धर्म के माध्यम से

By: Oct 16th, 2021 12:20 am

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

राष्ट्रीय जीवन संगीत के विभिन्न स्वर

प्रत्येक राष्ट्र की अपनी अलग कार्य प्रणाली होती है। कुछ राजनीति के माध्यम से कार्य करते हैं तो कुछ सामाजिक सुधारों के माध्यम से और अन्य इससे भी भिन्न मार्गों से। हमारे लिए धर्म का ही एकमेव मार्ग खुला है। अंग्रेज धर्म को राजनीति के माध्यम से ही समझ सकता है। संभावतः अमरीकन को धर्म सामाजिक सुधारों के माध्यम से ही समझ आ सकता है। किंतु हिंदू को राजनीति भी धर्म की भाषा में समझानी होगी। उसके लिए प्रत्येक चीज धर्म के माध्यम से आनी चाहिए। यही हमारे राष्ट्रीय जीवन संगीत का स्थायी स्वर है, अन्य सब स्वर परिवर्तनशील हैं। जिस राष्ट्र का जीवन लक्ष्य राजनीतिक प्रभुता है, उसके लिए धर्म आदि अन्य सब चीजें उस एक महान जीवन लक्ष्य के अधीन हो जाती हैं। किंतु यहां एक दूसरा राष्ट्र है जिसके जीवन का मुख्य लक्ष्य आध्यात्मिकता और त्याग है, जिसका एक ही मूल मंत्र है कि संसार माया है और तीन दिनों का क्षणभंगुर खेल है। अन्य सब कुछ चाहे विज्ञान हो या ज्ञान, सुखोपयोग हो या प्रभुता, धन वैभव हो या नाम और यश उस एक लक्ष्य के अंतर्गत आने चाहिए। सच्चे हिंदू के चारित्र्य का रहस्य भी इसीमें है कि वह पाश्चात्य विज्ञान एवं विद्याओं के अपने समस्त ज्ञान को अपनी संपत्ति व धन वैभव को, अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा तथा यश को इस एक मुख्य लक्ष्य के अधीन कर दे, जो जन्म से ही प्रत्येक हिंदू शिशु को प्राप्त होता है अर्थात आध्यात्मिकता एवं जातीय शुद्धता।

आध्यात्मिक का आधार न छोड़ो

स्मरण रखो यदि तुम पाश्चात्य भौतिकवादी सभ्यता के चक्कर में पड़कर आध्यात्मिकता का आधार त्याग दोगो, तो उसका परिणाम होगा कि तीन पीढि़यों में तुम्हारा जातीय अस्तित्व मिट जाएगा, क्योंकि राष्ट्र का मेरुदंड टूट जाएगा, राष्ट्रीय भवन की नींव ही खिसक जाएगी। इस सबका परिणाम होगा सर्वतोमुखी सत्यानाश। अतः मित्रो एक ही मार्ग शेष है कि हम अपने प्राचीन पूर्वजों से चली आई इस अमूल्य विरासत आध्यात्मिकता की पकड़ को कदापि ढीली न होने दें। क्या तुमने संसार में कोई ऐसा देश सुना है जहां के महानतम राजाओं ने अपनी वंश परंपरा का स्रोत राजाओं से नहीं, निरीह यात्रियों को लूटने वाले, पुराने किलों में रहने वाले लुटेरे सरदारों से नहीं तो वनों में रहने वाले अर्द्धनग्न संन्यासियों से जोड़ा हो। क्या तुमने कभी ऐसा देश नहीं सुना है?  तो सुनो! यही है वह देश। अन्य देशों के बड़े पादरी पुरोहित भी अपनी वंश परंपरा को किसी राजा से जोड़ने का प्रयास करते हैं, किंतु यहां बड़ा सम्राट भी अपने को किसी प्राचीन ऋषि का वंशज कहने में गौरव मानता है। इसलिए चाहे तुम्हारी आध्यात्मिकता में आस्था हो या न हो, राष्ट्रीय जीवन की रक्षा हेतु तुम्हें आध्यात्मिकता के आधार पर टिके रहना होगा। फिर दूसरा हाथ बढ़ाकर अन्य जातियों से जो कुछ लेना चाहो लो, किंतु जो भी उनमें ग्रहण करो उसको अपने जीवन आदर्श के अधीन कर दो।  तब एक चमत्कारी गौरवशाली भावी भारत का उदय होगा।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App