पुस्तक समीक्षा : नज़्म को समर्पित एक रोचक संग्रह

By: Dec 19th, 2021 12:04 am

ऊना निवासी हिद अबरोल का नज़्म संग्रह ‘ख़्वाबों के पेड़ तले प्रकाशित हुआ है। 232 पृष्ठों पर आधारित यह संग्रह अयन प्रकाशन नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ है। इसकी कीमत 450 रुपए है। शायरी में रुचि रखने वालों के लिए यह संग्रह बेशकीमती है। राशिद जमाल फारूकी इसके विषय में लिखते हैं कि ज़ाहिद अबरोल का अपना ही अनुभव, दर्शन और अपनी ही व्यक्तिगत शैली है।

इनके कलाम का पाठवाचन हैरत के अजीब-ओ-$गरीब अध्याय खोलता है और आप अश-अश करने पर मजबूर हो जाते हैं। इसी तरह प्रो. सत्यपाल आनंद कहते हैं कि इनकी नज़्मों में एक तरफ तो जहां (व्यक्तिगत कम और अव्यक्तिगत ज्यादा) अनुभवों और इनसानी रिश्तों की संभावनाओं के क्रम को देखने और परखने के लिए एक मासूम दृष्टिकोण विद्यमान है, वहां कुछ ऐसी वास्तविक विशेषताएं भी हैं जो जज़्बात से कुछ आगे बढ़कर उनको बुद्धि और विवेक की नर से देखती हैं। हिद अबरोल का नज़्म के विषय में कहना है कि हर नज़्म के पसे-मंर (दृश्य के पीछे) से सामने आने की कोशिश करता हुआ एक विषय होता है जिसके साथ इंसाफ करना शायर का प्रथम कत्र्तव्य होता है।

नज़्म का लंबा या संक्षिप्त होना उस विषय के विस्तार पर निर्भर करता है। नज़्म एहसास की तर्जुमानी के साथ-साथ उसका दृश्यांकन भी है। ‘दरिया दरिया, साहिल साहिल में अबरोल कहते हैं, ‘दरिया दरिया, साहिल साहिल रात चली है/जलते बुझते सपनों की बारात चली है/घूंघट घूंघट तीर-ए-नर की घात चली है। इसी तरह ‘छोटी छोटी बातें में अबरोल कहते हैं, ‘मेरे और तेरे जज़्बात/छोटी छोटी बातों पर ही लड़ पड़ते हैं, चिल्लाते हैं/मेरा सिगरेट या मय पीना/तेरे मैके से इक लंबे ख़त का आना/या ऐसे कुछ और बहाने ढंूढ ढूंढ कर थक जाते हैं/चोट तुझे भी पहुंचाते हैं/दर्द मुझे भी दे जाते हैं/यह सब बातें/कहने को छोटी हैं लेकिन/राई को परबत बनने में/आखिर कितनी देर लगेगी…? सन् 1975 के आपातकाल पर लिखी गई नज़्म ‘अंधा ख़ुदा में अबरोल कहते हैं, ‘हन जब अपनी रौशनी लेकर/दिल से उलझा तो जान खो बैठा/दिल ने जब अपने आप को तोला/अपने तीर-ओ-कमान खो बैठा/स्त और मर्ग एक बिस्तर पर/जब भी लेटे खला का जन्म हुआ/रौशनी तीरगी से जब लिपटी/एक खुदसर अना का जन्म हुआ/एक अंधे खुदा का जन्म हुआ। इसी तरह अन्य नज़्में भी पाठकों को आह्लादित करती हैं। आशा है यह संग्रह पाठकों को पसंद आएगा।\

-फीचर डेस्क


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