रथ मेला वृंदावन का धार्मिक महत्त्व

रथ का मेला वृंदावन, उत्तर प्रदेश में महत्त्वपूर्ण उत्सव है। होली समाप्त होते ही चैत्र कृष्ण पक्ष द्वितीया से रंगजी, वृंदावन के मंदिर का प्रसिद्ध रथ मेला प्रारंभ हो जाता है। प्रतिदिन विभिन्न सोने-चांदी के वाहनों पर रंगजी की सवारी निकलती है। चैत्र कृष्ण नवमी को रथ का मेला तथा दसवीं को भव्य आतिशबाज़ी होती है। यह बहुत बड़ा मेला होता है…
रथयात्रा
वृंदावन में रंगनाथ जी मंदिर से थोड़ी दूर एक छत से ढका हुआ निर्मित भवन है जिसमें भगवान का रथ रखा जाता है। यह लकड़ी का बना हुआ है और विशालकाय है। यह रथ वर्ष में केवल एक बार ब्रह्मोत्सव के समय चैत्र में बाहर निकाला जाता है। यह ब्रह्मोत्सव-मेला दस दिन तक लगता है। प्रतिदिन मंदिर से भगवान रथ में जाते हैं। सड़क से चल कर रथ 690 गज़ रंगजी के बाग़ तक जाता है जहां स्वागत के लिए मंच बना हुआ है। इस जुलूस के साथ संगीत, सुगंध सामग्री और मशालें रहती हैं। जिस दिन रथ प्रयोग में लाया जाता है, उस दिन अष्टधातु की मूर्ति रथ के मध्य स्थापित की जाती है। इसके दोनों ओर चौरधारी ब्राह्मण खड़े रहते हैं। भीड़ के साथ सेठ लोग भी जब-तब रथ के रस्से को पकड़ कर खींचते हैं। लगभग ढाई घंटे के अंतराल में काफी जोर लगाकर यह दूरी पार कर ली जाती है।
आगामी दिन शाम की बेला में आतिशबाजी का शानदार प्रदर्शन किया जाता है। आसपास के दर्शनार्थियों की भीड़ भी इस अवसर पर एकत्र होती है। अन्य दिनों जब रथ प्रयोग में नहीं आता तो भगवान की यात्रा के लिए कई वाहन रहते हैं। कभी जड़ाऊ पालकी तो कभी पुण्य कोठी, तो कभी सिंहासन होता है। कभी कदम्ब तो कभी कल्पवृक्ष रहता है। कभी-कभी किसी उपदेवता को भी वाहन के रूप में प्रयोग किया जाता है, जैसे सूरज, गरुड़, हनुमान या शेषनाग। कभी घोड़ा, हाथी, सिंह, राजहंस या पौराणिक शरभ जैसे चतुष्पद भी प्रयोग में लाए जाते हैं।