पूर्ण राज्यत्व की दिलेरी
पूर्ण राज्यत्व दिवस की लोरी में सुकून की नींद तो ली जा सकती है और घोषणाओं की उदारता में वर्तमान सरकार के रंग भी देखे जा सकते हैं। पल भर के लिए भूल जाएं कि ये घोषणाएं कितनी महंगी और खर्च से भरी हुई हैं, लेकिन एक बड़े वर्ग की अरदास में सरकार की ओर से जो हो सकता है, उससे कहीं बढ़कर मुख्यमंत्री उदार दिखे। यह पूर्ण राज्यत्व की दिलेरी है कि पिछले कई दिनों से खिन्न चल रहा कर्मचारी वर्ग अब गर्व से कह सकता है कि उसने समारोह में अपना रंग जमा दिया है। डीए की दर को लेकर जो लुकाछिपी थी, उससे बाहर निकल कर अब 31 प्रतिशत तक का इजाफा, सरकार का मैत्रीपूर्ण सौहार्द ही तो है। सरकार को पुलिस जवानों का साधुवाद भी मिल रहा है, क्योंकि इस वर्ग के जज्बात आहत थे और परिस्थितियां मसले को नाजुक मोड़ तक धकेल चुकी थीं। कांस्टेबल भर्ती की विसंगतियों में आठ साल तक का इंतजार अब खत्म हुआ और अंततः यह वर्ग भी नियुक्ति की शर्तों में अब दो साल की परिधि में ही खुद को नियमित करवा पाएगा। पुलिस पे बैंड पर सरकार का निर्णायक रुख आगे कहां तक जाता है, क्योंकि अभी भी कर्मचारियों के बीच तरह-तरह की विसंगतियों के दाग पूरी तरह धुले नहीं हैं। सरकार अपने दिल पर हाथ रखकर कर्मचारियों की हितैषी बनी, लेकिन आम जनता को भी यही एहसास दिलाने के लिए ‘मुफ्त’ की पैमाइश में बिजली आपूर्ति जोड़ दी गई है। यानी अब प्रति माह साठ यूनिट बिजली खर्च करने वाले घर ‘मुफ्त’ में ही जगमगाएंगे, जबकि 125 यूनिट तक भी दर घटकर एक रुपए प्रति यूनिट हो जाएगी। इतना ही नहीं, किसानी में भी प्रति यूनिट बिजली वर्तमान पचास पैसे की दर को तीस पैसे के निम्न स्तर पर लाकर सरकार ने खजाने और राजनीति के मुहाने खोल दिए हैं। चुनावी वर्ष में पूर्ण राज्यत्व की दिलेरी आगे चलकर कितने लोगों को मोहित करती है, यह अगले छह माह का सफर बताएगा।
आने वाला बजट इस तासीर को तसदीक करेगा कि प्रदेश की राजनीतिक आबोहवा में कौन-कौन वर्ग पल्लवित हो सकता है। बहरहाल हिमाचल के पूर्ण राज्यत्व ने राजनीति की संस्कृति को आज जिस मोड़ पर पहुंचा दिया है, वहां जवाबदेही के बिना भी मेहनताना इसलिए चमक रहा है, क्योंकि चुनावी सौदेबाजी में मुफ्त का घी उपलब्ध है। राजस्व और बजटीय घाटे के भारी भरकम आंकड़े अगर नजरअंदाज हो सकते हैं, तो नागरिक समाज भी मुफ्त का चंदन बार-बार घिसना पसंद करेगा। आज अगर बिजली की आपूर्ति में भी मुफ्त की आदत दौड़ने लगी, तो कल चुनावी वादों की फेहरिस्त में बजट की नीलामी में हर पार्टी मतदाताओं के लिए उदारता के महाकुंभ आयोजित करेगी। राजनीतिक फायदे का विस्तार आम जनता के सरोकार को कितना खरीद पाएगा, इस परिदृश्य में केजरीवाल सरीखे नेताओं का आविष्कार हमारे सामने है। पड़ोस पंजाब में जिस तरह कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में मतदाताओं को बटोरने के लिए शीर्षासन हो रहा है, उसे देखते हुए हिमाचल के राजनीतिक उद्गार जरूर बदलेंगे। खैर पूर्ण राज्यत्व दिवस के संदेश में मिठास घोलते मुख्यमंत्री के इरादों पर कर्मचारी व पेंशनर अपने-अपने लाभ पर इतरा सकते हैं, लेकिन यह सारी कसरतें केवल सरकारी कार्य संस्कृति के इर्द-गिर्द ही हो रही हैं। प्रदेश के ढाई लाख कर्मचारी व डेढ़ लाख पेंशनरों के लिए कालीन बिछा कर स्वागत करने का विशेषाधिकार सरकार के पास है, लेकिन करीब पच्चीस लाख गैर सरकारी कर्मचारी, स्वरोजगार अर्जित लोग व मेहनत-मजदूरी से आगे बढ़ने वालों के लिए सरकार का ऐसा सौहार्द किस तरह स्पष्ट होगा, यह भी एक मूल प्रश्न रहेगा। इसी के साथ हिमाचल के स्वावलंबन का प्रश्न कब तक गौण होकर कर्मचारी संसार की वकालत में ऊर्जा लगाता रहेगा, इस पर भी तो विचार करना होगा।