेत में भी हरा आलू निकला है, सड़न या छेद तो नहीं है, जानिए, पोटेटो को तगड़ा करने के उपाय….

बेशक, पहाड़ के किसान आलू उगाने में सबसे माहिर हैं,लेकिन अभी भी कई किसान भाई हैं,जो जानकारी के अभाव में फसल खराब कर बैठते हैं। इन किसान भाइयों के लिए पेश है यह खास खबर…

डा. एमएस मंढोतरा कृषि विशेषज्ञ

तस्वीरों में नजर आ रहे आलू में कहीं हरापन है,तो कहीं छेद है।  यही नहीं, ध्यान से देखिए, एक आलू का एक हिस्सा सड़ गया है। आखिर यह सब कैसे होता है। प्रदेश के कई किसानों ने अपनी माटी के समक्ष यह समस्या रखी है। इसी के चलते अपनी माटी ने आलू के लिए मशहूर नगरोटा बगवां में विभाग के एसएमएम डा एमएस मंढोतरा से बात की। उन्होंने बताया कि यह सब सही ढंग से देखरेख न हो पाने चलते होता है। डाक्टर मंढोतरा ने कहा कि जैसे-जैसे आलू की फसल बड़ी होने लगती है, तो आलू बाहर आ जाता है। किसान भाइयों को उसे पूरी तरह से मिट्टी से ढक देना चाहिए। ऐसा करने पर आलू में कभी हरापन नहीं आएगा। जहां तक आलू में सड़न की बात है, तो यह खेत में पानी खड़ा होने के कारण होता है। इसके अलावा कुफरी ज्योति आदि बेहतर किस्में लगाकर भी इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। आलू में छेद को लेकर उन्होंने कहा कि किसान खेतों में कच्चा गोबर कतई न डालें। इसके अलावा मिट्टी को बैक्टीरिया से बचाने के लिए छिड़काव किया जा सकता है।

रिपोर्ट कुलदीप नारायण, डीएचडीएम

हिमाचल में भयंकर सूखा, चंगर मे 80 फीसदी फसलें गर्क

हिमाचल में इस बार लंबे समय से बारिश नहीं हुई है। हुई भी है,्रतो वह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। पूरा प्रदेश सूखे से त्राहिमाम कर उठा है। एक रिपेर्ट

राज्य को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग तेज

हिमाचल में बारिश न होने के कारण फसलें बर्बाद हो चुकी हैं।  किसानों का मानना है कि चंगर में 80 फीसदी से ज्यादा फसलें बर्बाद हुई हैं। वहीं, पलम इलाकों में भी ऐसे ही हालात हैं। इन फसलों में गेहूं, चना, जौ, लहसुन, मटर, आलू आदि प्रमुख हैं।  इसके अलावा चारे को भी भारी नुकसान हुआ है। कई जगह  किसानों ने गेहूं को चारे के रूप में काटना शुरू कर दिया है। किसानों का कहना है कि जहां एक क्विंटल गेहूं होनी थी, वहां अब महज 15-20 किलोग्राम की प्रोडक्शन होगी।  कृषि विभाग ने  एक माह पूर्व अपनी रिपोर्ट में सूखे का प्रभाव जो केवल 30-40 प्रतिशत आंका था, अब यह कहीं ज्यादा पहुंच चुका है। इस कड़ी में पूरे प्रदेश से हिमाचल व केंद्र सरकारों को ज्ञापन भेजे गए हैं।  हिमाचल को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग उठाई गई है। बहरहाल लाखों किसानों को इस बात का इंतजार है कि आखिर कब उनकी सुनी जाएगी।

रिपोर्टः दिव्य हिमाचल टीम, शिमला, सरकाघाट

गेहूं बन गई पशुओं का चारा, अब क्या करे किसान बेचारा

वर्ष 2020-21 के दौरान सितंबर 2020 से मार्च 2021 तक सामान्य से बहुत कम (48-83 प्रतिशत, औसतन 60 प्रतिशत से कम) वर्षा हुई है। इसके अलावा हिमपात भी बहुत कम हुआ है परिणाम स्वरूप सूखे की  स्थिति बन चुकी है। इसका असर सीधा रबी की फसलों पर दिख रहा है। भूमि जल के रिचार्ज न होने के कारण खडों, नालों तथा प्राकृतिक संसाधन भी सूखने लगे है। अतः व्यवहारिक एवं संवेदनशील दृष्टिकोण से इन प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षण की आवश्यकता है। जिसमें जल ही जीवन जागरूकता आंदोलन चलाने की आवश्यकता है। बहुत से स्थानों पर तो गेहूं की फसल नष्ट हो चुकी है। किसानों ने गेहूं को चारे के रूप में काटना शुरू कर दिया है।

