पंचायत चुनाव-कार्यप्रणाली में सुधार जरूरी

By: Nov 23rd, 2021 12:05 am

इसलिए वर्तमान सरकार के माननीय मुख्यमंत्री से आग्रह किया जाता है कि व्यापक जनहित में इस नए कानून को अति शीघ्र बदल कर समाज में सदियों पुरानी रीति के अनुसार पुरुषों को पहले की तरह राशन कार्डों में मुखिया बनाया जाए, जिससे कि प्रदेश सरकार के प्रति लोगों में विश्वास दृढ़ हो सके। पंजाब में भी राशन कार्डों में परिवार के मुखिया पुरुष ही हैं…

पंचायत शब्द का वास्तविक अर्थ ही मिनी संसद या ग्रामीण संसद है। ग्रामीण भारत में पंचायतों का महत्त्व बहुत पुराना है। भारत के कई प्रांतों में इसके मुखिया को सरपंच भी कहा जाता है तथा हमारे इस हिमाचल प्रदेश में इसके मुखिया को प्रधान कहा जाता है। प्रधान की सहायता के लिए हरेक पंचायत में एक उपप्रधान भी चुना जाता है। प्रधान तथा उपप्रधान का चुनाव सारी ग्राम पंचायत के अधिकार क्षेत्र यानी गांवों-वार्डों से सीधा होता है। बाकी प्रधान की सहायता के लिए हरेक वार्ड से एक-एक वार्ड पंच चुना जाता है जिसका चुनाव अपने ही वार्ड या गांव से किया जाता है। क्षेत्र के हिसाब से किसी पंचायत में 5 वार्ड, उससे बड़ी पंचायत में 7 वार्ड और उससे भी बड़ी पंचायत में 9 वार्ड भी होते हैं। आम भाषा में ग्राम पंचायत के सदस्यों को पंच परमेश्वर भी कहा जाता है। 1950-1990 के दशकों में ग्राम पंचायतों का कार्यक्षेत्र संबंधित गांवों के आपसी झगड़े निपटाने, गांवों के रास्ते बनाने तथा खेतों की सिंचाई के लिए खड्डों व नालों पर छोटे-छोटे चेक डैम देकर कूहलें बनाने का होता था। उस समय के प्रधान तथा वार्ड पंच गांव के किसी बड़े वृक्ष जैसे आम, पीपल या वट वृक्ष की छाया के नीचे दरी-चटाई आदि बिछाकर गांवों के छोटे-मोटे घरेलू लड़ाई-झगड़ों का निर्णय आपसी सहमति से कर दिया करते थे। इसके साथ ही ग्राम पंचायतों का मुख्य कार्य गांवों के परिवारों के राशन कार्ड  बनाने का भी होता था। उस समय ग्राम पंचायतों के प्रधान, उपप्रधान तथा पंच गांवों के बड़ी उम्र के आदमी ही बनाए जाते थे। उस समय पंचायतों में आरक्षण बहुत कम होता था, लेकिन सन 1995 में प्रदेश में हिमाचल प्रदेश पंचायती राज निर्वाचन नियम 1994 लागू  होने से ग्राम पंचायतों में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण कर दिया गया, जिससे पंचायतों में आधे पद पुरुषों को और आधे पद महिलाओं को निर्धारित कर दिए गए। कुछ समय तक यह चुनाव की प्रक्रिया तो ठीक-ठाक चलती रही, लेकिन अभी 2021 में प्रदेश में हुए पंचायतों, नगर पंचायतों, बीडीसी, जिला परिषदों के चुनाव में पुरुषों को निर्धारित किए गए कई पदों पर महिला उम्मीदवारों ने अपने नामांकन पत्र दाखिल कर दिए।

