संवेदना के घोंसले में ‘एकान्त में शब्द

By: Dec 19th, 2021 12:04 am

अर्थ खोजते मजमून, मजबूरियां और मुकाम। सृजन प्रक्रिया में कवि खुद में साक्ष्य खोजता हुआ, लेखन की सार्थकता को परवान चढ़ाता है, ‘बुद्ध आएं, न आएं, सब्जीवाला रामू जानता है – इसी जन्म में, आज के दिन, अभी/बेच देने हैं आलू टमाटर गोभी। संध्या से पूर्व, कर देनी है रेहड़ी खाली।अपनी अनुभूतियों के कंकाल से वह पंजाब के बुरे सपने हटाते हुए उस हकीकत का शृंगार करते हैं जहां, ‘शांत हुए/कस्बे, शहर, गांव/औ जी उठा पंजाब, गुरुओं के नाम पर/पीरों की कर इबादत। डा. हरमहेंद्र सिंह बेदी की ताजा पुस्तक ‘एकान्त में शब्द दरअसल मन के कपाट खोलने की प्रक्रिया है, जहां कवि अपनी स्मृतियों, ख्वाबों, कल्पनाओं के घोड़ों पर दौड़ता हुआ निकल जाता है, उसे तब कहीं जाकर कविता अपने अस्तित्व का बोध कराती है। उत्तर-रोमांस में तू क्या जाने/मन इच्छा कब बनी मृगतृष्णा।

बादल-बादल/जल सूखा/गीला-गीला/हर पत्ता, तू क्या जाने या बेताल रागिनी में ‘बस यूं ही चला गया था/अपनी बात कहने। ना कहने पर/लौटा भी नहीं। बात चलती रही/दूरी बरकरार रही, न छोर, न कुछ और। दोनों हाथ खाली सब कुछ एक जैसा ही था, चलने से पूर्व में कवि अपने अंतद्र्वंद्वों की सतह पर चहलकदमी करता है। संग्रह की कुल 44 कविताओं में डा. हरमहेंद्र सिंह बेदी पाठक के साथ कई भंवर तोड़ते, संघर्ष करते, ढाढस बंधाते और परिवेश को निखारते हैं, लेकिन समसामयिक विषयों में राष्ट्र, नागरिक से लोकतंत्र तक की सीमा में असीमित अभिव्यक्ति के साथ प्रश्न उकेरते हैं। पत्थरों से मिलो, उन दिनों, ऐसा भी हुआ है, अंतर्यात्रा की भूमिका, एकान्त में शब्द, लोकतंत्र की माया व शब्द जादू जैसी कुछ कविताएं अपने भाव, विमर्श और सृजन शैली की विविधता में खुद को विशिष्टता के साथ पेश करती हैं। कवि अपने आंचल पर आंच लिए, भाव में भनक लिए और शब्दों में शुभ्रता लिए अपने आसपास, देश और विश्व के कपाट खोल देता है। कविता उसकी संवेदना का घोंसला बनकर सुरक्षित चेतना सरीखी और धरती के आलोक में पहरेदार की भांति चारों ओर देख रही है। इसीलिए ‘ऐसा भी हुआ है में कवि बाखूबी कहता है, ‘ऐसा भी नहीं, कि हारने पर थका भी नहीं था। यह सब कुछ/कई कई बार हुआ। कविताओं के नीचे कुछ भी दबा नहीं। ऐसा भी सब कुछ हुआ/कई कई बार। मैंने भी शब्दों के अर्थ बदले/बादलों ने नए मार्ग अपनाए/मन-चाही खेती को सींचा। अनचाही मुंडेरों को तोड़ा-ऐसा भी हुआ कई बार।

-निर्मल असो

कविता संग्रह : एकान्त में शब्द
लेखक : डा. हरमहेंद्र सिंह बेदी
प्रकाशक : आस्था प्रकाशन, जालंधर
मूल्य : 260 रुपए


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