जरा याद करो कुर्बानी

By: Jan 25th, 2022 12:05 am

‘यह दुर्भाग्य रहा कि आज़ादी के बाद देश की संस्कृति और संस्कारों के साथ ही अनेक महान व्यक्तियों के योगदान को मिटाने का काम किया गया। स्वाधीनता संग्राम में लाखों लाख देशवासियों की तपस्या शामिल थी, लेकिन उनके इतिहास को भी सीमित करने की कोशिशें की गईं। आज आज़ादी के दशकों बाद देश उन गलतियों को डंके की चोट पर सुधार रहा है।’ प्रधानमंत्री मोदी का यह कथन नेताजी सुभाष चंद्र बोस के ही संदर्भ में नहीं, बल्कि असंख्य गुमनाम क्रांतिकारियों के लिए भी बेहद सटीक और आत्म-स्वीकृति वाला है। स्वतंत्रता के रणबांकुरों को देश के आम आदमी ने नहीं, सरकारों और सियासत की वंशावलियों ने भुलाया है। उन्हीं की सोच और प्राथमिकताओं में सुधार करने की जरूरत है। मौका ‘नेताजी’ की 125वीं जयंती, प्रतीकात्मक प्रतिमा, गणतंत्र दिवस के कालखंड और आज़ादी के ‘अमृत महोत्सव’ का था, लिहाजा आज़ादी के लड़ाकों को याद किया गया।

 सुखद और सकारात्मक लगा कि दिल्ली में ‘इंडिया गेट’ पर ‘अमर जवान ज्योति’ के स्थान पर प्रधानमंत्री ने ‘नेताजी’ की होलोग्राम प्रतिमा का अनावरण किया और देश के अपने-अपने क्षेत्रों में ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, स्टालिन, बसवराज बोम्मई और योगी आदित्यनाथ सरीखे मुख्यमंत्रियों ने भी ‘नेताजी’ को भावुक श्रद्धांजलि दी। हमारा मानना है कि ‘नेताजी’ देश के सर्वोच्च योद्धाओं में एक थे और उनकी प्रतिमा सही स्थान पर स्थापित की जा रही है। ‘नेताजी’ ने गुलाम भारत में ही ‘आज़ाद हिंद फौज’ का गठन किया था और विदेशी ज़मीन पर प्रथम भारत सरकार के तौर पर शपथ ली थी। भारत की स्वतंत्रता के इतिहास में सुभाष चंद्र बोस, सावरकर समेत असंख्य क्रांतिवीर ऐसे होंगे, जिन्हें उचित स्थान नहीं दिया गया, उचित पहचान और सम्मान नहीं दिए गए। ‘नेताजी’ का आह्वान-‘तुम मुझेे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा’-आज भी भारतवासियों का खून खौला देता है। ‘नेताजी’ कहा करते थे-‘मैं आज़ादी भीख में नहीं लूंगा, बल्कि आज़ादी हासिल करूंगा।’ ऐसे देशभक्त योद्धा को आज़ादी के बाद वामपंथी इतिहासकारों ने सिर्फ जापान और जर्मनी के साथ जोड़ कर देखा। उनकी असल पहचान और आज़ादी के लिए प्रयासों की अनदेखी की गई। उसके संकेत तभी मिलने लगे थे, जब सुभाष चंद्र बोस अपने दम पर कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए थे, लेकिन महात्मा गांधी ने उन्हें इस्तीफा देने को बाध्य किया था, क्योंकि वह जवाहर लाल नेहरू के लिए चुनौती बन सकते थे। ऐसी ही चुनौती सरदार पटेल समझे गए थे। बहरहाल नेहरू के सत्ता-काल, 1947-64, के दौरान ‘नेताजी’ की बहुत उपेक्षा की गई।

 यदि उनकी विमान दुर्घटना की अंतरराष्ट्रीय जांच शिद्दत से कराई जाती, तो यथार्थ सामने आ सकता था। खैर….जैसा नियति ने तय किया था, लेकिन हम अपने राष्ट्रनायकों को हमेशा याद तो रख सकते हैं। बहरहाल प्रधानमंत्री मोदी ने ‘नेताजी’ की देशव्यापी पहचान और नायकत्व को स्थापित करने के लिए कई कोशिशें की हैं। उनके जन्मदिन, 23 जनवरी, को ‘पराक्रम दिवस’ घोषित किया गया है। उससे ‘आपदा प्रबंधन पुरस्कार’ को जोड़ा गया है। बल्कि 2019-21 के दौरान के विजेताओं को ‘इंडिया गेट’ पर ही सम्मानित किया गया है। वहीं ‘नेताजी’ की ग्रेनाइट प्रतिमा स्थापित की जाएगी, तो उनके सम्मान में राष्ट्रीय समारोह भी मनाए जाएंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने ‘नेताजी’ से जुड़ी फाइलों, चिट्ठियों, ऐतिहासिक दस्तावेजों और चित्रों आदि को सार्वजनिक कराया है। उनका डिजिटलीकरण भी किया जा रहा है। यदि उनकी ग्रंथावली भी प्रकाशित कर दी जाए, तो इतिहास जीवंत हो उठेगा और वह साक्ष्य के तौर पर भी मौजूद रहेगा। एक अति महत्त्वपूर्ण कार्य शेष है-‘नेताजी’ को ‘भारत-रत्न’ से विभूषित करना। हालांकि 1992 में तत्कालीन भारत सरकार ने ‘नेताजी’ को यह सर्वोच्च नागरिक सम्मान देना तय किया था, लेकिन विमान-दुर्घटना और उनकी मौत को ऐसा विवादास्पद रूप दिया गया कि सरकार को अपना निर्णय वापस लेना पड़ा। ‘भारत-रत्न’ के संदर्भ में यह अकेला ऐसा केस है। अब की भारत सरकार उसे सुधार सकती है। बल्कि ‘नेताजी’ के साथ सावरकर को भी यह सर्वोच्च सम्मान दिया जाना चाहिए। यह देश की आज़ादी के 75 साल पूरे होने का कालखंड है, लिहाजा एक-एक क्रांतिवीर की कुर्बानी को याद करना चाहिए।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App