जीवों को सभी कर्मों का फल देते हैं शनिदेव

By: Jun 5th, 2021 12:25 am

शनि जयंती एक हिंदू पर्व है जो ज्येष्ठ, कृष्ण पक्ष, अमावस्या को मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन शनि देव का जन्म हुआ था। शनि देव हिंदू धर्म में पूजे जाने वाले प्रमुख देवताओं में से एक हैं…

शनि जन्म कथा

शनि जन्म के संदर्भ में एक पौराणिक कथा बहुत मान्य है जिसके अनुसार शनि, सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं। सूर्य देव का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री संज्ञा से हुआ। कुछ समय पश्चात उन्हें तीन संतानों के रूप में मनु, यम और यमुना की प्राप्ति हुई। इस प्रकार कुछ समय तो संज्ञा ने सूर्य के साथ निर्वाह किया, परंतु संज्ञा सूर्य के तेज को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाईं, उनके लिए सूर्य का तेज सहन कर पाना मुश्किल होता जा रहा था। इसी वजह से संज्ञा अपनी छाया को पति सूर्य की सेवा में छोड़कर वहां से चली गईं। कुछ समय बाद छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ।

शनि जयंती पूजा

शनि जयंती के अवसर पर शनिदेव के निमित्त विधि-विधान से पूजा-पाठ तथा व्रत किया जाता है। शनि जयंती के दिन किया गया दान-पुण्य एवं पूजा-पाठ शनि संबंधी सभी कष्ट दूर कर देने में सहायक होता है। शनिदेव के निमित्त पूजा करने हेतु भक्त को चाहिए कि वह शनि जयंती के दिन सुबह जल्दी स्नान आदि से निवृत्त होकर, नवग्रहों को नमस्कार करते हुए शनिदेव की लोहे की मूर्ति स्थापित करे और उसे सरसों या तिल के तेल से स्नान कराए तथा षोड्शोपचार पूजन करे, साथ ही शनि मंत्र का उच्चारण करे-ओउम शनिश्चराय नमः।

इसके बाद पूजा सामग्री सहित शनिदेव से संबंधित वस्तुओं का दान करे। इस प्रकार पूजन के बाद दिन भर निराहार रहें व मंत्र का जप करें। शनि की कृपा एवं शांति प्राप्ति हेतु तिल, उड़द, काली मिर्च, मूंगफली का तेल, आचार, लौंग, तेजपत्ता तथा काले नमक का उपयोग करना चाहिए। शनि देव को प्रसन्न करने के लिए हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए। शनि के लिए दान में दी जाने वाली वस्तुओं में काले कपड़े, जामुन, काली उड़द, काले जूते, तिल, लोहा, तेल आदि वस्तुओं को शनि के निमित्त दान में दे सकते हैं।

शनि देव की विशेष पूजा

इस दिन शनि देव की विशेष पूजा का विधान है। शनि देव को प्रसन्न करने के लिए अनेक मंत्रों व स्तोत्रों का गुणगान किया जाता है। शनि हिंदू ज्योतिष में नौ मुख्य ग्रहों में से एक हैं। शनि अन्य ग्रहों की तुलना में धीमे चलते हैं, इसलिए इन्हें शनैश्चर भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार शनि के जन्म के विषय में काफी कुछ बताया गया है और ज्योतिष में शनि के प्रभाव का साफ संकेत मिलता है। शनि ग्रह वायु तत्त्व और पश्चिम दिशा के स्वामी हैं। शास्त्रों के अनुसार शनि जयंती पर उनकी पूजा-आराधना और अनुष्ठान करने से शनिदेव विशिष्ट फल प्रदान करते ।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण

शनिदेव को समस्त ग्रहों में सबसे शक्तिशाली ग्रह माना गया है। शनि देव के शीश पर अमूल्य मणियों से बना मुकुट सुशोभित है। शनि देव के हाथ में चमत्कारिक यंत्र है, शनिदेव न्यायप्रिय और भक्तों को अभय दान देने वाले देव माने जाते हैं। शनिदेव प्रसन्न हो जाएं तो रंक को राजा और क्रोधित हो जाएं तो राजा को रंक भी बनाने मे देरी नहीं लगाते हैं।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि का फल व्यक्ति की जन्म कुंडली के बलवान और निर्बल होने पर तय करते हैं कि जातक को शनि प्रभाव से बचने के लिए क्या-क्या उपाय करने चाहिए। शनि पक्षरहित होकर अगर पाप कर्म की सजा देते हैं तो उत्तम कर्म करने वाले मनुष्य को हर प्रकार की सुख-सुविधा एवं वैभव भी प्रदान करते हैं। शनि देव की जो भक्तिपूर्वक व्रतोपासना करते हैं, वे पाप की ओर जाने से बच जाते हैं जिससे शनि की दशा आने पर उन्हें कष्ट नहीं भोगना पड़ता। शनिदेव की पूजा के पश्चात उनसे अपने अपराधों एवं जाने-अनजाने जो भी आपसे पाप कर्म हुआ हो, उसके लिए क्षमा याचना करनी चाहिए। शनि महाराज की पूजा के पश्चात राहु और केतु की पूजा भी करनी चाहिए। इस दिन शनि भक्तों को पीपल में जल देना चाहिए और पीपल में सूत्र बांधकर सात बार परिक्रमा करनी चाहिए। शनिवार के दिन भक्तों को शनि महाराज के नाम से व्रत रखना चाहिए।

न्याय के देवता

शनिदेव नीतिगत न्याय करते हैं। कहते हैं ‘शनि वक्री जनैः पीड़ा’ अर्थात शनि के वक्री होने से लोगों को पीड़ा होती है। इसीलिए शनि की दशा से पीडि़त लोगों को शनि जयंती के दिन उनकी पूजा-आराधना करनी चाहिए। इससे उन्हें सुख प्राप्त होगा और पूरे साल हर शनिवार के दिन पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाने और सरसों के तेल का दीया जलाने से प्रसन्न किया जा सकता है। यह न्याय के देवता हैं, योगी, तपस्या में लीन और हमेशा दूसरों की सहायता करने वाले होते हैं। शनि ग्रह को न्याय का देवता कहा जाता है। यह जीवों को सभी कर्मों का फल प्रदान करते हैं। शनिवार को सुंदरकांड या हनुमान चालीसा का पाठ करके, इसके साथ ही इस दिन शनि चालीसा का पाठ विशेष फल प्रदान कराता है। शनिदेव का नाम या स्वरूप ध्यान में आते ही मनुष्य भयभीत अवश्य होता है, लेकिन कष्टतम समय में जब शनिदेव से प्रार्थना कर उनका स्मरण करते हैं तो वे ही शनिदेव कष्टों से मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त करते हैं।

शनि जयंती का महत्त्व

इस दिन प्रमुख शनि मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। भारत में स्थित प्रमुख शनि मंदिरों में भक्त शनि देव से संबंधित पूजा-पाठ करते हैं तथा शनि पीड़ा से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं। शनि देव को ‘काला’ या ‘कृष्ण वर्ण’ का बताया जाता है, इसलिए इन्हें काला रंग अधिक प्रिय है। शनि देव काले वस्त्रों में सुशोभित हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि के दिन हुआ है। जन्म के समय से ही शनि देव श्याम वर्ण, लंबे शरीर, बड़ी आंखों वाले और बड़े केशों वाले थे।


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