जांच डाटा के अर्द्धसत्य

By: Jan 15th, 2022 12:05 am

कोरोना वायरस की तीसरी लहर ने उसकी दूसरी लहर की तरह तबाही नहीं मचाई है। हालांकि कोरोना संक्रमण फैलता ही जा रहा है। औसत राष्ट्रीय संक्रमण दर 12.1 फीसदी तक पहुंच चुकी है, कि कुछ जबबड़े शहरों में यह 25 फीसदी को पार कर रही है। इसी दौरान 35 डॉक्टरों ने सरकार को पत्र लिख कर आगाह किया है कि कुछ अवैध, अवांछित और गलत चिकित्सीय गतिविधियां सामने आई हैं। कई डॉक्टर मरीजों को इलाज का जो परचा लिख कर दे रहे हैं, उनमें गलत औषधि, गैर-जरूरी अस्पतालीकरण और अपर्याप्त टेस्टिंग के मामले सामने आए हैं। डॉक्टरों के कुछ परचों में कोरोना किट्स और कॉकटेल के उल्लेख हैं। ये सरकार द्वारा निर्धारित कोरोना इलाज के मानक नहीं हैं। 2021 की गलतियां अब 2022 में भी दोहराई जा रही हैं। कोरोना के इलाज में ये परचे घातक साबित हो सकते हैं। पूरे देश के सामने बिल्कुल स्पष्ट है कि अभी अस्पताल की जरूरत 5-7 फीसदी मामलों में ही पड़ रही है, क्योंकि कोरोना के अलावा मरीज गुर्दे, दिल और लीवर की पुरानी बीमारियों से ग्रस्त हैं। ज्यादातर ऐसे ही नाजुक मरीजों की मौतें देखी जा रही हैं।

 बहरहाल कोरोना के देश भर में मामले 2.64 लाख को पार कर चुके हैं और राजधानी दिल्ली में 28,867 केस दर्ज किए जा चुके हैं। कोरोना महामारी के दौरान राजधानी के ये आंकड़े अभी तक सर्वाधिक हैं और दूसरी लहर के ‘चरम’ को भी लांघ चुके हैं। क्या अब दिल्ली में कोरोना संक्रमण ढलने लगेगा? विशेषज्ञ अभी निश्चित नहीं हैं, क्योंकि जांच का डाटा अर्द्धसत्य-सा है। कोरोना का इतना घनत्व और विस्तार होने के बावजूद टेस्टिंग बहुत कम की जा रही है। अधिकतर जांच दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरू, चेन्नई सरीखे मेट्रो शहरों में ही की जा रही है, नतीजतन संक्रमित मामले अनुमान और आकलन से कम हैं। गांवों में कोरोना की स्थिति को लेकर नगण्य डाटा सामने आ रहा है। चूंकि इस बार दूसरी लहर की तरह संक्रमण भयावह नहीं है, लिहाजा गांवों की सच्चाई भी छिपी है। अभी तक ऐसे दृश्य दिखाई नहीं दिए हैं कि लाशेें नदी में तैर रही हैं या गांवों में लोग इलाज के लिए तड़प रहे हैं। संक्रमण के आंकड़े इसलिए अर्द्धसत्य हैं, क्योंकि उनकी सही गिनती स्पष्ट नहीं है। सरकारें आंकड़े छिपा रही हैं और कमतर करके देश के सामने सार्वजनिक कर रही हैं।

 हम सुनिश्चित नहीं कर सकते, लेकिन ऐसी रपटें आती रही हैं कि संक्रमित मामले कई गुना ज्यादा हैं। काश! ऐसा न हो। डाटा को आधा-अधूरा देश को बताने से लाभ क्या होगा? महामारी का जो यथार्थ है, उसे देश के सामने रखा जाए, ताकि उसके मुताबिक, इलाज मुहैया कराया जा सके। जिन 35 डॉक्टरों ने सरकार को पत्र लिखा है, उस पर भी दोबारा जांच की जानी चाहिए। अलबत्ता कोरोना के दौर में इलाज की ये पर्चियां घातक साबित हो सकती हैं और हमारी चिकित्सा व्यवस्था में अराजकता भी फैला सकती हैं। यदि दूसरी लहर की तरह अब भी बीमार लोग अस्पताल की ओर भागने लगे, तो उस स्थिति को नियंत्रित करना बेहद मुश्किल होगा। बेशक हमारे चिकित्सा-ढांचे को मजबूत किया गया है, अस्पतालों में आज भी अधिकांश बिस्तर खाली पड़े हैं और ऑक्सीजन के लिए हांफता हुआ मरीज एक अपवाद ही हो सकता है। आज ऑक्सीजन के प्लांट 13,000 मीट्रिक टन रोज़ाना से ज्यादा की प्राण-वायु का उत्पादन कर रहे हैं। विशेषज्ञों के उन बयानों और आकलनों पर भी गौर करते रहना चाहिए कि जनवरी-फरवरी के दौरान संक्रमित मामले 8-9 लाख रोज़ाना तक आ सकते हैं, लिहाजा टेस्टिंग उसी के अनुरूप और व्यापक की जानी चाहिए। हालांकि रोज़ाना की औसत टेस्टिंग 11 लाख से बढ़ाकर 20 लाख की गई है, लेकिन यह भी अपर्याप्त है। लोग घर पर ही टेस्ट कर रहे हैं, लेकिन सरकार को जानकारी नहीं देते, लिहाजा ऐसे संक्रमित मामले देश की गिनती में नहीं आते, लेकिन वे लोग संक्रमित होकर इसका विस्तार कर सकते हैं।

 


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