भावनाओं से मित्रता

By: Jul 24th, 2021 12:20 am

ओशो

कहीं न कहीं यह भय है, जो मुझे संकीर्ण, कठोर, दुःखी, हताश, क्रोधित और आशाहीन कर जाता है।  और यह इतना सूक्ष्म लगता है कि मैं किसी तरह भी इससे संबंधित नहीं हो पाता। मैं इसको और अधिक स्पष्टता से कैसे देख सकता हूं? उदासी, चिंता, क्रोध, क्लेश और हताशा, दुख के साथ एकमात्र समस्या यह है कि तुम इन सबसे छुटकारा पाना चाहते हो। यही एकमात्र बाधा है। तुम्हें इनके साथ जीना होगा। तुम इन सबसे भाग नहीं सकते। यही वे सारी परिस्थितियां हैं, जिनमें जीवन केंद्रित होता है और विकसित होता है।  यही जीवन की चुनौतियां हैं। इन्हें स्वीकार करो। ये छुपे हुए वरदान हैं। अगर तुम इन सबसे पलायन करना चाहते हो, और किसी भी तरह इनसे छुटकारा पाना चाहते हो, तब समस्या खड़ी होती है, क्योंकि जब तुम किसी भी चीज से छुटकारा पाना चाहते हो, तब तुम उसे सीधा नहीं देख सकते। तब वे चीजें तुमसे छिपनी शुरू हो जाती हैं, क्योंकि तब तुम निंदात्मक हो, तब ये सारी चीजें तुम्हारें गहरे अचेतन मन में प्रवेश कर जाती हैं, तुम्हारे अंदर के किसी अंधेरे कोने में घुस जाती हैं, जहां तुम इसे देख नहीं सकते। तुम्हारे भीतर के किसी तहखाने में ये छिप जाती हैं। और स्वभावतः जितने भीतर ये प्रवेश करती हैं, उतनी ही समस्या उत्पन्न होती है, क्योंकि तब वे तुम्हारे भीतर के किसी अनजाने कोने से कार्य करती हैं और तब तुम बिलकुल ही असहाय हो जाते हो।

तो पहली बातः कभी दमन मत करो। पहली बातः जो भी, जैसा भी है, वैसा ही है। इसे स्वीकार करो और इसे आने दो, इसे तुम्हारे सामने आने दो। वास्तव में सिर्फ  यह कहना कि दमन मत करो, काफी नहीं है। और अगर मुझे इजाजत दो तो मैं कहूंगा कि ‘इसके साथ मित्रता करो।’ तुम्हें विषाद का अनुभव हो रहा है? इससे मैत्री करो, इसके प्रति अनुग्रहीत बनो। विषाद का भी अस्तित्व है, इसको आने दो। विषाद भी सुंदर है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। तुमसे यह किसने कहा कि विषाद में कुछ गलत है? हंसी बहुत उथली होती है और प्रसन्नता त्वचा तक ही जाती है, पर विषाद हड्डियों के भीतर तक जाता है। इसलिए चिंता मत करो, उसके साथ रहो और विषाद तुम्हें स्वयं के अंतरतम केंद्र में ले जाएगा। तुम उस पर सवार होकर अपने स्वयं के बारे में कुछ अन्य नई बातें भी जान सकते हो, जो तुम पहले से नहीं जानते थे, वे बातें सुख की अवस्था में कभी उजागर नहीं हो सकती थीं। अंधेरा भी दिव्य है।

 अस्तित्व में केवल दिन ही नहीं है, रात भी है। मैं इस रवैये को धार्मिक कहता हूं। कोई व्यक्ति अगर धैर्यपूर्वक उदास हो सके, तो तत्काल ही पाएगा कि एक सुबह उसके हृदय के अनजाने स्रोत से प्रसन्नता की रसधारा बहने लगी। वह अनजाना स्रोत ही दिव्यता है। इसे तुम भी अर्जित कर सकते हो, अगर तुम सच में ही विषाद का अनुभव कर सको, अगर तुम सच में ही आशाहीन, निराश, दुःखी और दयनीय हो सको, ऐसे जैसे नरक भोगकर आए हो, तब तुमने स्वर्ग का अर्जन कर लिया, तब तुमने इसकी कीमत चुका दी। जीवन का सामना करो, मुकाबला करो। मुश्किल क्षण भी होंगे, पर एक दिन तुम देखोगे कि उन मुश्किल क्षणों ने भी तुमको अधिक शक्ति दी क्योंकि तुमने उनका सामना किया। यही उनका उद्देश्य है। उन मुश्किल के क्षणों से गुजरना बहुत कठिन है पर बाद में तुम देखोगे उन्होंने तुम्हें ज्यादा केंद्रित बनाया। जिसके बिना तुम जमीन से जुड़े और केंद्रित नहीं हो सकते थे। पूरे विश्व के पुराने सारे धर्म दमनात्मक ही रहे हैं, भविष्य का नया धर्म अभिव्यक्ति देने वाला होगा और मैं वही नया धर्म सिखाता हूं।


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