अब मैं चुप नहीं रहूंगा

By: Jul 23rd, 2021 12:05 am

रहीम दास जी की बात मानकर मैं चार साल से चुप बैठा हुआ था। लेकिन अब मुझे लग रहा है कि चुप बैठना घाटे का सौदा है। रहीम दास जी को अब कन्टीन्यू किया तो न मैं घर का रहूंगा न घाट का, क्योंकि चुनाव नजदीक हैं और सारे ही राजनीतिक दल लोकलुभावन वातावरण बना रहे हैं। मेरा जैसा बिचौलिया यदि अब चुप रहा तो ऐन वक्त पर हाथ खाली रह जाएंगे और मैं घर व बच्चों के लिए कुछ नहीं कर पाऊंगा। कल पत्नी ने भी कहा था कि चुप कैसे बैठे हो, आप तो अवसरवादी हैं, जैसी हवा अनुकूल लग रही हो, उसका मूल्यांकन करके किसी के साथ लग लो, बाद में पछताना पड़ेगा। मैंने पत्नी की बात पर स्वीकृति से सिर हिलाया और माना कि यह कमाने-खाने का पीक सीजन है। सर्वप्रथम मेरा ध्यान पता नहीं क्यों नमो-नमो पर गया। मन ने कहा कि हवा में यह नाम काफी घुल रहा है, यदि इस पर ध्यान दिया जाए तो कैसा रहे? मैने फिर पत्नी से पूछा कि नमो-नमो कैसा रहेगा। उसने मंजे हुए खिलाड़ी की तरह कहा कि आप का दिमाग तो ठीक है न? नमो-नमो का पारायण करोगे तो कुछ नहीं मिलेगा। जिन्होंने घोटाले किए हैं, माल तो उनके पास है।

 अपने को किसी के सत्ता में आने, न आने से क्या फर्क पड़ता है, अपने तो माल मारना है। मैं पत्नी का इशारा समझ गया और मैंने अपना ध्यान उधर लगाया। मन ने कहा पत्नी का कथन सही है, माल वाले को पकड़ना ही ठीक रहेगा। मैं घोटालेबाजों के दरवाजे पर पहुंचा तो भीड़-भाड़ काफी थी। मुझे एक जानकार की शक्ल दिखाई दी, मैंने कहा -‘भाई साहब इधर हूं।’ उन्होंने मेरी पुकार पर कान दिए और भीड़ चीरते हुऐ मेरे पास आ गए। मुझे एक सुनसान पेड़ के नीचे ले गए और बोले -‘ऐसा करो, पहले तो अपना हुलिया बदलो। ठीक समय पर आए हो। कलफदार कुर्ता-पायजामा धारण करके मेरे पास परसों आओ। मैं मुखिया जी से मिलवा दूंगा। इस समय तुम्हारे जैसे जुगाडु़ओं की परम आवश्यकता है। हम दो टर्म पूरा करने जा रहे हैं, तीसरे के लिये प्रयत्नशील हैं। खजाना खुला छोड़ दिया है। धन लुटा रहे हैं। भोजन की गारंटी दे रहे हैं।

अब कोई आदमी भूखा नहीं सोएगा। सबसिडी आधार कार्ड के आधार पर सीधे आम आदमी के बैंक खाते में दे रहे हैं। इसलिए हमने पासे तो एक से एक नायाब फेंके हैं। सवाल उनका जन सामान्य के दिमाग में बैठाने का है। मुझे विश्वास है तुम्हारा जैसा कार्यकर्ता ही यह कर सकता है।’ मैं बोला -‘सर आपको तो महंगाई ने मारा है। डीजल, पैट्रोल और गैस के महंगे होने से बाजार की हर चीज आसमान छू रही है, साथ ही माफ करना, घोटालों की भी कमी नहीं रहने से छवि खराब हुई है। ऐसे में मेहनत का काम तो है ही।’ वे मेरी इस बात को सुनते ही भड़क उठे और बोले -‘गोली मारो इमेज को। घोड़ा घास से यारी करे तो खाए क्या। तुम को इस भीड़ से अलग मैं क्या झख मारने लाया हूं। इसी में तो करिश्मा करना है। उलटे तुम तो हमारे खोट गिनाने लगे।’ मैं बोला -‘नहीं सर, मैंने तो एक बात कही थी। बाकी तो मैं बहुरूपिया हूं। अब मैं चुप नहीं रहूंगा और अपना आलाप इतना ऊंचाई तक ले जाऊंगा कि टर्म पर टर्म मिलते जाएंगे।’ वे बहुत खुश हुए। चुपचाप मेरी पेंट में पता नहीं क्या घुसेड़ा और कहा -‘जाओ परसों आना और सुनो अब चुप मत रहना। यह बोलने का वक्त है। झूठ का कारोबार करते हैं हम सब। जाओ ऐश करो।’ घर आकर जेब से निकालकर सौगात देखी तो गांधी की छाप वाले कागज देखकर मैं और पत्नी फूले नहीं समाए। पत्नी ने भी यही कहा -‘अब चुप मत बैठना।’ तब से मैं एकालाप में डूबा हुआ हूं।

पूरन सरमा

स्वतंत्र लेखक


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