अंतिम दौर की निगरानी

By: Jan 18th, 2022 12:05 am

सत्ता के अंतिम वर्ष में एक काल का सूर्यास्त, अगली आशा के सूर्योदय से लाभान्वित होने का संघर्ष भी है। हिमाचल सरकार और सत्तारूढ़ भाजपा इस गणित में आगे निकलने की कोशिश करती हुई प्रतीत हो रही है। भले ही कोविड के नए दौर ने भाजपा से कुछ इवेंट्स और सरकार से कुछ मंच छीन लिए हैं, लेकिन यह आपदा से सिंचित ऐसा अवसर है जहां सुशासन की बात बढ़-चढ़ कर होगी। पहले ही हिमाचल में वैक्सीनेशन के लक्ष्यों ने सरकार को तगमा पहनाया है, तो इस बार परीक्षा आर्थिकी को मिलने वाले संबल की होगी। परिवहन क्षेत्र इस दृष्टि से तृप्त है, लेकिन पर्यटन, उद्योग और व्यापार के लिए सरकार को खराब पानी के बीच मांझी बनना पड़ेगा। सरकार के लिए खुद को ऐसे धरातल पर खड़ा होने की चुनौती है, जहां से जनता के लिए संदेश स्पष्ट और तात्पर्य प्रमाणित हो। इस लिहाज से निजी निवेश के प्रति हिमाचल सरकार की हर उपलब्धि का विवरण जुड़ेगा। 28 हजार करोड़ के निवेश का दावा करती सरकार अगर यथार्थ में इसके करीब है, तो यह कारवां उसके पक्ष में जाएगा, लेकिन ऐसे निवेश से पूरे प्रदेश की तस्वीर किस तरह बनती और संतुलित होती है, इसकी समीक्षा होगी।

 नए निवेश के जरिए निजी क्षेत्र किस तरह और किस सीमा तक हिमाचल के पर्यटन, आवासीय सुविधाओं, मनोरंजन, चिकित्सा-शिक्षा, आयुर्वेद के अलावा, वैकल्पिक ऊर्जा, औद्योगिक एवं विद्युत उत्पादन में अपनी उपस्थिति दर्ज करता है, यह अंतिम वर्ष का मेहनताना होगा। सरकार के हर मंत्री के हिसाब से पिछले चार वर्षों में घोषणाएं, शिलान्यास और योजनाएं एवं कार्यक्रम तो खूब गूंजे, लेकिन अब धरातल पर खड़े होकर बताना होगा कि विकास, प्रगति और समाधान के मोर्चे पर हकीकत में हुआ क्या। हर मंत्री को अपनी सरकार की पैरवी में ऐसे चमत्कार दिखाने होंगे जो पूरे प्रदेश के लिए एक समान हों, वरना अंतिम वर्ष बता देगा कि सत्ता की अधिकतम खाद से किन नेताओं ने केवल अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों का ही भला किया या कौनसे जिला इस दौड़ में पिछड़ गए। बेशक प्रगतिशील आईने में कुछ मंत्री चमक रहे हैं, लेकिन इनके लाभों का वितरण कुछ सीमित क्षेत्रों में ही हुआ है। अंतिम वर्ष का सबसे बड़ा पैगाम प्रशासनिक दृष्टि से अहम हो जाता है और इस तरह अब हर स्थानांतरण पोस्टर की तरह है। लोहड़ी समारोह के दौरान तीस एचएएस और तीन आईएएस अधिकारियों के स्थानांतरण आदेशों की खिचड़ी में नमक हलाली की खुशबू परखी गई है। सरकार के अभिप्राय में प्रशासनिक दक्षता का नया जोश कितनी फाइलों की दुरुस्ती कर पाता है या फटाफट क्रिकेट के मूड में सुशासन अपने तौर पर कितने चौके-छक्के मारने की फिराक में रहेगा, यह जनता देखेगी और समझेगी भी।

सरकार ने नए नगर निगमों को कुछ नए अधिकारी दिए हैं, तो अधिकांश अफसरों को मनमाफिक पद या स्थानों पर बने रहने का अधिकार पत्र सौंपा है। कई बार तो ऐसा लगता है कि कुछ अधिकारी आंगन से कमरे में स्थानांतरण करवा रहे हैं, तो कभी यह प्रतीत होता है कि स्थानांतरणों से सुशासन का मूल्यांकन नहीं हो रहा। बहरहाल अंतिम वर्ष के स्थानांतरणों में सरकार अपनी कारगुजारियों की स्लेट साफ करने की मंशा रखती है और इस हिसाब से जिला स्तरीय अधिकारियों के लिए आगे का समय, उनके वजूद की भी पड़ताल करेगा। लंबित कार्यों, उद्देश्यों और सरकार के संकल्पों को सरकारी मशीनरी किस तरह नक्शे पर उतार पाती है, इसकी पड़ताल विपक्ष जरूर करेगा। जाहिर है अंतिम वर्ष की समीक्षा कई स्तर पर होगी और अगर इस निगरानी में सरकार को सफल होना है, तो कई संदर्भ बदलने पड़ेंगे और ईमानदारी से अपने सारे कर्त्तव्यों, फर्ज, सुधार, इच्छा शक्ति और मंसूबे जमीन पर उतारने पड़ेंगे।


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