लोहड़ी : सर्दी में उल्लास का उत्सव

By: Jan 8th, 2022 12:30 am

लोहड़ी उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध त्योहार है। पंजाब एवं जम्मू-कश्मीर में लोहड़ी नाम से मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है। एक प्रचलित लोककथा के अनुसार मकर संक्रांति के दिन कंस ने कृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल में भेजा था जिसे कृष्ण ने खेल-खेल में ही मार डाला था। उसी घटना की स्मृति में लोहिता का पावन पर्व मनाया जाता है। सिंधी समाज में भी मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व ‘लाल लाही’ के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है…

अलाव जलाने का शुभ कार्य

सूर्य ढलते ही खेतों में बड़े-बड़े अलाव जलाए जाते हैं। घरों के सामने भी इसी प्रकार का दृश्य होता है। लोग ऊंची उठती अग्नि शिखाओं के चारों ओर एकत्रित होकर अलाव की परिक्रमा करते हैं तथा अग्नि को पके हुए चावल, मक्का के दाने तथा अन्य चबाने वाले भोज्य पदार्थ अर्पित करते हैं। ‘आदर आए, दलिदर जाए’-इस प्रकार के गीत व लोकगीत इस पर्व पर गाए जाते हैं। यह एक प्रकार से अग्नि को समर्पित प्रार्थना है जिसमें अग्नि भगवान से प्रचुरता व समृद्धि की कामना की जाती है। परिक्रमा के बाद लोग मित्रों व संबंधियों से मिलते हैं। शुभकामनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है तथा आपस में भेंट बांटी जाती है और प्रसाद वितरण भी होता है। प्रसाद में पांच मुख्य वस्तुएं होती हैं- तिल, गजक, गुड़, मूंगफली तथा मक्का के दाने। शीत ऋतु के विशेष भोज्य पदार्थ अलाव के चारों ओर बैठकर खाए जाते हैं। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण व्यंजन है, मक्के की रोटी और सरसों का हरा साग।

माघी का दिन

माघ मास का आगमन इसी दिन लोहड़ी के ठीक बाद होता है। हिंदू परंपराओं के अनुसार इस शुभ दिन नदी में पवित्र स्नान कर दान दिया जाता है। मिष्ठानों, प्रायः गन्ने के रस की खीर का प्रयोग किया जाता है।

प्रागैतिहासिक गाथाएं

लोहड़ी से संबद्ध परंपराओं एवं रीति-रिवाजों से ज्ञात होता है कि प्रागैतिहासिक गाथाएं भी इससे जुड़ गई हैं। दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है। लोहड़ी को दुल्ला भट्टी की एक कहानी से भी जोड़ा जाता है। दुल्ला भट्टी मुगल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था। उसे पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया था। उस समय संदल बार की जगह पर लड़कियों को गुलामी के लिए बलपूर्वक अमीर लोगों को बेच जाता था जिसे दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत लड़कियों को न केवल मुक्त ही करवाया, बल्कि उनकी शादी भी हिंदू लड़कों से करवाई और उनकी शादी की सभी व्यवस्था भी करवाई। दुल्ला भट्टी एक विद्रोही था जिसकी वंशावली भट्टी राजपूत थे। उसके पूर्वज पिंडी भट्टियों के शासक थे जो कि संदल बार में था। अब संदल बार पाकिस्तान में स्थित है। वह सभी पंजाबियों का नायक था।

मकर संक्रांति और लोहड़ी

हिंदू पंचांग के अनुसार लोहड़ी जनवरी मास में संक्रांति के एक दिन पहले मनाई जाती है। इस समय धरती सूर्य से अपने सुदूर बिंदु से फिर दोबारा सूर्य की ओर मुख करना प्रारंभ कर देती है। यह अवसर वर्ष के सर्वाधिक शीतमय मास जनवरी में होता है। इस प्रकार शीत प्रकोप का यह अंतिम मास होता है। पौष मास समाप्त होता है तथा माघ महीने के शुभारंभ उत्तरायण काल (14 जनवरी से 14 जुलाई) का संकेत देता है। श्रीमद्भगवदगीता के अनुसार श्रीकृष्ण ने अपना विराट व अत्यंत ओजस्वी स्वरूप इसी काल में प्रकट किया था। हिंदू इस अवसर पर गंगा में स्नान कर अपने सभी पाप त्यागते हैं। गंगासागर में इन दिनों स्नानार्थियों की अपार भीड़ उमड़ती है। उत्तरायणकाल की महत्ता का वर्णन हमारे शास्त्रकारों ने अनेक ग्रंथों में किया है।

