सोलन निगम का ताला खुला

By: Apr 17th, 2021 12:05 am

अंततः सोलन शहर के ताले खुले और कांग्रेस की चिडि़या बाहर निकली। सफेद धुली हुई, पंख खोलती हुई। नगर निगम चुनाव का अंतिम पिंजरा खुला और सोलन के पहले महापौर पूनम ग्रोवर तथा उप महापौर के रूप में राजीव कौड़ा मिल गए। हम इसे राजनीतिक जीत-हार के बीच नागरिक फासलों का हिसाब लगाएं, तो पता चलेगा कि इन करवटों में किसका नफा और किसका नुकसान हुआ। एक अनावश्यक नौटंकी के कुछ दिन स्थानीय स्वशासन की विरासत को गंदा जरूर कर गए और आगे चलकर नगर व सरकार के बीच यही खटास देखी जाए, तो कोई हैरानी नहीं होगी। यह इसलिए भी कि वर्तमान सत्ता के दौर में धर्मशाला नगर निगम को तमाम कड़वे घूंट पीने पड़े जो अमूमन सत्ता और विपक्ष को बांटते हैं। शहरी और ग्रामीण आवरण में जनता के बीच सियासत को ढूंढना भले ही पार्टियों की कसरत के लिए सुखद हो, लेकिन शहरों के भविष्य के लिए किसी तरह का मतभेद घातक है।

 सोलन के फैसले के बाद हिमाचल में दो नगर निगम कांग्रेस और दो ही भाजपा के चुनाव चिन्ह को तसदीक कर रहे हैं, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि इन्हें प्रदेश की सत्ता के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए। यह सही होगा कि सरकार धर्मशाला और मंडी को अपने नजरिए से देखेगी और पालमपुर व सोलन को विपक्ष के खाते में डाल कर चलेगी। आगे चलकर सबसे कठिन प्रश्न तो शहरी गांवों के नए अस्तित्व का रहेगा, क्योंकि अभी कई अड़चनें भौगोलिक व आर्थिक दृष्टि से रहेंगी और इन्हीं के परिप्रेक्ष्य में शहरों को अपने भीतर नई संस्कृति और सुशासन की नई पद्धति विकसित करनी होगी। सर्वप्रथम हर नगर निगम का भौगोलिक सीमांकन इस दृष्टि से होना चाहिए ताकि अगले सौ साल तक नागरिक सुविधाओं का खाका कमजोर न पड़े। इस दृष्टि से हर शहर की अपनी खासियत और विकास की संभावना रहेगी। सोलन के प्रश्न पालमपुर से भिन्न होंगे, तो मंडी व धर्मशाला में विकास की अलग संभावनाएं रहेंगी, दोनों दलों को अपने भीतर शहरी राजनीति का अलख जगाते हुए यह विश्लेषण भी करना होगा कि दो शहरों में जीत और दो में हार के कारण क्या रहे। ऐसे में कांग्रेस ने सोलन की जीत में शहरी मुद्दों को लेकर कमर कसी, तो अब इन पर अमल की गुजारिश रहेगी। वहां कांग्रेस के राजिंद्र राणा व केवल सिंह पठानिया ऐसे नेता बनकर उभरे हैं, जो पार्टी को रणनीतिक तौर पर मुकाबला करना सिखा रहे हैं। हमारा मानना है कि चारों शहरों के बीच सोलन की राजनीतिक कवायद यह जरूर साबित कर रही है कि विपक्ष में बैठी कांग्रेस को किस शिद्दत से चलना होगा। कांग्रेस ने वहां पेयजलापूर्ति, पार्किंग व कूड़ा-कचरा प्रबंधन जैसे मुद्दों पर चुनाव लड़ा, जबकि धर्मशाला, पालमपुर व मंडी के मुद्दा विहीन युद्ध में राजनीतिक आचरण की धींगामस्ती हुई।

 सोलन के चुनाव में जनता ने अपना मत स्पष्ट करते हुए मेयर और डिप्टी मेयर से उम्मीदों का नया रिश्ता जोड़ा है। कमोबेश इसी आशा से अन्य शहरों के महापौर व उप महापौर देखे जाएंगे, इसलिए सरकार को शहरी सत्ता को प्रश्रय देते हुए इसे वित्तीय शक्तियां तथा विशेषाधिकार सौंपने होंगे। शिमला के बाद धर्मशाला नगर निगम के अनुभव बताते हैं कि अभी  हिमाचल की शहरी व्यवस्था के ताज कितने ढीले व कांटों से भरे हैं।  सरकार के वर्तमान बजट में शहरी विकास की मद में कुल 708.6 करोड़ राशि रखी है जो पिछले साल के 819.26 करोड़ से करीब 10 प्रतिशत कम है। यह बजट नए या पुराने नगर निगमों की वित्तीय जरूरतों के अनुरूप कमजोर दिखाई देता है, अतः इस दिशा में योजनाओं-परियोजनाओं के साथ-साथ शहरी आत्मनिर्भरता के सपनों को जमीन पर लाने के लिए कड़ी मेहनत व सहयोग की अपेक्षा रहेगी। नगर निगम चुनावों ने सत्ता व विपक्ष की राजनीतिक समीक्षा नहीं की, बल्कि यह भी बताया कि हिमाचल में शहरीकरण की वास्तविक तड़प है क्या। कई अनुत्तरित प्रश्न चुनावी मोर्चे पर उभरे हैं और अगर सोलन के मुद्दों का ही संज्ञान लें, तो प्रदेश के हर शहर की पेयजलापूर्ति, पार्किंग, पार्क, कूड़ा-कचरा प्रबंधन, परिवहन तथा आवासीय जरूरतों को पूरा करने के लिए विशेष योजनाएं बनानी पड़ेंगी। राज्य के टीसीपी कानून के साथ-साथ शहरी विकास की प्राथमिकताओं और प्रबंधन की दिशा में नई फेहरिस्त तैयार करनी पडे़ेगी।


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