तबादलों की लक्ष्मण रेखा

By: Oct 18th, 2021 12:05 am

तबादलों में सिफारिश के धंधे पर अदालती फरमान पर सतर्क हुई हिमाचल सरकार को अंततः लक्ष्मण रेखा खींचनी ही पड़ी। शिक्षा विभाग व बिजली बोर्ड के तबादला मामलों में अदालत ने कड़े निर्देश देते हुए कर्मचारी संगठनों के दखल को गैरजरूरी पाया था और इसी तरह मंत्री-विधायकों के डीओ नोट पर ट्रांसफर मामलों को भी सिरे से खारिज कर दिया था। सरकार के लिए अदालती आदेशों की अनुपालना के चलते अब कम से कम कर्मचारी यूनियनें प्रत्यक्ष सिफारिश नहीं कर पाएंगी, लेकिन परोक्ष में शिमला स्थित सचिवालय की रौनक में ‘ट्रांसफर की कांस्टीच्यूएंसी’ देखी जा सकती है। हिमाचल में प्रशासनिक ट्रिब्यूनल रही हो या अदालत के माध्यम से कर्मचारी मसलों की फेहरिस्त रही हो, सबसे अधिक मामले स्थानांतरण के ही होते हैं।

 तबादले अपने आप में राजनीतिक लाभार्थियों के टोले की ही मदद करते हैं। इन्हीं प्राथमिकताओं ने कर्मचारी यूनियनों को जन्म दिया और इस तरह एक ही विभाग में कई धड़े और कई संगठन  बनते चले गए। सबसे अधिक कर्मचारी संगठनों की शाखाएं अगर शिक्षा विभाग के प्रांगण में खड़ी होती हैं, तो स्वाभाविक तौर पर ये शिक्षा की गुणवत्ता में इजाफा करने या कॉडर विसंगतियों के सुधार के बजाय अपने-अपने लोगों को सही ठिकानों पर बैठाने का अभिप्राय बन रही हैं। कर्मचारी स्थानांतरण के नाम पर राजनीतिक छत मुहैया है और यह एक ऐसा प्रश्रय बन गया, जो सत्ता से गलबहियां या विरोध की सियासत की मदद करता है। कमोबेश हर सरकार इस तरह के अनावश्यक बोझ के नीचे दब जाती है, लेकिन आज तक किसी पारदर्शी स्थानांतरण नीति या नियमों की दिशा में आगे बढ़ने का संकल्प नहीं दिखाया गया। नतीजतन हमने हिमाचल को ऐसी सरकारी कार्यसंस्कृति का आलेप लगा दिया है, जो एक तंत्र की तरह काम करती है। इसका एक लोकतांत्रिक प्रतिफल तथा प्रतिकूल प्रभाव भी स्थापित हुआ है, जो कमोबेश हर सत्ता को नचाना जानता है। कर्मचारी राजनीति बजटीय दोहन से अपने मुहानों को हमेशा गर्म रखती है, जबकि चुनाव के ऐन वक्त पर हर सत्ता के खाके में सबसे अधिक निराशा यही पैदा करती है।

 अब तो हाल यह है कि कर्मचारी दबाव के चलते नए कार्यालयों की स्थापना, विस्तार और उनकी भूमिका इस तरह तय की जाती है कि किसी तरह कर्मचारी नेता फिट हो जाएं। वर्तमान सरकार ने अध्यापक स्थानांतरणों को लेकर हरियाणा की तर्ज पर डाटा बैंक के जरिए नीति निर्धारण की दिशा में प्रयास किया, लेकिन यह सारा अभियान थोथा साबित हुआ। इससे पहले भी स्थानांतरण नीति के लिए समितियां बनती रहीं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। हर साल हजारों कर्मचारी-अधिकारी खुद को साबित करते हुए मन माफिक तबादला आदेश प्राप्त करके सरकारी तहजीब को बरकरार रखते हैं। अगर तबादला आदेशों पर अनुसंधान किया जाए तो कई चुटकुले या मनोरंजन भरी गाथाएं मिल जाएंगे। ऐसे कर्मचारी मिल जाएंगे जो एक ही स्थान पर पूरा सेवाकाल निभा पाए। दरअसल हिमाचल में स्थानांतरण अब एक कौशल है, सतत प्रयास और सियासत का प्रशाद है। इसीलिए सत्ता बदलते ही कॉडर बदलने की एक अनूठी परंपरा विकसित हो चुकी है, जिसके तहत हर सरकार फाइलों पर हस्ताक्षर करती है। ऐसे में कर्मचारी यूनियनों की सिफारिशों पर लग रहा स्थानांतरण अंकुश तभी सफल माना जाएगा, अगर किसी तरह की पद्धति साथ ही साथ विकसित हो। हर कर्मचारी को अपने स्थानांतरण का हक देते हुए यह सुनिश्चित करना होगा कि उसका ट्रैक रिकार्ड कैसा है तथा उसके द्वारा सुझाए गए विकल्पों में कौन सा पूर्ण न्यायोचित है। स्थानांतरण के जरिए कर्मचारी सुविधाओं और कार्यसंस्कृति में निखार अगर देखा जाए, तो नीति व नियम आसानी से निर्धारित किए जा सकते हैं।


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