शीत ऋतु और अलाव

इस दिन शीत ऋतु अपनी चरम सीमा पर होती है। तापमान शून्य से पांच डिग्री सेल्सियस तक होता है तथा घने कोहरे के बीच सब कुछ ठहरा-सा प्रतीत होता है। लेकिन इस शीतग्रस्त सतह के नीचे जोश की लहर महसूस की जा सकती है। विशेषकर हरियाणा, पंजाब व हिमाचल प्रदेश में लोग लोहड़ी की तैयारी बहुत ही खास तरीके से करते हैं। आग के बड़े-बड़े अलाव कठिन परिश्रम के बाद बनते हैं। इन अलावों में जीवन की गर्मजोशी छिपी रहती है। विश्राम व हर्ष की भावना को लोग रोक नहीं पाते हैं। लोहड़ी पौष मास की आखिरी रात को मनाई जाती है। कहते हैं कि हमारे बुजुर्गों ने ठंड से बचने के लिए मंत्र भी पढ़ा था। इस मंत्र में सूर्यदेव से प्रार्थना की गई थी कि वह इस महीने में अपनी किरणों से पृथ्वी को इतना गर्म कर दें कि लोगों को पौष की ठंड से कोई भी नुकसान न पहुंच सके। वे लोग इस मंत्र को पौष माह की आखिरी रात को आग के सामने बैठकर बोलते थे कि सूरज ने उन्हें ठंड से बचा लिया।

पंजाब में धूम

विशेषतः पंजाब के लोगों के लिए लोहड़ी की महत्ता एक पर्व से भी अधिक है। पंजाबी लोग हंसी-मजाक पसंद, तगड़े, ऊर्जावान, जोशीले व स्वाभाविक रूप से हंसमुख होते हैं। उत्सव प्रेम व हल्की छेड़-छाड़ तथा स्वच्छंदता ही लोहड़ी पर्व का प्रतीक है। आधुनिक समय में लोहड़ी का दिन लोगों को अपनी व्यस्तता से बाहर खींच लाता है। लोग एक-दूसरे से मिलकर अपना सुख-दुःख बांटते हैं। भारत के अन्य भागों में लोहड़ी के दिन को पोंगल व मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है।

ये सभी पर्व एक ही संदेश देते हैं, हम सब एक हैं। आपसी भाईचारे की भावना तथा प्रभु को धरती पर सुख, शांति और धन-धान्य की प्रचुरता के लिए धन्यवाद देना, यही भावनाएं इस दिन हर व्यक्ति के मन में होती हैं।

अग्नि का पूजन

जैसे होली जलाते हैं, उसी तरह लोहड़ी की संध्या पर होली की तरह लकडि़यां एकत्रित करके जलाई जाती हैं और तिलों से अग्नि का पूजन किया जाता है। इस त्योहार पर बच्चों के द्वारा घर-घर जाकर लकडि़यां एकत्र करने का ढंग बड़ा ही रोचक है। बच्चों की टोलियां लोहड़ी गाती हैं और घर-घर से लकडि़यां मांगी जाती हैं। वे एक गीत गाते हैं जो कि बहुत प्रसिद्ध है ः

सुंदर मुंदरिये!…………………….हो

तेरा कौन बेचारा………………….हो

दुल्ला भट्टी वाला…………………..हो

दुल्ले धी व्याही…………………….हो

सेर शक्कर आई……………………हो

कुड़ी दे बाझे पाई…………………हो

कुड़ी दा लाल पटारा……………..हो

यह गीत गाकर दुल्ला भट्टी की याद करते हैं। इस दिन सुबह से ही बच्चे घर-घर जाकर गीत गाते हैं तथा प्रत्येक घर से लोहड़ी मांगते हैं। यह कई रूपों में उन्हें प्रदान की जाती है। जैसे तिल, मूंगफली, गुड़, रेवड़ी व गजक। पंजाबी रॉबिन हुड दुल्ला भट्टी की प्रशंसा में गीत गाते हैं। दुल्ला भट्टी अमीरों को लूटकर निर्धनों में धन बांट देता था। एक बार उसने एक गांव की निर्धन कन्या का विवाह स्वयं अपनी बहन के रूप में करवाया था।


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