लोकगीतों में करनैल राणा का योगदान

उनकी आवाज़ के विशेष लगाव एवं आवाज़ गुणधर्म के कारण कई युवा गायक छाया प्रति की तरह उनका अनुकरण करते हैं। उनकी आवाज़ में एक आम जनमानस की वेदना तथा हृदय की पुकार है। वृद्धों, पुरुषों, स्त्रियों एवं युवाओं के दिल पर यह आवाज़ वर्षों से राज करती रही है…
लोकसंगीत से हिमाचली संस्कृति को अपने उत्कर्ष पर स्थापित करने के लिए प्रदेश के अनेकों लोकगायकों, लोक वाद्य-वादकों तथा लोक नर्तकों की एक विशाल परंपरा ने अपना योगदान दिया है। कई पीढि़यों ने इस पहाड़ के संगीत के मधुर स्वरों, ध्वनियों, शब्दों, भावों, थिरकती लयकारियों को जनमानस के हृदय में प्रेषित करने में अपनी अहम भूमिका निभाई है। इस महान लोक संस्कृति की अनंत यात्रा में प्रदेश के अनेकों कलाकार सारथी एवं साक्षी रहे हैं। स्वर्गीय काकू राम, गम्भरी देवी, हेत राम तनवर, प्रताप चंद शर्मा, शेर सिंह, हेत राम कैंथा, रौशनी देवी, कली चौहान, पं. ज्वाला प्रसाद, शुक्ला शर्मा, अच्छर सिंह परमार, डा. केएल सहगल, पीयूष राज, रविकांता कश्यप, कुलदीप शर्मा, ठाकुर दास राठी, धीरज शर्मा, विक्की चौहान, संजीव दीक्षित आदि कई लोकगायकों ने प्रदेश को लोकरंग में रंग दिया। पूर्व में कई लोक गायक वर्षों तक आकाशवाणी शिमला केंद्र के माध्यम से लोकप्रिय रहे। प्रदेश की लोक संगीत यात्रा के क्रम में वर्ष 1995 में कांगड़ा जिला का लोकगीतों का एक नया सितारा अलग पहचान, अलग अंदाज़, अलग सुर लेकर सामने आया।
गांव रकवाल लाहड़, अप्पर घलौर, तहसील ज्वालामुखी में 30 अप्रैल 1963 को श्रीमती इंदिरा देवी तथा स्वर्ण सिंह राणा के घर पैदा हुए करनैल राणा आज हिमाचल प्रदेश के प्रतिष्ठित एवं वरिष्ठ कलाकार के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं। प्रारंभिक शिक्षा में ही करनैल के शिक्षकों ने पाठशाला के प्रत्येक सांस्कृतिक कार्यक्रम में इनकी प्रस्तुति अनिवार्य कर दी थी। राजकीय महाविद्यालय धर्मशाला में संगीत को अपना ऐच्छिक विषय चुनने तथा महाविद्यालय, विश्वविद्यालय युवा समारोहों में वाहवाही लूटने, अनेक पुरस्कार जीतने से लोक गायक के रूप में करनैल राणा को पहचान मिलनी शुरू हुई। स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद करनैल ने वर्ष 1986 में नेहरू युवा केंद्र में अकाउंटेंट, टाइपिस्ट तथा लोक कलाकार के रूप में कई अंतर्राज्यीय, राष्ट्रीय लोक संगीत की कार्यशालाओं तथा कार्यक्रमों में प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया। करनैल ने खुला विश्वविद्यालय, कोटा (राजस्थान) से बीजेएमसी की उपाधि भी प्राप्त की। दिसंबर, 1988 में करनैल राणा को हिमाचल प्रदेश सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में नाट्य इकाई के कलाकार के रूप में नियुक्ति मिली। वास्तव में लोक कलाकार के रूप में यहीं से इनका जनसंपर्क शुरू हुआ। इन्होंने विभाग में प्रदेश सरकारों की जन कल्याणकारी नीतियों को संगीत तथा नाटकों के माध्यम से पहुंचाने का कार्य किया। वर्ष 1989 में करनैल राणा ने आकाशवाणी शिमला से बी-ग्रेड में लोक संगीत की स्वर परीक्षा उत्तीर्ण की।
