पर्यटक को डर है या

By: Jul 20th, 2021 12:05 am

पहली बार व्यापार को विज्ञान की जरूरत पड़ी और इश्तिहार को चमत्कार की। बादल का एक निहायत बिगड़ा हुआ कतरा भी जब जुल्म करता है, तो इस कवायद का कोना पकड़े नहीं पकड़ा जाता। पिछली बारिश ने अपनी वकालत नहीं की, बल्कि जो पानी गुजर गया उसकी कहानी अमृत नहीं। लगभग व्यापार की शून्यता पर आंसू बहाती होटल एवं रेस्तरां एसोसिएशन के पास पकड़ने को कुछ नहीं, न पर्यटक और न ही मौसम का अनुमान। एक बारिश ने मकलोडगंज से बहुत कुछ लूटा, लेकिन दुष्प्रचार ने तो जैसे व्यापार को ही लील दिया। एसोसिएशन ने जोर-शोर से कहा है कि नाले में पानी का बहाव बदलने को बादल फटने से जोड़ना गलत था और इससे भयभीत होकर अब पर्यटक ने मुंह मोड़ लिया। यह कार्य सरकार भी कर सकती थी और पर्यटन से जुड़ी तमाम एसोसिएशनों को साल भर करना चाहिए। सही या क्षमतावान पर्यटक तो सामान्य स्थितियों में भी हिमाचल आने से भयभीत रहता है। जब पर्यटन जवानी पर होता है, तो होटल, रेस्तरां या टैक्सी आपरेटरों की अदाकारी से जो भय उत्पन्न होता है, उसकी चिंता भी तो करें। पर्यटक जब अपनी महफिल पूरी तरह सजा देता है, तो वोल्वो बसों या टैक्सी दरों का बढ़ना सौगात तो नहीं बनता।

तात्कालिक लाभ के लिए जब सीटियां मारते होटलों के दलाल भ्रमित करते हैं, तो वास्तव में भय होता है। यहां प्रश्न कठिन इसलिए है कि एक बारिश ने इतने छेद कर दिए कि अब भागसूनाग का दृश्य पूरे देश को डरा रहा है। सोचना यह होगा कि यह परिदृश्य क्यों बना। क्या तीस साल पहले का भागसूनाग, मकलोडगंज, मनाली, कसौली या डलहौजी को कोई एसोसिएशन फिर से जिंदा कर सकती है। वास्तव में हिमाचल के पर्यटन को होटलों की कतार से डर है। यहां पर्यटक को टैक्सी में बैठते हुए डर लगता है कि  तर्क के बिना कितना किराया वसूला जाएगा। क्या पर्यटक को दिल से जोड़ पाए हमारे पर्यटक स्थल। क्या सैलानियों पर केंद्रित व्यापार ने अपने लिए कभी कोई आचार संहिता बनाई। होटल बढ़ते गए, लेकिन सैरगाहें नहीं। नए पहाड़ को खोदने वालों को डर नहीं था कि पर्यावरणीय अस्थिरता बढ़ेगी। भागसूनाग के नाले को रोकने वाले होटल व्यवसायियों को उस समय डर क्यों नहीं था जब वे अतिक्रमण कर रहे थे। जब पर्यटक स्थलों की नालियों में प्लास्टिक या कूड़ा-कचरा भर रहा था, तो होटल-रेस्तरां क्यों नहीं डरे। जब कहीं पर्यटक लुट रहा था, तो संबंधित एसोसिएशन क्यों नहीं डरीं।

जब बिना मास्क के पर्यटकों की भीड़ मनाली, मकलोडगंज, शिमला या अन्य स्थलों पर पहुंच रही थी, तो कौन सी होटल एसोसिएशन डर रही थी। हर पर्यटक सीजन से हिमाचल की जनता भी भयभीत होने लगी है। हिमाचली जनता जिस पर्यटक में भौंडापन देखती है, क्या उसे होटल एसोसिएशनें देख पाती हैं। जिन राहों पर पर्यटक हिमाचली परिवेश से छेड़छाड़ करते हैं, क्या उसे होटल उद्योग देख रहा है। वास्तव में पर्यटन का हर सीजन जब कोहराम मचा रहा था, तो फर्ज की यही दुहाई पनाह मांग रही थी। जनता ने डलहौजी, धर्मकोट, शिमला और मनाली में उजड़ते देवदार के वन देखे हैं। कितना जहर दिया होगा हर उस देवदार को जिसके रास्ते पर होटल का नक्शा आया होगा। कितने पर्यावरणविद पीछे धकेले गए या जब वन भूमि पर अवैध कब्जे हो रहे थे, तो कहां थी ऐसी एसोसिएशन। क्या होटल एसोसिएशनें स्व अनुशासित होकर चिंता करेंगी कि पर्यटक स्थलों की मिट्टी बचाई जा सके। बीड़-बिलिंग तो अभी आंखें खोल रहे हैं, लेकिन वहां विनाश का जखीरा पहुंच चुका है। हिमाचल को पर्यटन राज्य बनाने के लिए संयमित व्यवहार और आदर्श आचार संहिता की जरूरत है। पर्यटन शून्यता पर आंसू बहाने के बजाय लबालब मंजर से आंख चुराने की सजा है यह। अगर एनजीटी न आए, तो होटल निर्माण के पंजों से कौन पर्यटक स्थलों को बचा सकता है। जरा एसोसिएशनें यह भी सोचें कि यह महज व्यापार नहीं, किसी को बुलाने और अच्छी खातिरदारी करने का मसला है यह।


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