किसी अजूबे से कम नहीं हैं  रामायण के पात्र

By: Apr 17th, 2021 12:20 am

दानवों को पता चला कि उनके भांजे रावण ने अकेले ही स्वर्ग में सभी देवताओं को परास्त कर दिया, तीनों लोकों में इस बात का पता चला और इस बात से दानव बहुत खुश हो गए। उनकी वर्षों की मनोकामना पूर्ण हो गई और दानवों ने रावण की जय-जयकार की और रावण को अपना राजा बनने की प्रार्थना की। रावण के तेज और उसके भव्य स्वरूप और नेतृत्व से दानव ने प्रसन्न होकर अपनी अत्यंत सुंदर और मर्यादा का पालन करने वाली पुत्री मंदोदरी का विवाह रावण के साथ किया और रावण पत्नी रूप में मंदोदरी को पाकर प्रसन्न हुआ। पतिव्रता नारियों में मंदोदरी का स्थान देवी अहिल्या के समकक्ष है। रावण सर्व ज्ञानी था। उसे हर एक चीज का अहसास होता था क्योंकि तंत्र विद्या का ज्ञाता था…

-गतांक से आगे…

ब्रह्मदेव और महादेव की पूजा का जल लाने का कार्य भी देवताओं को दिया था, लेकिन बाद में वह सात्विक से तामसी प्रवृत्ति में पड़ गया। अभिमान और असुरों की संगति, इन दो कारणों से रावण पतन को प्राप्त हुआ। रावण से ज्यादा रावण के नाम का फायदा उठाया दूसरे राक्षसों ने। उसके नाम पर कर वसूली, सिद्ध संतों-मुनि जनों का अपमान होने लगा। राक्षसों ने देवताओं से अपना बैर निकालने के लिए, वो कभी गायों को, पृथ्वी समझ कर कि ब्रह्मा जी के पास गई थी, इसका भेद पूछने के लिए और  ब्राह्मणों इसलिए कि, स्वर्ग में बहुत कम देवता ही रह गए हैं। शायद ये रूप बदल कर देवता ही ब्राह्मण हैं और संत बन कर देवताओं की मदद कर रहे हैं, राक्षस जहां-तहां सभी को त्रास देने और मारने लगे।

रावण और राक्षस

रामायण के अनुसार रावण के पिता विश्रवा थे जो ऋषि पुलत्स्य के पुत्र थे। रावण की माता कैकसी थी जो राक्षस कुल की थी। इसलिए रावण ब्राह्मण पिता और राक्षसी माता की संतान था और रावण कई विद्याएं, वेद, पुराण, नीति, दर्शनशास्त्र, इंद्रजाल आदि में पारंगत होने के बावजूद उनकी प्रवृत्तियां राक्षसी थी और पूरे संसार में आतंक मचाता था। रावण का बड़ा भाई वैश्रावण था।

रावण का विवाह

दानवों को पता चला कि उनके भांजे रावण ने अकेले ही स्वर्ग में सभी देवताओं को परास्त कर दिया, तीनों लोकों में इस बात का पता चला और इस बात से दानव बहुत खुश हो गए। उनकी वर्षों की मनोकामना पूर्ण हो गई और दानवों ने रावण की जय-जयकार की और रावण को अपना राजा बनने की प्रार्थना की। रावण के तेज और उसके भव्य स्वरूप और नेतृत्व से दानव ने प्रसन्न होकर अपनी अत्यंत सुंदर और मर्यादा का पालन करने वाली पुत्री मंदोदरी का विवाह रावण के साथ किया और रावण पत्नी रूप में मंदोदरी को पाकर प्रसन्न हुआ। पतिव्रता नारियों में मंदोदरी का स्थान देवी अहिल्या के समकक्ष है।

रावण का अहम

रावण सर्व ज्ञानी था। उसे हर एक चीज का अहसास होता था क्योंकि तंत्र विद्या का ज्ञाता था। रावण ने सिर्फ  अपनी शक्ति एवं स्वयं को सर्वश्रेष्ठ साबित करने में सीता का अपहरण अपनी मर्यादा में रह कर किया। अपनी छाया तक उस पर नहीं पड़ने दी।

राजा अनरण्य का रावण को शाप

अनेक राजा-महाराजाओं को पराजित करता हुआ दशग्रीव इक्ष्वाकु वंश के राजा अनरण्य के पास पहुंचा जो अयोध्या पर राज्य करते थे। उसने उन्हें भी द्वंद्व युद्ध करने अथवा पराजय स्वीकार करने के लिए ललकारा। दोनों में भीषण युद्ध हुआ, किंतु ब्रह्माजी के वरदान के कारण रावण उनसे पराजित न हो सका। जब अनरण्य का शरीर बुरी तरह से क्षत-विक्षत हो गया तो रावण इक्ष्वाकु वंश का अपमान और उपहास करने लगा। इससे कुपित होकर अनरण्य ने उसे शाप दिया कि तूने अपने व्यंग्यपूर्ण शब्दों से इक्ष्वाकु वंश का अपमान किया है, इसलिए मैं तुझे शाप देता हूं कि महात्मा इक्ष्वाकु के इसी वंश में दशरथ-नंदन राम का जन्म होगा जो तेरा वध करेंगे। यह कह कर राजा स्वर्ग सिधार गए।


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