सिरमौर का सफेद सोना झुलसा, खेतों में पीला पड़ा

सिरमौर के साथ हिमाचल के कई जिलों में लहसुन को एक प्रमुख नकदी फसल माना जाता है। ऐसे सैकड़ों किसान हैं,जिनका सारा साल लहसुन पर निर्भर करता है। लेकिन इस बार सूखे की मार लहसुन तक जा पहुंची है। एक रिपोर्ट

इस बार सूखे ने सारे हिमाचल को रुला दिया है। गेहूं से लेकर आलू, मटर तक खूब नुकसान हुआ है। बारिश न होने का एक बुरा असर सिरमौर जिला में देखने को मिल रहा है। जिला की प्रमुख नकदी फसल लहसुन खेतों में ही पीली पड़ गई है। ऐसे हालात प्रदेश के सभी जिलों में हैं। किसानों ने अपनी माटी टीम को बताया कि उनकी फसल पूरी तरह खराब हो गई है। फसल में पीला झुलसा रोग लग गया है। आलम यह है कि कई किसानों ने अपने खेतों से लहसुन को उखाड़ना शुरू कर दिया है। वे कई बार दवाइयों का छिड़काव कर चुके हैं, मगर यह बीमारी हटने का नाम नहीं ले रही। कई किसानों ने पिछले वर्ष भी  लहसुन की इस बीमारी के चलते अपने खेतों में हल चालाया था। यही हाल इस बार हैं।

बता दें कि इस वर्ष किसानों ने 100 से 180 रुपए प्रतिकिलो के हिसाब से बीज खरीदकर लहसुन की बिजाई की है। ऐसे में कमाई तो दूर, खर्च निकालना कठिन हो जाएगा। फिलहाल किसानों ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि उन्हें मुआवजा प्रदान किया जाए।

      रिपोर्टः संजीव ठाकुर, डीएचडीएम

सब्जी की हल्की सिंचाई करें, गेंदा रोपने का वक्त

अगले पांच दिनों में मौसम परिवर्तनशील रहेगा और अलग-अलग स्थानों पर हल्की वर्षा के आसार हैं। अधिकतम और न्यूनतम तापमान में वृद्धि होगी और क्रमशः 30 से 31 डिग्री सेल्सियस और 10 से 12 डिग्री सेल्सियस के बीच हो सकती है। यह जानकारी ग्रामीण कृषि मौसम विभाग नौणी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने दी। उन्होंने कहा कि शुष्क मौसम को ध्यान में रखते हुए किसानों से अनुरोध है कि वे सभी सब्जी फसलों में हल्की सिंचाई करें। मधुमक्खी कालोनियों को पालन-पोषण को बढ़ानें के लिए चीनी की खुराक 1-1 दें और कालोनियों को साफ और स्वच्छ रखें। उन्होंने कहा कि कार्नेशन में फसल की तुड़ाई पूरी करें। गेरबेरा की तुड़ाई पूरी तरह से फूलों के खुले चरण में की जानी चाहिए और अल्स्ट्रोडमरिया को रंगीन कली के चरण में काटा जाना चाहिए। खेतों में गेंदा रोपे जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि हरी घास की कमी के कारण पुशुओं में  खनिज और प्रोटीन की कमी हो सकती है जिससे पशुओं की गर्मी और गर्भधारण में असमर्थता हो सकती है। इसलिए किसानों को दैनिक फीड में 30 से 50 ग्राम खनिज मिश्रण जोडऩे की सलाह दी जाती है। जैसे-जैसे तापमान थोड़ा बढ़ेगा, बाहरी परजीवियों का हमला हो सकता है। इन परजीवियों को नियंत्रित करने के लिए किसान पशुओं के शरीर पर साइपरमेथ्रिन 2 से 2.5 मिली प्रति लीटर पानी का छिडक़ाव करें।

रिपोर्टः मोहिनी सूद, डीएचडीएम

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