भारत की आत्मा उसकी संस्कृति में है

By: Jan 25th, 2022 12:06 am

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा दिल्ली के दिल में लगी, यही तो है भारत की आत्मा का जागरण…

भारत क्या है, जब यह सवाल खड़ा होता है तो सहज में ही हिमालय पर्वत से लेकर हिंद महासागर तक फैले हुए भू-भाग पर दृष्टि जाती है। जब हिमालय से समुद्र पर्यन्त नज़र दौड़ाते हैं तो ध्यान में आता है कि हिंदुकुश पर्वत जहां कभी भारत का ध्वज होता था, अब भारत में नहीं है, सिंधु घाटी जिसके नाम पर हम सब हिंदु हो गए, भारत से कट चुका है। इसी हिमालय के सुदूर पूर्व में बर्मा (रंगून) अब भारत का हिस्सा नहीं है, गंगा सागर के मध्य ढाका का क्षेत्र आज बांग्लादेश हो गया और दक्षिण में हिंद महासागर का मस्तक श्रीलंका भी भारत में नहीं रहा। कोई 200 वर्ष पूर्व, कोई 100 वर्ष पूर्व व तत्पश्चात भारत के अंग-भंग होते चले गए, फिर भी हम भारत रहे। हिंदुकुश पर्वत यानी उपगण स्थान (अफगानिस्तान) से रंगून तक, गान्धार (तक्षशिला) से लेकर मणिपुर तक भारत की सीमाएं रहीं। आज जिसे हम आजाद भारत का नाम देते हैं, वह श्रीनगर से कन्याकुमारी व द्वारिका से मणिपुर तक दिखाई देता है, परंतु फिर भी भारत है, अर्थात भारत भू-खंड का आकार हज़ारों सालों में अनेक बार बढ़ा-घटा, परंतु यह भारत रहा और इस देश की संतानें इस भारत को माता के रूप में पूजती आई। लाखों-लाखों बलिदानी हज़ारों सालों में इस भारत माता पर कुर्बान हो गए तो चिंतन करना होगा कि भारत केवल एक भू-खंड या भूमि का टुकड़ा तो हो नहीं सकता, तो ध्यान में आता है कि यह भारत निर्जीव वस्तु नहीं है।

 इस भारत की एक आत्मा है और वह आत्मा है भारत की संस्कृति जो अनादि काल से चली आ रही है और जब तक भारत की आत्मा यानी संस्कृति जीवित है, भारत मर नहीं सकता। संस्कृति का अर्थ नाच-गाना, खाना-पीना मात्र नहीं है, तो यह संस्कृति क्या है ः 1. भारत की संस्कृति अर्थात वेदों की संस्कृति, 2. भारत की संस्कृति अर्थात पुराणों की संस्कृति, 3. भारत की संस्कृति अर्थात यज्ञ की संस्कृति, 4. भारत की संस्कृति अर्थात राम की संस्कृति, 5. भारत की संस्कृति अर्थात रामायण की संस्कृति, 6. भारत की संस्कृति अर्थात कृष्ण की संस्कृति, 7. भारत की संस्कृति अर्थात गीता की संस्कृति। इसी भारत की संस्कृति की समय-समय पर संतों ने, मुनीषियों ने, ऋषियों ने अपने-अपने शब्दों में व्याख्या की। भारत के आध्यात्मिक ज्ञान ने विश्वभर को आलोकित किया है। इसी संस्कृति में से भगवान बुद्ध के विचारों का अवतरण हुआ। इसी में से भगवान महावीर के विचारों का अवतरण हुआ। स्वामी शंकराचार्य जी, स्वामी रामानुजाचार्य जी, गुरू नानक देव जी, महर्षि वाल्मीकि जी सरीखे भगवत पुरुषों ने इसकी बेहतरीन व्याख्या की है। इस संस्कृति/इस विचार/इस चिंतन व इस भारत की आत्मा की रक्षा के लिए हज़ारों वर्षों से यज्ञ-तपस्या चलती आ रही है। उस यज्ञ में स्वामी दयानंद जी, स्वामी विवेकानंद जी, स्वामी श्रद्धानंद जी, स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी, संत शिरोमणि गुरू रविदास जी, संत तुलसीदास जी, संत सूरदास जी, संत तुकाराम जी जैसे सरीखे हज़ारों संतों ने अपनी आहुति डाली। इस संस्कृति की रक्षा के लिए लाखों बलिदानियों ने अपना बलिदान दिया।

 शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप, रानी झांसी, दसवीं पातशाही गुरू गोविंद सिंह जी महाराज, छत्रसाल रानी गाईडिल्यु, भगवान बिरसा मुण्डा, श्री कृष्ण देव राम जैसे सरीखे हज़ारों वीरों ने इसकी रक्षा की और अपना सर्वस्व होम कर दिया। एक कालखंड में लाला लाजपत राय, विपिन चंद्र पाल, बाल गंगाधर तिलक की टीम ने और तत्पश्चात मोहनदास कर्मचंद गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल, नेता जी सुभाष चंद्र बोस, डा. केशव बलिराम हेडगेवार, स्वतंत्र वीर सावरकर, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरू, वासुदेव, बलवंत जैसे सरीखे हज़ारों बलिदानियों ने इस देश व संस्कृति की रक्षा की अर्थात भारत की आत्मा की रक्षा की, भारत माता को अपना लहू देकर उसका अभिषेचन किया। आज वक्त आ गया है भारत की इस आत्मा को सम्मानजनक स्थान पर पहुंचाने का, भारत की सांस्कृतिक विरासत को विश्व में सम्मानित करने का और उसके लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान चल पड़ा है। वेदों में कहा गया है कि विश्व एक परिवार है और मोदी जी ने कहा है ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास’ और विश्व पटल पर भारत के संदेश को मजबूती से रखा है। शास्त्रों में कहा है ‘शक्ति ही आधार शांति का’। मेरा देश शक्ति सम्पन्न राष्ट्रों की श्रेणी में शामिल हो गया और स्पष्ट कहा कि शक्ति केवल शांति एवं विकास के लिए ही अर्जित की जा रही है। राष्ट्रीय मूल्यों की स्थापना का कार्य चल रहा है। जिसमें चाहे आदि शंकराचार्य जी द्वारा बनाए गए चारों धामों का विकास हो व उनके प्रति आस्था में विस्तार हो, गऊ माता, गंगा माता, गीता माता, गायत्री माता, अन्य सभी के प्रति आस्था एवं सभी का विकास हो, आज देश इस दिशा की ओर चल रहा है। भगवान श्री राम के जन्म स्थान पर 400 साल पुराने कलंक को धोकर भव्य राम मंदिर का निर्माण भारत की आत्मा का महान जागरण अभियान है। काशी विश्वनाथ की सौंदर्य छटा, आलोकिकता, दिव्यता व त्रिवेणी के महत्व को विश्व ने अपनी आंखों से देखा है।

 नागा राणी गाईडिल्यू, भगवान बिरसा मुण्डा, डा. भीम राम अम्बेडकर, सरदार वल्लभ भाई पटेल सरीखे महापुरुषों को सम्मानित करना, उनके स्मारक बनाना, उन्हें स्थापित करना, भारत की आत्मा का उत्थान करना ही तो है। श्री गुरू गोविंद सिंह जी महाराज से बड़ा बलिदानी विश्वभर में पैदा नहीं हुआ जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपने पिता गुरू तेगबहादुर जी को प्रेरित किया और जिन्होंने दिल्ली में धर्म रक्षार्थ अपना शीष कटवाया, अपना बलिदान दिया, अपने चारों पुत्रों का बलिदान देने वाले ऐसे महान बलिदानी गुरू साहेबान के सम्मान में और उनके पुत्रों के बलिदान को सम्मान देते हुए प्रतिवर्ष 26 दिसंबर को राष्ट्रीय बाल दिवस मनाने की घोषणा आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा की गई है। जोरावर सिंह व फतेह सिंह दोनों साहिबजादों को धर्मपरिवर्तन न करने की सजा दी गई, उन्हें जिंदा दीवारों में दफन कर दिया गया, उन्होंने जुल्म की इंतहा सहन की, लेकिन उफ तक नहीं की। उन वीर बालकों को राष्ट्रीय सम्मान दिया गया, यह भारत की आत्मा का पुनर्जागरण है। ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’, ये शब्द आज भी रौंगटे खड़े कर देते हैं, हज़ारों की सेना तैयार करके अंग्रेजों पर हमला कर देने वाले भारत के शेर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा दिल्ली के दिल में लगी, यही तो है भारत की आत्मा का जागरण। जिस दिन भारत की आत्मा पूरी तरह जाग जाएगी, हम अपने धर्म, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा, अपने ज्ञान पर भरोसा करने लगेंगे और भारत में स्वार्थ के आधार पर लिखा गया भारत विरोधी इतिहास सही कर दिया जाएगा, उस दिन भारत विश्व पर राज करेगा।

डा. राजीव बिंदल

विधायक, नाहन


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