नीति से खेल नक्शे तक

By: Jan 17th, 2022 12:05 am

दो दशक बाद हिमाचल की खेल नीति ने अंततः पदार्पण करते हुए सबसे बड़ा आश्वासन दिया है कि अब खेल संगठनों का संचालन केवल मंझे हुए खिलाड़ी ही करेंगे। खेलों में प्रतिस्पर्धा, काबिलीयत, दक्षता, प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर देती खेल नीति का दायरा बढ़ा हुआ प्रतीत होता है, लेकिन इसे मुकम्मल करते लक्ष्य तय करने अभी बाकी हैं। ओलंपिक स्तर की खेलों के मेडल विजेताओं का सम्मान और वित्तीय लाभों का खुलासा, हर छोटे-बड़े पदक के खिलाडि़यों की निजी जिंदगी को बेहतरीन बना रहा है। जाहिर तौर पर खेल नीति कुछ आगे देख रही है, लेकिन खेल राज्य की तर्ज पर अगर हमें पंजाब, हरियाणा, मणिपुर या महाराष्ट्र जैसे राज्यों की पांत में खड़ा होना है, तो इसी के साथ राज्य स्तरीय खेल मानचित्र का निर्धारण भी करना होगा। ग्रामीण से स्कूली खेलों के स्तर को आगे बढ़ाते हुए यह देखना पड़ेगा कि समूचा प्रदेश किस तरह बच्चों को खेल आचरण में पोषित करता है। हरियाणा पहले ही ‘स्पोर्ट्स एंड सोशल फिटनेस पालिसी’ के तहत पूरे परिदृश्य को बदल रहा है, तो इस तर्ज पर हिमाचल की इच्छाशक्ति आगामी बजट में देखी जाएगी।

 प्रदेश का अधिकांश खेल ढांचा केंद्रीय अनुदान या वित्तीय प्रावधानों से पोषित रहा है, जबकि बजटीय प्राथमिकताओं में अगले कुछ सालों के लक्ष्य निर्धारित होने चाहिएं। इस पैरामीटर में आगे बढ़ना है, तो हिमाचल प्रदेश को अगले कुछ सालों में राष्ट्रीय खेलों का आयोजन कराने का इंतजाम करना होगा। उदाहरण के लिए उत्तराखंड ने 38वें राष्ट्रीय खेलों के आयोजन के लिए खुद को हाजिर किया है। हालांकि कोविड के चलते आयोजन का समय आगे सरक रहा है, लेकिन कुल 682 करोड़ की परियोजना का प्रस्ताव केंद्र के पास भेजा जा चुका है। राज्य ने अपने स्तर पर 110 करोड़ का प्रावधान करते हुए एक खेल नक्शा बनाना शुरू किया है जिसके तहत 27 खेलों का आयोजन पूरे राज्य में होना है। इनमें से आधे से ज्यादा खेल आयोजन इंडोर होंगे। उत्तराखंड के खेल ढांचे में राष्ट्रीय खेलों का आयोजन न केवल खेल गांव, क्रीड़ा हाल व अन्य सुविधाएं जुटा रहा है, बल्कि हरिद्वार में 37 करोड़ की लागत से खेल स्टेडियम बनाने की प्रगति में है।

 देहरादून व हल्द्वानी में खेल गांव, हरिद्वार में स्टेडियम तथा गुल्लरभोज, ऋषिकेश, नैनीताल व रुद्रपुर जैसे स्थानों पर इंडोर स्टेडियम तथा अन्य खेल अधोसंरचना का विकास हो रहा है। हिमाचल में भी राष्ट्रीय खेल ढांचा विकसित होता है, तो एक साथ आधा दर्जन शहरों में खेल अधोसंरचना सुदृढ़ होगी, जबकि पौंग, कोल तथा भाखड़ा जैसे जलाशय जल क्रीड़ाओं के नए डेस्टिनेशन बन जाएंगे। धर्मशाला के पुलिस स्टेडियम के साथ हमीरपुर, ऊना, बिलासपुर, संुदरनगर, पालमपुर व चंबा इत्यादि स्थानों को जोड़ते हुए राष्ट्रीय खेलों का महाकुंभ पूरा परिदृश्य बदल सकता है, लेकिन इसके लिए केवल एक सरकार के प्रयत्न काफी नहीं होंगे, बल्कि निरंतरता के साथ सोचना होगा। जिस तरह धूमल सरकार ने कारपोरेट की मदद से सिंथैटिक ट्रैक बिछा दिए थे, उसी तरह बीबीएन के सहयोग से सोलन जिला में एक बड़ा खेल ढांचा विकसित हो सकता है, जबकि सहकारी बैंकों की मदद से ग्रामीण तथा पूरे बैंकिंग क्षेत्र के सहयोग से विभिन्न खेलों के उत्थान में वित्तीय आपूर्ति संभव है। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में खेल परिषद का गठन आगे चलकर खेल प्राधिकरण तथा खेल विश्वविद्यालय के उदय को संभव बनाता है, तो यह खेल राज्य बनने के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षण में मददगार होगा। प्रदेश की खेल नीति की सबसे बड़ी शपथ खेल मैदानों की जीवंतता में दर्ज होगी। पूरे राज्य में ऐसे गांव, शहरों या स्कूलों की कमी नहीं, जहां बच्चे सुकून से खेल नहीं सकते। दूसरी ओर पारंपरिक मैदानों के सिकुड़ते वजूद को न बचाया तो चंबा-नाहन के चौगान, मंडी-सुजानपुर के मैदान, धर्मशाला का पुलिस और ढालपुर के मैदान नहीं बचेंगे। अतः ग्रामीण व शहरी विकास मंत्रालयों को भी खेल लक्ष्यों से जोड़ते हुए हर गांव में कम से कम एक और हर शहर की चारों दिशाओं में चार मैदान विकसित किए जा सकते हैं।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App