दूल्हा रैली यात्रा

By: Apr 21st, 2021 12:05 am

उनकी पेरशानी देख मैं उन्हें लोकल तावीजबाज के पास ले गया। वह हर किस्म के समाज में उपजी सामाजिक परेशानियों के तावीज बनाता है। यही नहीं! आजकल कोरोना तक के तावीज भी बना रहा है। जैसे ही मैं उनको साथ ले तावीजबाज की दुकान में पहुंचा तो मैंने तावीजबाज को बताया, ‘जनाब कंवर साहब मेरे खासमखास मित्र हैं। बहुत परेशान हैं। इन्हें दिन के बारह बजे भी कोई राह नहीं सूझ रही। एक बाप के नाक की इज्जत का सवाल है।’ ‘तो इससे पहले कि इनकी आंखों की परेशानी और बढ़ जाए, मेरी मानो, कंवर साहब की किसी झोलाछाप डॉक्टर के पास आंखें चेक करवा लो!’ ‘हे मशहूर परेशानीहार! मुझे आंखों की परेशानी नहीं है’, आगे कंवर साहब खुद ही स्टार्ट हो गए, आंखों में आंसू लिए। ‘तो क्या दिमाग की है? वैसे कोई माने या न माने, हर परेशानी दिमाग से शुरू ही होती है। सब परेशानियों की जड़ हरामी ये दिमाग ही होता है।’ ‘दिमाग की तो कभी कोई परेशानी रही ही नहीं परेशानीहार! परेशानी यह है कि बेटे की चार दिन बाद बारात जानी है। और तुम तो जानते ही हो कि हर वर्ग के बेटे की शादी में उसके बाप की ही नाक दाव पर लगती है।’ ‘तो क्या घोड़ी वाले की परेशानी है?

कोई बात नहीं। इसका भी मेरे पास तावीज है। किसी भी गधे की टांग में मेरा बनाया तावीज बांध देना। देखना, वह दूल्हे को घोड़ी सी फीलिंग देगा। तावीज मात्र सौ रुपया।’ ‘नहीं परेशानीहार! वह भी बात नहीं। घोड़ी वाला तो खुद घोड़ी बनने को तैयार है पर…।’ ‘तो?’ ‘असल बात ये है कि प्रशासन ने वर की वर यात्रा में केवल दस बाराती ही अलाउड किए हैं। और इनमें तो दूल्हे के बाप, मतलब, मेरा भी नंबर नहीं पड़ रहा। समझ नहीं आ रहा अब क्या करूं, क्या न करूं? इस बाबत कोई तावीज हो तो मुझे दे मेरा कोरोना के भंवर में फंसा बेड़ा पार करो।’ कंवर साहब ने आंखें बंद कर तावीज को आगे हाथ बढ़ाया तो तावीजबाज अचकचाया। वह कुछ देर हवा में हाथ लहराता बकवास सोचता रहा। कुछ देर बाद तावीजबाज ने लंबी लंबी सांसें लेने के बाद कहाए, ‘मुबारक हो! समाधान मिल गया।’ ‘कैसा समाधान?’ मेरे बाबा का आदेश है कि सौ रुपया मुझे भेंट कर मेरा तावीज धारण कर प्रशासन से बारात के बदले रैली की परमिशन के लिए अप्लाई करो।’ ‘मतलब?’ ‘मतलब ये कि अब मेरा तावीज गले में डाल प्रशासन को जाकर कहो कि कंवर साहब अपने घर से अपने समधि के घर तक समधि मिलन रैली निकालने चाहते हैं।

बस, फिर देखो, परमिशन कैसे नहीं मिलती है।’ ‘पर यह तो बारात होगी।’ ‘तो क्या हो गया! प्रशासन ने बारात निकालना बंद किया है, रैली निकालना तो नहीं। ज्यादा ही हुआ तो बीच बीच में महंगाई के खिलाफ बारातियों से नारे लगवा देना। काम हो गया।’ ‘पर दूल्हा तो घोड़ी पर होगा।’ ‘तो क्या हो गया! कह देना, दूल्हे को घोड़ी पर बैठा रैली निकाली जा रही है।’ ‘मतलब अब झूठ बोला जाए?’ ‘यहां सच बोल कर मिलता ही क्या है कंवर साहब?’ तावीजबाज ने व्यावहारिक बात की। ‘मतलब?’ ‘तो जो अब नाक बचानी है तो मेरे परेशानीहरण तावीज को गले में डाल रैली की परमिशन के लिए अभी जाकर अप्लाई करो। कंवर साहब! कीमत केवल और केवल सौ रुपया’, उन्होंने तावीजबाज के पांव छुए और तावीजबाज द्वारा छांट कर दिए परेशानीहरण तावीज के बदले फटाफट तावीज के ढेर में से एक तावीज उठा अपने गले में डाला और चार कदमों का एक कदम करते दूल्हे की रैली की परमिशन लेने सीना चौड़ा कर प्रशासन से मिलने निकल पड़े अकेले ही मुझे आदेश देते, ‘प्लीज़ यार! इनके सौ रुपए दे देना। बाद में शगुन में उतने कम कर लेना।’

अशोक गौतम

ashokgautam001@Ugmail.com


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