इसी वर्ष इनकी पहली कैसेट ‘चंबे पतणे दो बेडि़यां’ बाजार में आई जिसने करनैल राणा को पूरे प्रदेश में पहचान दिलाई। तब से लेकर आज तक कई नामी-गिरामी संगीत कंपनियों के माध्यम से इनकी लगभग 270 कैसेट्स, सीडी तथा वीडियोज़ निकाली जा चुकी हैं। कांगड़ा के प्रतिष्ठित लोक गायक स्वर्गीय प्रताप चंद शर्मा को अपना आदर्श मानने वाले करनैल राणा की ‘रुहला दी कूहल’, ‘चम्बे पतणे दो बेडि़यां’, ‘पतणा देया तारूआ’ आदि कई कैसेट प्रसिद्ध हो चुकी हैं। करनैल राणा ने हिमाचल प्रदेश विशेषकर कांगड़ा-चंबा के सभी लोकप्रिय गीतों को अपना स्वर प्रदान किया है जिन्हें सुनते ही अपनी मिट्टी की खुशबू आने लगती है। इक जोड़ा सूटे दा, कजो नैण मिलाए, फौजी मुंडा आई गया छुट्टी, दो नारां, डाडे दिए बेडि़ए, बिंदु नीलू दो सखियां, होरना पतणा तथा ओ नौकरा अम्ब पके ओ घर आ जैसे लोकगीतों के साथ-साथ करनैल राणा ने बाबा बालक नाथ, देवियों के भजनों, शिव भजनों तथा सांसारिक परंपरागत लोक भजनों को भी रिकॉर्ड करवाया। रात्रि जागरणों से तो करनैल राणा पहाड़ की आवाज बन गए। लोक भजनों में निंदरे पारे-पारे चली जायां, ओ घड़ी भर राम जपणा, धूड़ू नचाया जटा ओ खलारी हो तथा हुण ओ कताईं जो नसदा धूड़ूआ जैसे सांसारिक भजनों से तो श्रोताओं ने राणा को सर-आंखों पर बिठा दिया। हिमाचल प्रदेश का शायद ही ऐसा कोई जनपद, मुख्यालय, सांस्कृतिक केंद्र, गांव या धर्मस्थल नहीं रहा होगा जहां करनैल राणा की लोकगीतों या लोकभजनों प्रस्तुति नहीं हुई होगी। दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़, जालंधर, लुधियाना, गोवा, राजस्थान, गुजरात, पंजाब तथा जम्मू-कश्मीर के विभिन्न लोकमंचों पर करनैल राणा ने प्रदेश के प्रतिनिधि कलाकार के रूप में प्रदेश का नेतृत्व किया। करनैल राणा लोक गायन में आकाशवाणी से ए-ग्रेड प्राप्त करने वाले प्रदेश के एकमात्र कलाकार हैं। करनैल राणा ने प्रदेश तथा देश के अनेकों गांवों, शहरों में आज तक लगभग दो हज़ार कार्यक्रमों में हिमाचली लोक गीतों तथा लोक भजनों तथा जागरणों में प्रस्तुतियां देकर अपनी लोक संस्कृति को बिखेरा है। करनैल राणा को अनेकों सरकारी, गैर सरकारी, सांस्कृतिक, सामाजिक तथा राजनीतिक संस्थाओं द्वारा अनगिनत सम्मानों तथा पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। करनैल राणा प्रदेश के कई संगीत समारोहों तथा टैलेंट हंट कार्यक्रमों में सेलिब्रिटी जज रह चुके हैं।
इतनी लंबी, प्रभावशाली तथा सफल संगीत यात्रा करना किसी भी कलाकार के लिए कोई सामान्य बात नहीं है। करनैल राणा को उनकी गायन की विशेषता, स्वर लगाव तथा लम्बी हूक के लिए हमेशा याद रखा जाएगा। राणा को प्रदेश के लगभग सभी राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों, केंद्रीय मंत्रियों, मंत्रियों, प्रतिष्ठित हस्तियों, प्रशासनिक अधिकारियों एवं सेना के अधिकारियों के सम्मुख अपनी सांस्कृतिक प्रस्तुतियां देने का मौका मिला है। उनकी आवाज़ के विशेष लगाव एवं आवाज़ गुणधर्म के कारण कई युवा गायक छाया प्रति की तरह उनका अनुकरण करते हैं। उनकी आवाज़ में एक आम जनमानस की वेदना तथा हृदय की पुकार है। वृद्धों, पुरुषों, स्त्रियों एवं युवाओं के दिल पर यह आवाज़ वर्षों से राज करती रही है। किसी की रूह में बसना कोई आसान कार्य नहीं होता। करनैल राणा ने वर्षों तक लोगों के दिलों की धड़कन बनकर प्रदेश के आम जनमानस के हृदय पर धड़कन बन कर राज किया है। करनैल राणा बनना आसान नहीं होता, इसमें पूरा जीवन लग जाता है। 30 अप्रैल, 2021 को प्रदेश के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग से सहायक लोक संपर्क अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए करनैल राणा प्रदेश में प्रदत्त उनकी कला एवं सांस्कृतिक सेवाओं के लिए धन्यवाद एवं प्रशंसा के पात्र हैं।
प्रो. सुरेश शर्मा
लेखक नगरोटा बगवां से हैं