शहनाज़ ने तेहरान में बेस्ट कोर्स में दाखिला लिया

By: Apr 17th, 2021 12:20 am

जीवन एक वसंत/शहनाज हुसैन

किस्त-72

सौंदर्य के क्षेत्र में शहनाज हुसैन एक बड़ी शख्सियत हैं। सौंदर्य के भीतर उनके जीवन संघर्ष की एक लंबी गाथा है। हर किसी के लिए प्रेरणा का काम करने वाला उनका जीवन-वृत्त वास्तव में खुद को संवारने की यात्रा सरीखा भी है। शहनाज हुसैन की बेटी नीलोफर करीमबॉय ने अपनी मां को समर्पित करते हुए जो किताब ‘शहनाज हुसैन ः एक खूबसूरत जिंदगी’ में लिखा है, उसे हम यहां शृंखलाबद्ध कर रहे हैं। पेश है 72वीं किस्त…

-गतांक से आगे…

अंत भला तो सब भला। हम चाय पीने के लिए रुके। हादसे से हम अभी भी कांप रहे थे। मन ही मन अल्लाह का शुक्र अदा कर रहे थे। अभी भी मेरी मां की किस्मत का चमकता सूरज देखने के लिए हमें दुनिया में रहना था। मुझे अक्सर लगता है कि शायद हम उनके नसीब से ही बचे थे। और यकीनन इसलिए भी कि यह कहानी मैं आपको बता पाऊं। तेहरान में अक्सर शहनाज़ बेसब्री से पोस्टमैन का इंतजार किया करतीं, जो उनके घर के खत लेकर आता था। अपने पापा के लोगों को पहचानते ही वह झट से लिफाफा खोल लेती और शब्द पढ़ती चली जातीं। एक बार ऐसा ही एक खत उनके भाई वल्ली की तरफ से मिला। ‘आखिरकार मुझे भारत से बाहर जाने के लिए पी-फार्म मिल गया’, वल्ली ने लिखा था। ‘मैं लंदन जाने वाला हूं, हो सकता है वहीं बस जाऊं। मैं तुम लोगों से मिले बिना नहीं रह सकता।’ मां से अपने भाई के आने की खुशी संभाले नहीं संभल रही थी। जिस रात वल्ली यहां पहुंचा तो उनसे मिलने के लिए दोस्तों का छोटा सा ग्रुप भी इकट्ठा हो गया। उनमें  एक बड़ी ब्रिटिश कंपनी के प्रमुख भी थे। वह और वल्ली सारी शाम आपस में बात करते रहे और जाते समय वह वल्ली के हाथ में अपना विजिटिंग कार्ड छोड़ते हुए कहा, ‘कल मुझसे आकर मिलना। हो सकता है मेरे पास तुम्हारे लिए अच्छा प्रस्ताव हो और तुम यहीं रहने की सोच लो।’

अगली सुबह वल्ली टाल-मटोल करने लगा। वह इंग्लैंड जाकर बसना चाहते थे। उनके दो कजि़न खुसरो और राशिद बेग कनाडा और यूएस में जाकर रहने लगे थे। पश्चिम अब वल्ली के लिए अनजाना नहीं रहा था। ‘तुम एक बार उनसे मिलकर, उनका ऑफर तो देख लो। जरूरी नहीं है कि तुम उसे लो ही, फिर भी मिलने में क्या हर्ज है?’ मेरे पापा ने सुझाव दिया। अगले दिन वल्ली पीटर हैज से उनके ऑफिस में मिले और फिर तेहरान के ही होकर रह गए। लंदन की टिकट ने उनकी राह देखते-देखते दम तोड़ दिया। और अगले कुछ साल हमारा घर ही उनका ठिकाना रहा। तेहरान में बड़ा इंटरनेशनल ब्यूटी स्कूल था, और शहनाज़ ने चार साल वहां रहने के दौरान बेस्ट कोर्स में दाखिला लिया। वह घंटों वहां बितातीं, तकनीकी जानकारी लेतीं। ब्यूटी केयर का एक पहलू मुहासे, झुर्रियां, झाइयां, बाल झड़ना और त्वचा से जुड़ी अन्य समस्याओं का निवारण भी है, जिसमें शहनाज़ की गहरी दिलचस्पी थी। वह इलाज और उसके परिणाम के लिए लगाए जाने वाले क्रीम, लोशन की परस्पर निर्भरता के बारे में सजग थीं। अपने क्लाइंटों को बेस्ट रिजल्ट देने के लिए उन्होंने कॉस्मेटोलोजी के बेस्ट स्कूल लीन ऑफ कोपेनहेगन में जाने का निर्णय लिया, जिसे एक दानिश लेडी चलाती थीं। उस ब्यूटी स्कूल का कोर्स बहुत महंगा था। पापा की सरकारी आय से, इतने खर्चों के बाद उनकी फीस दे पाना संभव नहीं था।


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