चिट्टा-दवाई की ओवरडोज बन रही काल का ग्रास

By: Jan 20th, 2022 12:49 am

चिकित्सकों के माध्यम से मरीजों के फॉलोअप के दौरान खुलासा, छह माह के अंदर चार लोगों की मौत

दिव्य हिमाचल ब्यूरो — बिलासपुर
चिट्टा (हेरोइन) और दवाइयों की ओवरडोज काल का ग्रास बन रही है। जिला बिलासपुर में पिछले छह माह में करीब चार लोगों की मौत चिट्टे के लगातार प्रयोग व दवाई की ओवरडोज की वजह से हुई है। हैरानी की बात है कि नशा छोडऩे के लिए खाए जाने वाली दवाइयों का प्रयोग गलत तरीके से नशे के लिए किया जा रहा है, जो कि लोगों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। इस बात का खुलासा संबंधित चिकित्सकों के माध्यम से मरीजों के फॉलोअप के दौरान हुआ है। क्योंकि, यह नशे के आदि मरीज लगातार उपचार के लिए क्षेत्रीय अस्पताल बिलासपुर में तैनात मनोचिकित्सकों के पास आ रहे थे। बिलासपुर क्षेत्रीय अस्पताल में कार्यरत मनोचिकित्सक डा. महेंद्र सिंह के मुताबिक जिन दवाइयों का प्रयोग नशा छोडऩे के लिए किया जाता है, वह दवाइयां आज नशे के अल्टरनेट के रूप में प्रयोग हो रही हैं। यह दवाइयां चिकित्सक के बिना मार्गदर्शन से प्रयोग करना खतरनाक साबित होती हैं।

उन्होंने बताया कि नशा छोडऩे के लिए प्रयोग की जाने वाली दवाइयों को खाने का एक विशेष प्रोसेस है। लेकिन, जानबूझ कर इन दवाइयों को नशे के रूप में प्रयोग किया जाता है। ओपीडी के दौरान काफी बार देखा गया है कि नशे के आदि युवा इन दवाइयों को अधिक मात्रा में लिखने के लिए दबाव बनाते हैं, ताकि, नशे की पूर्ति इन दवाइयों को खाने से की जा सके। बिलासपुर अस्पताल में चिट्टे के अधिक मामले सामने आ रहे हैं, लेकिन इंडोर में दाखिल लोगों में एल्कोहल के मरीज अधिक होते हैं। क्योंकि, चिट्टा प्रयोग करने वालेे युवा नशा छोडऩा ही नहीं चाहते। वह दवाई का प्रयोग नशे के लिए कर रहे हैं, जो कि एक बड़ा चिंता का विषय है। डा. महेंद्र सिंह ने बताया कि उनके पास हर माह 100 से अधिक ओपीडी हो रही हैं। इनमें 15 से 30 वर्ष की उम्र के बीच के अधिक मरीज आते हैं। नशा छोडऩे के लिए प्रयोग की जाने वाली दवाइयों में डिपेंटाडोल व ट्रामाडोल शामिल हैं। यह ऐसी दवाइयां हैं, जो किसी भी मेडिकल स्टोर पर बिना डाक्टर द्वारा लिखित पर्ची के नहीं मिल सकती। 

बगैर परिजनों के अटेंड नहीं किए जाएंगे मरीज

पिछले छह माह में हुई चार मौतों पर कड़ा संज्ञान लेते हुए क्षेत्रीय अस्पताल बिलासपुर में तैनात मनोचिकित्सकों ने निर्णय लिया है कि बिना परिजनों के उपचार के लिए आने वाले युवाओं को ओपीडी में अटेंड नहीं किया जाएगा और न ही उन्हें दवाई लिखी जाएगी। क्योंकि, इससे दवाई के गलत प्रयोग को रोका जा सकता है।


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