 जहां तक निर्वाचन आयोग और भारत के संविधान का प्रश्न है, उसमें तो 50 फीसदी तक ही महिलाओं को इन पंचायती राज संस्थाओं में आरक्षण का प्रावधान है, तो फिर जनरल श्रेणी यानी ओपन सीट पर महिलाएं या दूसरे आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार कैसे खड़े हो सकते हैं? अगर प्रदेश सरकार या निर्वाचन आयोग को ऐसे ही एक-दूसरी श्रेणी-जात के उम्मीदवारों को कहीं से भी चुनाव लड़ने का अधिकार देना है तो आरक्षण का क्या औचित्य है? अगर ऐसा है तो इस वर्तमान आरक्षण प्रणाली को ही निरस्त कर देना चाहिए। ऐसा ही एक उदाहरण हमारी ग्राम पंचायत गरसाहड़, तहसील भोरंज, जिला हमीरपुर का है, जहां पर एक प्रधान तथा 4 वार्ड पंच के पदों पर महिलाएं चुन कर आई  हैं। सिर्फ उपप्रधान और एक वार्ड पंच ही पुरुष उम्मीदवार के रूप में चुन कर आए हैं। जबकि प्रदेश सरकार के अनुसार इस ग्राम पंचायत में 7 पदों पर 50-50 फीसदी के नियम के अनुसार 4 पुरुष और 3 महिलाएं होनी चाहिए थीं। सर्वसम्मति से भी गांव के लोग मिल-बैठकर निर्विरोध पंचायतों का गठन करके अपनी पसंद के प्रधान, उपप्रधान तथा वार्ड पंच चुन सकते हैं तथा प्रदेश सरकार द्वारा ऐसी चुनी हुई निर्विरोध पंचायतों को दस-दस लाख रुपए प्रोत्साहन राशि के रूप में दिए जाते हैं, जोकि गांवों के विकास के लिए एक वरदान है। पूर्व प्रदेश सरकार यानी उस समय के माननीय मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री वीरभद्र सिंह के समय राशन कार्डों में सदियों पुराना कानून हिमाचल प्रदेश में बदल कर रख दिया है, जिसमें महिलाओं को राशन कार्डों में परिवार का मुखिया बना दिया है। यहां पर यह बताना भी अति जरूरी है कि हमारे यहां सनातन धर्म के अनुसार जब लड़कों और लड़कियों के विवाह होते हैं तो  बारात लेकर लड़के अपनी होने वाली ससुराल में लड़की को ब्याहने जाते हैं और लड़की को दुल्हन के रूप में अपने घर ले आते हैं। इसके साथ ही बदकिस्मती से अगर किसी लड़की का विवाह के बाद किसी लड़के से संबंध विच्छेद यानी तलाक हो जाए तो वह लड़की वापस अपने मायके के घर में आ जाती है। लेकिन लड़का अपने घर में ही जन्म लेता है और वहीं प्राण त्याग देता है।

 इसलिए वर्तमान सरकार के माननीय मुख्यमंत्री से आग्रह किया जाता है कि व्यापक जनहित में इस नए कानून को अति शीघ्र बदल कर समाज में सदियों पुरानी रीति के अनुसार पुरुषों को पहले की तरह राशन कार्डों में मुखिया बनाया जाए, जिससे कि प्रदेश सरकार के प्रति लोगों में विश्वास दृढ़ हो सके। यहां यह बताना भी अति जरूरी है कि हमारे पड़ोसी राज्य पंजाब में भी राशन कार्डों में परिवार के मुखिया पुरुष ही हैं। जहां तक बीपीएल या आईआरडीपी से संबंधित परिवारों के चयन का प्रश्न है, इन परिवारों का सही चयन भारत सरकार या प्रदेश सरकार के नए निर्देशों के अनुसार लोगों की वर्तमान स्थिति के अनुसार प्रदेश सरकार के अधिकारियों-कर्मचारियों द्वारा गांवों में घर-घर जाकर प्रत्येक परिवार के मुखिया से उनकी सालाना आमदन संबंधी शपथ पत्र लिया जा सकता है। इस कार्य को करने के लिए ग्राम पंचायतों के वार्ड पंच या महिला मंडलों के प्रधानों से मदद ली जा सकती है तथा जो लोग गलत तरीके से बीपीएल या आईआरडीपी परिवारों की श्रेणी में आ गए हैं, उनको बाहर निकाला जा सकता है। ऐसा करने से गांवों में बहुत कम लोग ही इन श्रेणियों में रह सकेंगे और प्रदेश सरकार को निकट भविष्य में लाखों-करोड़ों रुपए की बचत भी हो सकेगी। अतः आखिर में, प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री वीरेंद्र कंवर और प्रदेश सरकार के निर्वाचन आयोग से आग्रह किया जाता है कि ग्राम पंचायतों को सुचारू ढंग से चलाने के लिए इस लेख में दर्शाए गए सुझावों पर गंभीरता से विचार किया जाए और इन लिखे गए सुझावों में जहां-जहां सुधार की जरूरत है, उन पर अतिशीघ्र कार्रवाई करने की कृपा की जाए, ताकि हमारे प्रदेश की पंचायती राज संस्थाओं की कार्यप्रणाली में आज के समय के अनुसार सुधार हो सके।

रणजीत सिंह राणा

लेखक भोरंज से हैं


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