केरल हाई कोर्ट की टिप्पणी; शराब के ठेकों के बाहर खड़े लोग समानतावादी, सबसिडी तक नहीं मांगते

By: Oct 22nd, 2021 12:06 am

केरल हाई कोर्ट की टिप्पणी; कहा, हर कोई शांतिपूर्वक और धैर्यपूर्वक कतार में खड़ा…

एजेंसियां — कोच्चि

शराब के ठेकों के बाहर लगी लंबी लाइन को लेकर केरल हाई कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है। हाई कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि शराब के ठेकों के बाहर खड़े लोग ‘समानतावादी’ हैं और कोई भी व्यक्ति किसी तरह की सबसिडी या आरक्षण की मांग नहीं कर रहा है। इसके साथ ही ग्राहकों को धैर्यपूर्वक और शांतिपूर्ण तरीके से इस तरह की दुकानों के बाहर लाइन में खड़े देखा जा सकता है। जस्टिस दीवान रामचंद्रन ने कहा कि शराब ठेकों के बाहर कोई गरीबी नहीं है। कोई भी व्यक्ति सबसिडी या आरक्षण नहीं चाहता। यह बहुत ही समानतावादी है। हर कोई शांतिपूर्वक और धैर्यपूर्वक कतार में खड़ा है। कोर्ट ने कहा कि इन ठेकों के बाहर भीड़ घटाने का एकमात्र विकल्प ‘वाक इन शॉप’ (कुछ कदम की दूरी पर दुकानें खोलना) है।

कोर्ट ने कहा कि जब तक आपके पास अन्य वस्तुओं की तरह उपयुक्त दुकानें नहीं होंगी, चीजें बेहतर नहीं होगी। इसे किसी अन्य दुकान जैसा बनाएं। कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट के नजदीक शराब का एक ठेका है, जहां लोग अब भी फुटपाथ पर कतार में खड़े दिखते हैं, जबकि कोर्ट ने इसे रोकने के लिए कई निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट ने कहा कि शराब के ठेकों के बाहर लंबी कतार रहने के कारण ही लोग इस तरह की दुकान अपने घरों या कामकाज स्थल के नजदीक नहीं चाहते हैं। जस्टिस रामचंद्रन ने आबकारी विभाग को इस विषय पर नौ नवंबर को होने वाली अगली सुनवाई पर एक रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है।

इस कारण हो रही सुनवाई

दरअसल कोर्ट एक अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दावा किया गया है कि उसके 2017 के फैसले का पालन नहीं हो रहा है। इस फैसले में कोर्ट ने राज्य सरकार और बेवको को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि बेवको की दुकानों की वजह से त्रिशूर के एक इलाके में कारोबार और निवासियों को किसी प्रकार की असुविधा नहीं हो।

यदि पिता ही भक्षक बन जाए, तो फिर कैसा रहम

देशभर में महिलाओं के प्रति अपराध के मामले बढ़ते जा रहे हैं, जिस कारण कोर्ट भी अब इन मामलों में सख्त होता जा रहा है। ऐसे ही एक मामले में गुरुवार को केरल हाई कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि यदि कोई लड़की या महिला यौन संबंध बनाने की आदी हो चुकी है, तो ऐसे में भी बलात्कार के मामले में दोषी को रहम नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि खासतौर पर एक पिता को रहम की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि उम्मीद की जाती है कि पिता अपने बच्चों के लिए रक्षक की तरह कार्य कर। ऐसे में यदि वह ही भक्षक बन जाए, तो फिर कैसा रहम। केरल हाई कोर्ट ने उक्त टिप्पणियां अपनी बेटी का बार-बार बलात्कार कर उसे गर्भवती करने के आरोपी को सजा सुनाते वक्त की। कोर्ट ने आरोपी पिता को इस मामले में 12 साल की कैद की सजा सुनाई है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले की सुनवाई के दौरान यह साफ हुआ है कि लड़की यौन संबंध बनाने की आदी है। इसके बाद भी आरोपी को इस आधार पर रहम नहीं दिया जा सकता। पिता के संबंध को किसी भी मायने में स्वीकार नहीं किया जा सकता।


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