लंका दहन के साथ बुराई का खात्मा

By: Oct 22nd, 2021 12:22 am

देव महाकुंभ अंतरराष्ट्रीय दशहरा पर्व का समापन, लंका पर चढ़ाई के लिए हजारों लोगोंं ने खींचा भगवान रघुनाथ का रथ

शालिनी राय भारद्वाज — कुल्लू
गुरुवार को सात दिवसीय अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव लंका दहन के साथ विश्व का सबसे बड़ा देव महाकुंभ संपन्न हुआ। देवताओं के इस महाकुंभ में हजारों लोगों सहित सैकड़ों देवी-देवताओं ने भी डुबकी लगाई। विश्व के सबसे बड़े देव महाकुंभ एवं अनूठी परंपराओं का संगम कुल्लू दशहरा पर्व में रघुनाथ की रथ यात्रा के बाद विधिवत रूप से लंका दहन के नजारे के हजारों लोग गवाह बने। लिहाजा, सात दिनों तक चलने वाले इस महाकुंभ में सैकड़ों देवी-देवताओं के साथ रघुनाथ जी ने लंका पर चढ़ाई कर रावण परिवार के साथ बुराई का भी अंत किया है। लंका चढ़ाई के लिए हुई रथ यात्रा में यहां पहुंचे सभी देवी-देवताओं ने भाग लिया। लंका दहन के साथ ही अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का समापन हुआ। गोबर के बने रावण मेघनाथ व कुंभकर्ण को तीर से भेदने के बाद लंका में आग लगाई गई।

इससे पहले दिन के समय कुल्लू के राजा सुखपाल में बैठकर ढालपुर के कलाकेंद्र मैदान में पहुंचे और महाराजा के जमलू, पुंडीर, रैलू देवता नारायण व वीर देवता की दराग तथा रघुनाथ जी के छड़ीबरदार व नरसिंह भगवान की घोड़ी भी राजा के साथ कला केंद्र मैदान पहुंची, जहां खड़की जाच का आयोजन हुआ। इसके बाद ही रथ यात्रा शुरू हुई। रथयात्रा सफलतापूर्वक संपन्न होते ही देवी-देवताओं ने अपने-अपने स्थलों की ओर जाना आरंभ कर दिया है। राज परिवार के सदस्यों महेश्वर सिंह, दानवेंद्र सिंह, हितेश्वर सिंह व आदित्यविक्रम ने अपनी पारंपारिक वेशभूषा में सुसज्जित होकर रघुनाथ जी की रथयात्रा की अगवाई की। इस रथयात्रा में देवी हिडिंबा के आते ही यात्रा का शुभारंभ हुआ। भगवान रघुनाथ जी की रथ यात्रा आरंभ होते ही जयाकारों के उद्घोषोंं व वाद्ययंत्रों से सारा वातावरण कुछ क्षणों के लिए गुजायमान हो गया। रथयात्रा पूरी होने पर रथ को ढालपुर मैदान से रथ मैदान तक लाया गया, जहां से रघुनाथ जी की प्रतिमा को पालकी में प्रतिष्ठित करके उनके कारकून, हारियान व सेवक ढोल-नगाड़ों व जयकारों के उदघ्ोषों के साथ रघुनाथ में उनके स्थायी मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद स्थापित किया गया। इसके साथ सात दिवसीय कुल्लू दशहरा सपंन्न हो गया। रघुनाथ जी की रथ यात्रा को सफलतापूर्वक संपन्न करवाकर जिला भर से आए देवी-देवताओं ने अपने स्थलों की ओर जाना आरंभ कर दिया।


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